मूंग की खेती

परिचयमूंग एक दलहनी फसल है इसके पौधे 30 से 90 सेंटीमीटर ऊंचाई तक बढ़ते हैं।  मूंग भारत में उगाई जाने वाली दालों में सबसे अधिक उगाई जाने वाली दलहनी फसल हैं। इसमें काफी मात्रा में प्रोटीन के साथ फाइबर और  लौह तत्व पाया जाता हैं।जलवायु मूंग की खेती करने के लिए गर्म मौसम और निम्न-वर्षा वाले क्षेत्र अनुकुल होते है।मूंग की खेती वर्षा आधारित होती हैं  सूखे की स्थिति में इसे सिंचाई की आवश्यक होती हैं।  मूंग की बुआई के समय 22- 30 डिग्री सेंटीग्रेट और कटाई के समय 30- 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अनुकूल होता हैं।फसल की अच्छी वृद्धि के लिए वार्षिक वर्षा 60- 100 सेंटीमिटर होनी चाहिए।खेती का समयमूंग के बीजो की बुआई मार्च से अप्रैल, फिर जून के अंत से जुलाई के शुरुआती दिनों में की जाती हैं।


मूंग

मूंग उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा मूंग उगाने वाले प्रमुख राज्य हैं।

मूंग की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य मूंग में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा पाया जाता है।इसमें आयरन, कैल्सियम, मैग्नीशियम व पोटैशियम, कैल्शियम, विटामिन- बी, विटामिन- सी तत्व होते है।इसके पौधों को पशु चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता हैं।

बोने की विधि

बुवाई:- मूंग के बीज बुआई के लिए जमीन को अच्छे से तैयार करना चाहिए।  जमीन की अच्छे से दो से तीन बार जुताई करके खरपतवार मुक्त  बनाएं।खेत जुताई के बाद पाटा लगाकर जमीन को समतल बनाना चाहिए।मूंग की बुवाई बीजारोपण  मशीन, पोरा या केरा ढंग / तरीके द्वारा की जा सकती है।बीजों को लगभग 4- 6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोयें।दो कतारों के बीच खरीफ की बीजारोपण के लिए 30-45  सेंटीमीटर व पौधों में 10 सेंटीमीटर की दुरी रखें।  रबी की बुआई के लिए दो कतारों के बीच 22.5 सेंटीमीटर व पौधों में 7.5 सेंटीमीटर की दुरी रखें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी:-मूंग की फसल को कई प्रकार की बनावट वाली मिटटी में उगाया जा सकता हैं। पौधों की बेहतर वृद्धि और उच्च उपज के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट से रेतली दोमट मिट्टी का चयन किया जाना चाहिए।मूंग की फसल के लिए 6.5 से 7.5 की पीएच रेंज वाली मिट्टी अच्छी होती है।मूंग की खेती के लिए अच्छी नमी धारण क्षमता व अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी सबसे अच्छी और उपयुक्त होती है।इस फसल की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिटटी का चयन करें क्योंकि इसके पौधे पानी के ठहराव के प्रति संवेदनशील होते हैं।इस फसल के लिए खेतों में जल निकासी की उचित व्यवस्था का होना जरूरी है. इसलिए खेतों को हल्के ढ़ालदार आकार दें।मूंग की खेती नमक और जल जमाव वाली मिट्टी में न करें।मूंग की बुवाई के लिए आवश्यकतानुसार एक या दो बार जुताई कर खेत को तैयार करें.मिट्टी का शोधन जैविक विधि जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं । 4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार खेत में बीज बुआई से पहले अच्छी तरह मिला देते हैं।रसायनिक विधि रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। मिटटी शोधन के 4-5 दिनों के पश्चात बुआई करते हैं ।

