मेंहदी एक बहुवर्षीय झाड़ीदार फसल है जिसे व्यवसायिक रूप से पत्ती उत्पादन के लिए उगाया जाता है. मेंहदी प्राकृतिक रंग का एक प्रमुख श्रोत है. शुभ अवसरों पर मेंहदी की पत्तियों को पीस कर सौन्दर्य के लिए हाथ व पैरों पर लगाते है. सफेद बालों को रंगने के लिए भी मेंहदी की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है. इसका सिर पर प्रयोग करने से रूसी (डेंड्रफ) की समस्या भी दूर हो जाती है. इसकी पत्तियां चर्म रोग में भी उपयोगी है. गर्मी के मौसम में हाथ व पैरों में जलन होने पर भी मेंहदी की पत्तियों को पीसकर लगाया जाता है. इसका उपयोग किसी भी दृष्टिकोण से शरीर के लिए हानिकारक नहीं है. मेंहदी की हेज घर, कार्यालय व उद्यानों में सुन्दरता के लिए लगाते है. मेंहदी शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में बहुवर्षीय फसल के रूप में टिकाऊ खेती के सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है. मेंहदी की खेती पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है.
राजस्थान देश में मेंहदी पत्ती का सबसे प्रमुख उत्पादक प्रदेश है। गुजरात, मध्य प्रदेश अन्य उत्पादक प्रदेश हैं।
मेंहदी का पौधा लॉसनिया इनर्मिस, रक्तचाप, पेचिश, गंजापन, गठिया, सिरदर्द से राहत और बुखार के लिए पोषक तत्वों से भरपूर फल है। मेंहदी बालों की मजबूती को बढ़ाने के लिए सिद्ध हुई है और इसलिए, एक सुरक्षित डाई का प्रतिनिधित्व करती है जो हमारे रोम के स्वास्थ्य को स्थायी रूप से प्रभावित नहीं करती है।
मेंहदी का पौधा रोपण बिधि द्वरा करते है ! 30 X 50 X 50 एवं 50 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में छेद बनावें और प्रति छेद 1 से 2 पौधे रोपकर जड़ें मिट्टी में अच्छी तरह दबा दें
बलुई दोमट भूमि, जिसका पी.एच 7.5-8 के बीच हो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है।खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।
यह बीज या स्टेम-कटिंग द्वारा प्रचारित किया जाता है। पौधे दोमट से लेकर दोमट मिट्टी तक किसी भी प्रकार की मिट्टी पर उगते हैं। यह मिट्टी में थोड़ी क्षारीयता को सहन करता है। बीज को नर्सरी क्यारी में बोया जाता है और 3-4 महीने के बाद जब पौधा 30-40 सेमी की ऊंचाई तक पहुंच जाता है तो इसे मुख्य खेत में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
5-6 किग्रा बीज एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है।
मेंहदी का बीज किसी विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदना चाहिए।
खेत की अंतिम जुताई के समय 10 - 15 टन सड़ी देशी खाद व 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से भूमि में मिलावें तथा 60 किलो नत्रजन व 40 किलो फाॅसफोरस प्रति हेक्टर की दर से खड़ी फसल में प्रति वर्ष प्रयोग करें. फास्फोरस की पूरी मात्रा व नत्रजन की आधी मात्रा पहली बरसात के बाद निराई गुड़ाई के समय भूमि में मिलावें व शेष नत्रजन की मात्रा उसके 25-30 दिन बाद वर्षा होने पर दे.
सामान्यतः मेंहदी की खेती वर्षा पर आधारित होती है। वर्षा न होने की स्थित में खेत में उपयुक्त नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करना आवश्यक है।
1. दीमक - दीमक मेंहदी का मुख्य शत्रु है। इसके नियंत्रण के लिए 25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से मिथाइल पैराथियान या क्लोरोपेरिफॉस चूर्ण खेत में डालना चाहिए। 2. कट वर्म एवं वायर वर्म - इस कीट की सूंडी भूरे रंग की होती है। शाम के समय यह सूंड़ी पौधों को जमीन की सतह के पास से काटकर गिरा देती है। इसका प्रकोप फसल की शुरू की अवस्था में होता है जिससे फसल को अधिक नुकसान पंहुचता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए मिथाइल पैराथियान 2% या मैलाथियान 5% चूर्ण 20-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में जुताई के समय मिलाना चाहिए।
मेंहदी रोपाई के बाद जब पौध स्थापित हो जाए तो कुदाल या खुर्पी से निराई करें व खरपतवार निकाल दें। एट्राजिन 1 किग्रा (सक्रिय तत्व) 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों या कल्टीवेटर, खुर्पी याकुदाल, फावड़ा आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।