जामुन की खेती

जामुन शुद्ध भारतीय फल है। इसके फल, गुठली, छाल व पत्ते सभी औषधीय गुणों से भरे होते हैं। जामुन के फल खाने के लिए तथा इसके बीज औषधि बनाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं। जामुन से तैयार की गई दवाइयां मधुमेह, बढ़ते खून और शुगर के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। यह एक सदाबहार वृक्ष है, जिसकी औसतन ऊंचाई 30 मीटर होती है। इसके लिए उष्णकटिबंधीय तथा सपोष्ण कटिबंधीय जलवायु उपयुक्त रहती है। पौधों की छोटी अवस्था में, कुछ महत्वपूर्ण फसल जैसे मटर, चना, मूंग इत्यादि की अन्तवर्ती फसलें ली जा सकती हैं।


जामुन

जामुन उगाने वाले क्षेत्र

भारत के सभी राज्यों में इसकी खेती की जा सकती है

जामुन की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

जामुन में प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, विटामिन बी, विटामिन सी, मैग्नीशियम, एंटी, ग्लूकोज, पोटेशियम, फाइबर, और फ्रुक्टोज के अतिरिक्त भी विभिन्न पोषक तत्व पाये जाते हैं।

बोने की विधि

पौध रोपण हेतु 10 मीटर की दूरी पर 1x1x1 मीटर आकार के गड्ढे खोद लिये जाते हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

जामुन को सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, किन्तु अधिक उत्पादन की प्राप्ति के लिए लिए बलुई दोमट भूमि, जिसमें जलनिकास की उचित व्यवस्था हो, उपयुक्त रहती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 2-3 जुताई हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

जामुन के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) काठा - इस किस्म के फल आकार में छोटे और खट्टे होते हैं। (ii) बड़मा - इस किस्म के फल आकार में बढे और बहुत ज्यादा रसीले होते हैं। (iii) नरेंद्र जामुन 6 - यह किस्म नरेंदर देव यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश के द्वारा तैयार की गई है।

बीज की जानकारी

जामुन की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 100-150 पौधों की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

जामुन के पौध किसी विश्वसनीय स्थान (नर्सरी) से खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

जामुन की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

जामुन के पेड़ों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसके लिए पौधों को खेत में लगाने से पहले तैयार किये गए गड्डों में 10 से 15 किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें. गोबर की खाद की जगह वर्मी कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में शुरुआत में प्रत्येक पौधों को 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को साल में तीन बार देना चाहिए. लेकिन जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तब जैविक और रासायनिक दोनों खाद की मात्रा को बढ़ा दें. पूर्ण रूप से विकसित वृक्ष को 50 से 60 किलो जैविक और एक किलो रासायनिक खाद की मात्रा साल में चार बारदेनी चाहिए.

जलवायु और सिंचाई

जामुन की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

वर्ष में 6-8 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

रोग एवं उपचार

जामुन की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

पत्ती झुलसाजामुन के पेड़ों पर पत्ती झुलसा का रोग मौसम परिवर्तन के दौरान और तेज़ गर्मी पड़ने पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पेड़ों को पत्तियों पर भूरे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं. और पत्तियां किनारों पर से सुखकर सिकुड़ने लगती है. जिसके कुछ दिनों बाद पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है. जिसकी वजह से पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एम-45 की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.फल और फूल झडनपौधों पर फूल और फल बनने के दौरान ये रोग देखने को मिलता है. जो ज्यादातर पौधों में पोषक तत्व की कमी की वजह से लगता है. इसके अलावा फूल झडन का रोग फूल बनने के दौरान बारिश होने पर भी लग जाता है. इस रोग के लगने पर पैदावार कम प्राप्त होती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर जिब्रेलिक एसिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.फल छेदकफल छेदक रोग की मुख्य वजह पत्ता जोड़ मकड़ी रोग होता हैं. पत्ता जोड़ मकड़ी के लगने पर एकत्रित हुई पत्तियों में इस रोग का कीट जन्म लेता है. जो फल लगने पर उनके अंदर प्रवेश कर फलों को नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के लगने पर पौधे पर नीम के तेल या नीम के पानी का छिडकाव करना 10 से 12 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए.पत्तियों पर सुंडी रोगजामुन के पेड़ों पर सुंडी का आक्रमण पौधों की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है. इस रोग का लार्वा पौधे की कोमल पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइमेथोएट या फ्लूबैनडीयामाइड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.पेड़ पर इस रोग के कीट कई पत्तियों को आपस में सफ़ेद रंग के रेशों से जोड़कर एकत्रित कर लेती हैं. जिनके अंदर इसके कीट जन्म लेते हैं. जो फलों के पकने के दौरान उन पर आक्रमण करते हैं. जिससे फल आपस में मिलकर खराब हो जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए एकत्रित की हुई पत्तियों को फल लगने से पहले ही तोड़कर जला देना चाहिए. इसके अलावा इस रोग के लगने पर पेड़ों पर इंडोसल्फान या क्लोरपीरिफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

जामुन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई कर करनी चाहिए. इससे पौधों की जड़ों को वायु की उचित मात्रा भी मिलती रहती है. जिससे इसका वृक्ष अच्छे से विकास करता हैं. इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज और पौध रोपण के 18 से 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद पौधों के पास खरपतवार दिखाई देने पर फिर से गुड़ाई कर दें. जामुन के पौधों को शुरुआत में अच्छे से विकसित होने के लिए सालभर में 7 से 10 गुड़ाई और व्यस्क होने के बाद चार से पांच गुड़ाई की जरूरत होती है. इसके अलावा पेड़ों के बीच खाली बची जमीन पर अगर कोई फसल ना उगाई गई हो तो बारिश के बाद खेत सूखने पर हलकी जुताई कर देनी चाहिए. जिससे खाली जमीन में जन्म लेने वाली खरपतवार नष्ट हो जाती हैं.

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, कल्टीवेटर खुर्पी, कुदाल,फावड़ा आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।