बीज की किस्में

मूंग के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँएस एम एल-668:-मूंग की यह किस्म जायद और खरीफ दोनों ऋतुओं में बुआई हेतु उचित है एवं तना अन्य किस्मों की अपेक्षा मजबूत होता है। इसके दाने मोटे एवं 1000 दानों का वजन 58 से 63 ग्राम होता हैं।  फसल की अवधि - 60- 65 दिन औसतन उपज -  6- 8 क्विंटल/ एकड़एम यू एम-2:-इस किस्म के पौधे की ऊँचाई लगभग 85 सेन्टीमीटर और इसके 1000 दानों का भार 36 ग्राम होता है। यह किस्म पीले मौजेक रोग को मध्यम रूप से सहन कर लेती है। फसल की अवधि -  80- 85 दिन औसतन उपज -  8- 9  क्विंटल/ एकड़ के-851:-इस किस्म के पौधे की ऊँचाई लगभग 85- 90 सेन्टीमीटर और इसके दाने हरे चमकदार और मध्यम आकार के होते हैं। जिसके 1000 दानों का भार 36 ग्राम होता हैं।फसल की अवधि - 75- 80 दिन औसतन उपज - 6.8- 9  क्विंटल/ एकड़पूसा विशाल:- मूंग की यह किस्म विषाणु जनित पीली चित्ती रोग के प्रति प्रतिरोधी होती हैं। यह किस्म उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में सभी मौसमों में बोई जा सकती हैं।फसल की अवधि - 65- 70 दिन औसतन उपज -  6- 8 क्विंटल/ एकड़ पी ए यू 911:-मूंग की यह किस्म खरीफ मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। इस किस्म की फली में 9-11 दाने होते हैं।यह किस्म 75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।औसतन उपज -  4- 5 क्विंटल/ एकड़ 

बीज की जानकारी

मूंग की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर मूंग की बुआई के लिए 8- 9 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती हैं।बीज उपचारमूंग के बीजो को सीधे खेत में बोया जाता है बुआई से पहले बीजों को कैप्टान या थिराम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।जीवाणु उर्वरक ( राइज़ोबियम कल्चर) के साथ बीज उपचारबीज उपचार के लिए लगभग 500 मिलीलीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ या चीनी मिलाएं। मिश्रण को उबालकर ठंडा होने दें और फिर उसमे रहाइजोबियमराइज़ोबियमकल्चर 80 ग्राम/ एकड़ की दर से मिलाएं। अच्छे से मिलाने के बाद मिश्रण को बीजों पर लेपित करें और छाया में सुखाएं। ध्यान दें:- बीजों को धूप में न सुखाएं। अक्सर शाम के समय में बीजों को उपचारित किया जाता हैं और सुबह के समय इनकी बुवाई करें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

मूँग के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए! 

उर्वरक की जानकारी

मूंग की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरकनाइट्रोजन - 5 किलोग्राम/ एकड़ फॉस्फोरस- 16 किलोग्राम/ एकड़ पोटाश-    10 किलोग्राम/ एकड़ खेत की तैयारी करने से पहले खेत में 3 से 5 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई फार्म यार्ड (FYM) या गोबर की खाद डालें।बुआई  के समय 12 किलो यूरिया एवं 100 किलो एसएसपी को बेसल डोज़ के रूप में  सीड ड्रिल से डालें।बुवाई के समय नाइट्रोजन व फॉस्फोरस उर्वरकों की पूरी मात्रा को 5-10 से.मी. गहरी कूड़ में दें। बुवाई पूर्व 100 किलो जिप्सम व बुवाई के समय 10 किलो जिंक सल्फेट को खेत में डालें. सल्फर एवं जिंक के प्रयोग से दाने सुडौल एवं चमकदार बनते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधनपौधों की सूक्ष्मपोषक तत्वों की पूर्ति के लिए बीज बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करवा ले और आवश्यकतानुसार ही खेत में पोषक तत्व डालें। 

