मूंगफली की खेती

परिचयमूंगफली एक तिलहनी फसल है इसके पौधे 30 से 50 सेंटीमीटर ऊंचाई तक बढ़ते हैं।  यह तेल उत्पादन के लिए उगाई जाने वाली फसलों में तीसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल हैं।इसकी खेती ज्यादातर बारानी इलाकों में होती हैं।मूंगफली के पौधे किस्म के आधार पर गुच्छों वाले या कम फैलने वाले होते हैं।जलवायु मूगंफली की खेती के लिए गर्म मौसम और निम्न-वर्षा वाले क्षेत्र अनुकुल होते है।इसकी खेती ज्यादातर बारानी इलाकों में की जाती हैं।मूंगफली के पौधे 15- 35 डिग्री सेल्सियस तापमान को सहन कर लेते हैं और 20- 30 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले इलाकों में इसकी उच्च उपज प्राप्त होती हैं।बीज बुआई के समय 25- 35 डिग्री सेंटीग्रेट और कटाई के समय 20- 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अनुकूल होता हैं।फसल की अच्छी वृद्धि के लिए वार्षिक वर्षा 10- 80 सेंटीमिटर अच्छी होती हैं।खेती का समयबारानी इलाकों में मूंगफली की बिजाई जून के अंत में या जुलाई के शुरुआती हफ्ते में (मानसून शुरू होने पर) करें। सिंचित इलाकों में मूंगफली की बिजाई अप्रैल के अंत से मई के अंत में की जाती हैं।ध्यान दें :- बिजाई में देरी करने से उपज में कमी आती हैं।


मूंगफली

मूंगफली उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, गुजरात, महांराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू मूंगफली उगाने वाले प्रमुख राज्य हैं।

मूंगफली की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य मूंगफली प्रोटीन का मुख्या स्त्रोत हैं। इसके बीजों में 40- 55% तेल की मात्रा होती हैं।मूंगफली में भरपूर मात्रा में बायोटिन, कॉपर, नियासिन, फोलेट, मैंगनीज, विटामिन ई, थायमिन, फास्फोरस और मैग्नीशियम पोषक तत्व पाए जाते हैं।इसका सेवन वजन को कम करने और ह्रदय सम्बन्धित बिमारिओं को सही करने में मदद करता हैं। 

बोने की विधि

बुवाई :-मूंगफली की बुवाई के लिए जमीन को अच्छे से तैयार करना चाहिए। जमीन की अच्छे से दो से तीन बार जुताई करके खरपतवार मुक्त बनाएं।खेत की जुताई करने के बाद पाटा लगाकर जमीन को समतल बनाना चाहिए। सिंचित इलाकों में जुताई के बाद खेत को क्यारियों में बांटकर आवश्यकता-अनुसार आकार के बैड बनाएं।मूंगफली की बुवाई बिजाई सीड ड्रिल द्वारा की जा सकती है।बीजों को लगभग 8- 10 सेंटीमीटर की गहराई पर बोयें।कतारों के बीच कम फैलने वाली किस्मों के लिए 30 सेंटीमीटर व पौधों में 22.5 सेंटीमीटर की दूरी  रखें। गुच्छेदार किस्मों के लिए कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर व पौधों में 15 सेंटीमीटर का फासला रखें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी:-मूंगफली की खेती कई प्रकार की मिटटी (रेतली दोमट और रेतली चिकनी मिट्टी) में की जा सकती हैं।अच्छी जल निकासी वाली, गहरी और उपजाऊ मिटटी में इसकी पैदावार ज्यादा होती हैं।उच्च पोषक तत्व संग्रहण और ज्यादा उपज प्राप्त करने के लिए खेत का पिअच् 6.5-7 होना चाहिए। मिटटी का पीएच मान बढ़ाने के लिए खेत में लाइम डालें और पीएच मान कम करने के लिए खेत में सल्फर डालें।मूंगफली के पौधे पानी के जमाव के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं इसलिए बीज बुवाई से पहले खेत में उच्चित  उचित जल निकासी का प्रबंद करें।इसकी खेती के लिए भरी भारी और सख्त चिकनी मिटटी वाले खेतों का चयन न करें (इसमें फल्लियों कम और छोटी बनती हैं)।खेत की तैयारी :- पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद, 3-4 जुताई देशी हल, या हैरों या कल्टीवेटर से करने के बाद आखिरी बार खेत को जोतने के समय गोबर की खाद 5 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएं पाटा लगा देना चाहिए।भूमि उपचार :-भूमिगत कीटों एवं दीमक की रोकथाम के लिये बुवाई से पूर्व भूमि उपचार करना आवश्यक है।जहां सफेद लट का विशेष प्रकोप हो वहां सफेद लट की रोकथाम हेतु की गई सिफारिश अपनानी चाहिये। दीमक का नियंत्रण उन्हीं कीटनाशकों से हो जायेगा।खड़ी फसल में सफेद लट नियंत्रण के लिये चार लीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देना चाहिये। यह उपचार मानसून की वर्षा के 21 दिन के आसपास/भृगों की भारी संख्या के साथ ही खड़ी फसल में करें।मित्र फफूंद द्वारा दीमक नियंत्रण -10 किलो मित्र फंफूद बावेरिया बेसियाना या मेटारिजियम एनिसोपली पाउडर को प्रति हैक्टेयर की दर से 125 किलो गोबर की खाद में कल्चर करके बुवाई पूर्व खेत में डालें।मिट्टी का शोधन जैविक विधि जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं । 4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार खेत में बीज बुआई से पहले अच्छी तरह मिला देते हैं।रसायनिक विधि रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। मिटटी शोधन के 4-5 दिनों के पश्चात बुआई करते हैं ।

