ग्लेडियोलस की खेती

प्राकृतिक सुंदरता विश्व में कई रूपों में बिखरी है और उनमें पुष्पों का अत्यंत विशिष्ट स्थान है। इन्हीं पुष्पों में एक पुष्प ग्लेडियोलस भी है जो कि आज विश्व के चुनिंदा सर्वाधिक लोकप्रिय, सुंदर तथा व्यवसायिक पुष्पों में अपना विशेष स्थान रखता है। ग्लैडियोलस एक ऐसा पुष्प है जो अपनी सुंदरता, अनेक रंगों व गुलदस्ते में अपनी दीर्घायु के कारण मशहूर है। इसके फूलों की मांग काफी बढ़ी है।


ग्लेडियोलस

ग्लेडियोलस उगाने वाले क्षेत्र

भारत में ग्लेडियोलस की खेती हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक, आदि राज्यों में व्यावसायिक तौर पर की जातीहै।

ग्लेडियोलस की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

ग्लैडियोलस के फूलों में बहुत सारे औषधीय उपयोग होते हैं और इसलिए इसका उपयोग आम सर्दी, कब्ज और दस्त को ठीक करने के लिए किया जा सकता है। पहले के समय में, इन फूलों की जड़ों को बकरी के दूध के साथ मिलाया जाता था, और पेट के दर्द को दूर करने के लिए बच्चों के लिए एक पेय के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

बोने की विधि

पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 x 20 सेंटीमीटर होना चाहिए तथा 5 सेमी. की गहराई पर रोपाई करनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

ग्लेडियोलस की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयोगी पायी गयी है। मिट्टी में जीवांश पदार्थ की अधिक मात्रा होनी चाहिए। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए।

बीज की किस्में

ग्लेडियोलस के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

1. जल्दी फूल देने वाली किस्म - सुप्रीम, स्नोप्रिंस, सूर्य किरण, मार्निंग किस, फ्रैंडशिप, हैप्पी, मैलोडी एवं सैंसर 2. मध्यम समय में फूल देने वाली किस्म - पैट्रिसिया, बिस-बिस, सुचित्रा, येलो स्टोन, नीलम, रत्ना बटरलाई एवं अमेरिकन ब्यूटी, 3. अधिक समय में फूल देने वाली किस्म - मयूर एवं पूसा सुहागिन, हंटिंग साँग एवं व्हाइट फ्रैंडशिप

बीज की जानकारी

ग्लेडियोलस की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

ग्लैडियोलस के कन्द किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

बीज कहाँ से लिया जाये?

ग्लैडियोलस के कन्द किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

ग्लेडियोलस की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

ग्लेडियोलस की खेती हेतु जीवांश की ज्यादा आवश्यकता होती है इसलिए 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रयोग करने से अच्छी किस्म के स्पाइक प्राप्त होते हैं। उर्वरकों में 60 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा मिट्टी चढ़ाते समय प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन अधिक मात्रा में प्रयोग करने से फसल में वानस्पतिक वृध्दि अधिक हो जाती है, जिससे स्वस्थ किस्म के स्पाइक प्राप्त नहीं होते हैं।

जलवायु और सिंचाई

ग्लेडियोलस की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

ग्लेडियोलस के घनकन्द की रोपाई से पहले क्यारियां बनाते समय खेत की हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। ऐसा करने पर ग्लेडियोलस के घनकन्द का रोपण करने पर जमाव अच्छा होता है। सर्दियों में 10 - 12 दिनों के बाद और गर्मियों में 6 - 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

ग्लेडियोलस की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. एफिड - विभिन्न प्रकार के एफिड ग्लेडियोलस के पौधों को प्रभावित करते हैं। इनका प्रकोप गर्मी के मौसम में सर्वाधिक होता है। यह ग्लेडियोलस की पत्तियों का रस चूसते हैं। इनकी रोकथाम के लिए मेलाथियान 50 % EC 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। 2. लाल मकड़ी - लाल मकड़ी ग्लेडियोलस की पत्तियों के निचले भाग पर आक्रमण करती है। इसका बहुत अधिक प्रकोप होने पर होने वाला रोग पत्तियों के साथ - साथ पूर्ण पौधों पर भी फैल जाता है। यह पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण ग्लेडियोलस की पत्तियां चितकबरी हो जाती हैं। इससे प्रभावित पौधों से अच्छी गुणवत्तायुक्त पुष्पोत्पादन नहीं हो पाता है। इसकी रोकथाम के लिए डाइकोफॉल 1 मिलीलीटर का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। 3. यूरेजियम (फ्यूजेरियम फाइटोप्थोरा) - यह यूजेरियम कवक से होने वाला रोग है। इस रोग से प्रभावित घनकंदों से तैयार पौधों की पत्तियां भूरी होने लगती हैं तथा पौधे सूख जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए, फसल चक्र को अपनाना चाहिए तथा मिट्टी को रसायन से उपचारित करना चाहिए। ग्लेडियोलस के घनकंदों को रोपण करने से पहले कैप्टान 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में एक घंटे के लिए उपचारित करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार का निवारक उपचार हम फसल चक्र के द्वारा,खेत की जुताई कर,सिचाई का उचित प्रबंध कर, और पौधे का जैविक मल्चिंग कर करते हैं! इससे फसल की गुणवता कायम रहती है और फसल को कोई नुकसान नही पहुचता है!

सहायक मशीनें

किसी खास मशीन की जरुरत नही पड़ती