जलवायु और सिंचाई

मूंग की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाईमूंग की फसल को आमतौर पर वर्षा आधारित परिस्थितियों में उगाया जाता है।ज्यादा गर्मी के मौसम में खेत को तीन से चार बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती हैं। मुख्य रूप से फली विकास चरण के दौरान खेतों में नमी बनाये रखें।मूंग की फसल में फूल आने से पूर्व (30-35 दिन पर) तथा फलियों में दाना बनते समय (40-50 दिन पर) सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है. तापमान एवं भूमि में नमी के अनुसार आवश्यकता होने पर अतिरिक्त सिंचाई करें। 

रोग एवं उपचार

मूंग की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग प्रबंधन और उपचार :1. पीली शिरा वाला मोज़ेक वायरस रोग (येल्लो मोज़ेक):नुकसान के लक्षण यह रोग सफ़ेद  मक्खी द्वारा फैलता हैं। इस रोग के कारण पत्तियाँ छोटी और मोटी होकर पीली हो जाती हैं, पौधे की वृद्धि रुक ​​जाती है। नियंत्रण:- इस रोग के नियंत्रण के लिए सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण करें।फसल के शुरुआती विकास के दौरान संक्रमित पौधों को हटा दें और नष्ट कर दें।नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से पौधों का छिड़काव करें। यदि उपलब्ध हो तो रोग सहिष्णु या प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।पौधों को इमिडाक्लोप्रिड 60 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रिड 20 एस पी @ 60 ग्राम/एकड़ पानी में घोलकर छिड़काव करें। 2 ). पत्ती धब्बा रोग (लीफ स्पॉट):नुकसान के लक्षण इस रोग संक्रमण से शुरुआत में पत्ती की सतह पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और बाद में ये धब्बे गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं। गंभीर संक्रमण में पौधों से पत्तियां गिर जाती हैं। नियंत्रण:-बीज बुआई से पहले बीजों को  कैप्टन  या थीरम @ 3 ग्राम/ किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें। यदि इस रोग का हमला खेत में हो तो पौधों को ज़िनेब 75 डब्लयु पी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।3 ). पत्ती झुलस रोग (अनथ्रक्नोज):नुकसान के लक्षण इस रोग के संक्रमण से पत्ते, फल्लियाँ और बीज पर अनियमित आकार के भूरे धब्बे बन जाते हैं जो बाद में गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। नियंत्रण:-रोग संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।रोग का हमला खेत में हो तो पौधों को प्रोपिकानज़ोल 25 इसी @ 200 ML प्रति एकड़ या ज़िनेब 75 डब्लयू  पी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।4 ).जीवाणु पत्ती धब्बा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट):नुकसान के लक्षण जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के संक्रमण से भूरे रंग के सूखे हुए धब्बे पत्तों पर बन जाते हैं जो बाद में पूरी पत्तियों में फैल जाते हैं और पत्तियाँ पिली होकर गिर जाती हैं।नियंत्रण:-स्प्रिंकलर या फव्वारे द्वारा खेत की सिंचाई न करे।रोग का संक्रमण होने पर कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें। 5 ). कूंगी या रस्ट रोग:नुकसान के लक्षण इस रोग के संक्रमण के कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर हल्के हरे पीले छोटे-छोटे धब्बे और एवं पत्ती की निचली सतह पर भूरे लाल उभरे हुये धब्बे दिखाई देते हैं।नियंत्रण:-अत्यधिक नाइट्रोजन पोषक तत्वों की मात्रा को खेत में न डालें।रोग का संक्रमण होने पर कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या प्रोपिकानज़ोल 25 इसी @ 200 ऍम अल प्रति एकड़ के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।