बीज की किस्में

मूंगफली के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँआर जी-382मूंगफली की इस किस्म के पौधे बहुत फलते हैं। यह किस्म रेतीली और दोमट मिटटी व् सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिये उपयुक्त है।इसके दाने मोटे और गुलाबी रंग के तथा 100 दानों का वजन लगभग 59 ग्राम होता है।इसके दानों में लगभग 53% तेल की मात्रा होती है।फसल की अवधि - 128- 133 दिनऔसतन उपज -  9- 10 क्विंटल/ एकड़गिरनार-2यह मूंगफली की मध्यम फैलने वाली किस्म है।इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी वाले खेत उपयुक्त होते है।इसकी फली बाहर से हल्के भूरे रंग की और मोटी होती है और इसके बीजों में लगभग 51 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है।औसतन इसके 100 दानों का वजन 50 ग्राम होता है। फसल की अवधि -  125- 130 दिनऔसतन उपज -  10- 12  क्विंटल/ एकड़ आर जी-425यह किस्म दोनों बारानी और सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त होती है।इसके दाने हल्के गुलाबी और सफेद होते है।बारिश आधारित क्षेत्र में यह किस्म औसतन 6 से 7 क्विंटल और सिंचित क्षेत्र में 13 से 14.5 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन देती है।फसल की अवधि - 125- 130 दिन आर जी-510मूंगफली की इस किस्म की पत्तियाँ छोटी, गहरे हरे रंग की होती है।इस किस्म को उगाने के लिए रेतीली और दोमट मिटटी और सिंचित क्षेत्र वाली मिटटी उपयुक्त होती है।इसकी फल्लियाँ मध्यम आकार की और गुलाबी रंग की होती है।फसल की अवधि - 126- 130 दिन औसतन उपज -  10.5-13 क्विंटल/ एकड़ जी जी-2:-इस किस्म के पौधे छोटे, अधिक फैलने वाले और गुच्छेदार होते है।इस किस्म की फलियाँ मध्यम आकार की और एक से दो बीज वाली और बीज मध्यम गौलाई वाले गुलाबी रंग के होते है।औसतन उपज -  10-12 क्विंटल/ एकड़ फसल की अवधि - 90- 105 दिन 

बीज की जानकारी

मूंगफली की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर मूंगफली की बुवाई के लिए 38- 40 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती हैं। बीज उपचारमूंगफली के बीजो को सीधे खेत में बोया जाता है बुआई से पहले बीजों को शुरुआती रोगों से बचाने के लिए थीरम 5 ग्राम या कप्तान 2-3 ग्राम या कार्बेन्डाज़िम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।रासायनिक उपचार के बाद बीजों को ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।जीवाणु राइजोबियम  कल्चर के साथ बीज उपचारराइजोबियम  कल्चर के साथ बीज उपचार करने के लिए लगभग 2 लीटर पानी में 400 ग्राम गुड़ या चीनी मिलाएं और इस मिश्रण को उबालकर ठंडा होने दें और फिर उसमे राइजोबियम  कल्चर 200 ग्राम/ एकड़ की दर से मिलाएं।जैविक राइजोबियम  कल्चर अच्छे से मिलाने के बाद मिश्रण को बीजों पर लेपित करें और फिर बीजों को छाया में सुखाएं। ध्यान दें:- जीवाणु उपचार के बाद बीजों को धुप में न सुखाएं। अक्सर शाम के समय में बीजों को उपचारित किया जाता हैं और सुबह के समय इनकी बुवाई करें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

मूंगफली का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

मूंगफली की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए।मूंगफली मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी। उर्वरकों का अनुपात एनपीके 10:20:10 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें।नत्रजन :- 10 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 12 किलो यूरिया बुवाई के 30 से 35 दिन बाद खड़ी फ़सल में डालें।फॉस्फोरस :- 125 किलो एसएसपी या 45 किलो डी.ए.पी  प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।पोटाश :- 20 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (mop) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। जड़ों के अच्छे विकास के लिए पोटाश की जरूरत होती है।जिप्सम :- 80 किलो बुवाई के समय और खड़ी फ़सल में बुवाई के 45 दिन बाद 80 जिप्सम खेत में डालें।सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधनमूंगफली के पौधों में जिंक और बोरोन सूक्ष्मपोषक तत्वों की कमी ज्यादा आती हैं। जिंक की कमी से पौधों का ऊपरी हिस्सा छोटा रह जाता हैं और हल्के पिले रंग में बदल जाता हैं। जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें। बोरोन की कमी से पौधे विकृत हो जाते हैं और वृद्धि नहीं करते इसकी कमी को पूरा करने के लिए बोरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करे।पौधों में पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति के लिए बीज बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करवा ले और आवश्यकतानुसार ही खेत में पोषक तत्व डालें।

जलवायु और सिंचाई

मूंगफली की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाईमूंगफली की फसल को आमतौर पर बारानी इलाकों में उगाया जाता है। पौधों के अच्छे विकास के लिए वर्षा के आधार पर 2-3 बार सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। बारिश न आने की स्थिति  में फूल आने और फली अवस्था में खेत की सिंचाई अवश्य करें।आसानी से पुटाई के लिए फसल पकने से कुछ दिन पहले खेत की हल्की सिंचाई करें। 