कीट  प्रबंधन और उपचार 1 ) तम्बाकू इल्ली (टोबेको कैटरपिलर): नुकसान के लक्षण युवा इल्लियां पहले समूह में पौधों की पत्तियों को खुरेद कर खाती हैं और बाद में पुरे खेत में फैल जाती हैं और पत्तियों को पूरी तरह से खा सकती हैं जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि रुक जाती है।नियंत्रण:-गर्मी के दिनों में खेत की जुताई करें।फसल की बुआई से पहले, खेत की सीमाओं पर अरंडी को ट्रैप फसल के रूप में उगाएं। बाढ़ विधि से खेत की सिंचाई करें।एसीफेट 57 एस पी @ 300 ग्राम /एकड़ या क़्वीनालफॉस  @ 300 मि.ली./एकड़ के साथ पौधों का छिड़काव करें।2 ) तेला (एफिड्स) : नुकसान के लक्षण कीट ग्रसित पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रूक जाती है। बच्चे और वयस्क बड़ी मात्रा में पौधे का रस चूसते हैं जिसके कारण वे शहद की ओस का उत्सर्जन करते हैं और इस पर काले कालिख के सांचे के रूप में पत्तियों पर फफूंद का विकास होता है।नियंत्रण:-खेत में नीला चिपचिपा ट्रैप 5 प्रति एकड़  लगाएं (एफिड्स के पंखों वाले रूप की निगरानी और उसे कम करने के लिए)।पौधों की वृद्धि के दौरान उर्वरकों की संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। रसायनिक नियंत्रण के लिए एफिड का प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30  ईसी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 3 ) बालों वाली सुंडी (बिहार हेयरी कैटरपिलर):  नुकसान के लक्षण बालों वाली सुंडी पत्तियाँ खा जाती हैं, क्षतिग्रस्त पत्तियाँ नीचे गिर जाती हैं।पत्तियों का कंकालीकरण हो जाता है, पत्तियों का केवल कठोर भाग ही शेष रह जाता है। नियंत्रण:- प्रभावित क्षेत्रों के चारों ओर लंबवत पक्षों के साथ 30 सेमी गहरी और 25 सेमी चौड़ी खाई खोदकर इल्लियों के खेत में प्रवास से बचें। कीटों को आकर्षित करने और मारने के लिए वर्षा सिंचित मौसम में बुआई के बाद बारिश होने के तुरंत बाद 3 से 4 लाइट ट्रैप और अलाव लगाएं। इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।इसके रसायनिक नियंत्रण के लिए क़्वीनालफॉस 25 ईसी की 2 मिलीलीटर या डाइक्लोरवॉस की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे।4 ) फली छेदक सुंडी (पोड बोरर):  नुकसान के लक्षण इस कीट की इल्लियां फलियों से दाने खाती हैं और यह मूंग  का एक गंभीर कीट है जो उपज में भारी नुकसान पहुंचाता है।नियंत्रण:- इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।कीट का संक्रमण होने पर इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी @ 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी @ 300 ग्राम को पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।5 ) जूं (माइट):  नुकसान के लक्षण इस कीट के संक्रमण से पत्तियाँ भूरे रंग की हो जाती हैं और टूटने की आवाज करती हैं।नियंत्रण:- इसका हमला दिखाई देने पर खेत में उच्च दबाव वाले पानी की स्प्रे करें और रासायनिक नियंत्रण के लिए डाइमैथोएट 30 ईसी 150 मि.ली. प्रति एकड़ या प्रोपरजाइट 57% ईसी की 300-400 मिलीलीटर मात्रा प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण:- फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है। इसलिए प्रथम निदाई-गुडाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिन पर करना चाहियें।घासकुल एवं कुछ चैडी पत्ती वाले खरपतवार के लिए पेन्डिमिथिलीन 700 मिली प्रति एकड़ बुवाई के तुरंत बाद 0-3 दिन तक छिड़काव कर सकते है।घासकुल, मोथाकुल एवं चैडी पत्ती वाले खरपतवार के लिए इमेजेथापायर 300 मिली प्रति एकड़ बुवाई के 20 दिन बाद खड़ी फसल में छिड़काव करें।घासकुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण के लिए क्यूजालोफाप ईथाइल (टरगासुपर) 400 मिली प्रति एकड़ बुवाई के 15-20 दिन बाद खड़ी फ़सल में छिड़काव करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, फावड़ा, खुर्पी, हंसिया आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।