रोग एवं उपचार

मूंगफली की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग प्रबंधन और उपचार :1. टिक्का रोग:नुकसान के लक्षण इस रोग के कारण पत्तों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे बन जाते हैं जो किनारों से हल्के पीले रंग होते हैं। नियंत्रण: रोग मुक्त बीजों का चयन करें।बीज बुवाई से पहले बीजों को थीरम 5 ग्राम या कप्तान 2-3 ग्राम या कार्बेन्डाज़िम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।पौधों को बीज बुवाई के 40 दिन बाद 15 दिन के अंतराल पर 2- 3 बार वेटबल सलफर 50 डब्लयू पी @ 2- 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेनडाज़िम 50 डब्लयू पी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें।2 ). बीज गलन या जड़ गलननुकसान के लक्षण इस रोग के प्रकोप से पौधे तने वाले भाग से जो जमीन के साथ जुड़ा होता हैं वहां से सूख जाते है। नियंत्रण:बीज बुआई से पहले बीजों को कैप्टन  या थीरम @ 3 ग्राम/ किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें। रोग का संक्रमण होने पर कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।3). पत्ती झुलस रोग:नुकसान के लक्षण इस रोग के कारण पत्तों पर हल्के से गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और पत्ते बाद में अंदर की और मुड़ जाते है और भुरभुरे हो जाते है।नियंत्रण:रोग संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।रोग का हमला खेत में हो तो पौधों को मैनकोजेब 3 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम  प्रति लीटर पानी या ज़िनेब 75 डब्लयु पी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें। 4). कूंगी या रस्ट रोग:नुकसान के लक्षण इस रोग के संक्रमण के कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर हल्के हरे पीले छोटे-छोटे धब्बे और एवं पत्ती की निचली सतह पर भूरे लाल उभरे हुये धब्बे दिखाई देते हैं। नियंत्रण:अत्यधिक नाइट्रोजन पोषक तत्वों की मात्रा को खेत में न डालें।रोग का संक्रमण होने पर कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या प्रोपिकानज़ोल 25 इसी @ 200 ऍम अल प्रति एकड़ के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।कीट  प्रबंधन और उपचार 1) तेला (एफिड्स) : नुकसान के लक्षण मूंगफली में काले रंग के तेले (छोटे छोटे कीड़ों का संक्रमण होता हैं) जो पौधों से रस चूसते रहते हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता हैं और पत्ते पिले रंग के हो जाते हैं। बच्चे और वयस्क बड़ी मात्रा में पौधे का रस चूसते हैं जिसके ऊपर काले रंग के फंफूद का विकास हो जाता हैं।नियंत्रण:पौधों पर नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% का छिड़काव करें।रसायनिक नियंत्रण के लिए एफिड का प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30  ईसी 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल 4 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 2 ) सफेद सुंडी (वाइट ग्रब): नुकसान के लक्षण इस कीट की भुंडीया मिट्टी में अंडे देती हैं और उनमें से सफेद रंग की इल्लियां निकलती हैं जो मिटटी के अंदर मौजूद पौधों की जड़ों और उनके ऊपर के बालों को खा जाती हैं। ज्यादा संक्रमण होने पर पौधे सुख जाते हैं।नियंत्रण:मई-जून माह में खेत की दो बार गहरी जोताई करें।बिजाई से पहले बीजों को क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. @ 6.5 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीजों की दर से उपचारित करें।बिजाई के समय या उससे पहले क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर @ 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलोग्राम मिटटी में मिलकर खेत में भुरकाव करें। 3 ) बालों वाली सुंडी (बिहार हेयरी कैटरपिलर):  नुकसान के लक्षण इल्लियां लाल-भूरे रंग की और उनके शरीर पर काले रंग की धारियां और लाल रंग के बाल होते है। इल्लियां पत्तियाँ खा जाती हैं, क्षतिग्रस्त पत्तियाँ नीचे गिर जाती हैं।नियंत्रण: प्रभावित क्षेत्रों के चारों ओर लंबवत पक्षों के साथ 30 सेमी गहरी और 25 सेमी चौड़ी खाई खोदकर इल्लियों के खेत में प्रवास से बचें। कीटों को आकर्षित करने और मारने के लिए वर्षा सिंचित मौसम में बुआई के बाद बारिश होने के तुरंत बाद 3 से 4 लाइट ट्रैप और अलाव लगाएं। इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।रसायनिक नियंत्रण के लिए (नोवलुरॉन 5.25% + एमामेक्टिन बेंजोएट 0.9%) 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।4 ) फली छेदक सुंडी (पोड बोरर):  नुकसान के लक्षण इस कीट की इल्लिया छोटे पौधों में छोटे पौधों में छेद बना देती हैं उनमे से मल मूत्र देखा जा सकता हैं। बाद में इल्लियां फल्लियों में प्रवेश कर उन्हें अंदर से खा जाती हैं।इल्लियां सफ़ेद से भूरे रंग की होती हैं।नियंत्रण: बिजाई से पहले बीजों को क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. @ 6.5 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीजों की दर से उपचारित करें।कीट का प्रकोप दिखाई देने पर बीज बुवाई के 40 दिन बाद क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर @ 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलोग्राम मिटटी में मिलाकर खेत में भुरकाव करें और हल्की सिंचाई करें।5) दीमक:  नुकसान के लक्षण दीमक कीट का प्रकोप फसल के शुरुआती विकास में होने पर यह पौधों की जड़ों और तने को नष्ट कर देता हैं। फल्लियाँ बनने की अवस्था में इसका हमला होने पर यह फलियों और बीजों में सुराख़ कर देता है।ज्यादा संक्रमण होने पर पौधे सुख जाते हैं।नियंत्रण: बिजाई से पहले बीजों को क्लोरपाइरीफॉस 20 इसी @ 6.5 मि.ली. प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।कीट का प्रकोप दिखाई देने पर खेत में क्लोरपाइरीफॉस 20 इसी @ 1 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से सिंचाई के तुरंत बाद पानी खड़ा होने पर 20 किलोग्राम मिटटी में मिलाकर खेत में भुरकाव करें या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर @ 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलोग्राम मिटटी में मिलाकर खेत में भुरकाव करें और हल्की सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल में 2 बार निराई गुड़ाई करें। पहली निराई गुड़ाई बीज बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी निराई गुड़ाई बीज बुवाई के 40- 45 दिन बाद करनी चाहिए। फल्लियाँ बनने की अवस्था में गुड़ाई न करें।  रासायनिक नियंत्रण के लिए बीच बुवाई के 2- 3 दिन बाद फ्लूक्लोरालिन, 600 मिलीलीटर या पेंडीमिथालिन 1 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से शाम के समय मिटटी पर छिड़काव करें।खड़ी फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 25 से 30 दिन बाद एमेजाथेपर 10% SL 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नोट :- खरपतवारनाशी का छिड़काव के समय खेत में नमी होना चाहिए। 

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।