अदरक की खेती

भारत विश्व के अदरक उत्पादकों में प्रमुख स्थान पर है। अदरक के कई औषधीय गुण है। इसकी खेती बालुई, चिकनी, लाल या लेटेराइट मिट्टी में उत्तम होती है। अदरक बोने के लिए मई का महीना सही होता है। पर जहाँ सिंचाई से खेती होती फ़रवरी या मार्च का महीना सही होता है।


अदरक

अदरक उगाने वाले क्षेत्र

अदरक के उत्पादन का बहुत बड़ा भाग केरल से प्राप्त होता है। इसके साथ की अदरक उत्तराखंड के कुमायूँ और गढ़वाल की पहाड़ियों, तराई और भावर और चकरोता देहरादून क्षेत्रों, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के कुछ भागों में उगाई जाती है। विश्व का लगभग 50% उत्पादन भारत में ही उत्पन्न होता है।

अदरक की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

अदरक में प्रोटीन, वसा, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, राइबोफ्लेविन, विटामिन सी निकोटिनिक अम्ल, विटामिन ए आदि तत्व पाये जाते हैं।

बोने की विधि

बीज प्रकन्दों को बोने से पूर्व 0.25% डाइथेन एम-45 और बाविस्टिन (0.1%) के मिश्रित घोल में 1 घंटे तक डुबोना चाहिए। फिर एक-दो दिन छाया में सुखाना चाहिए। बाद में इन्हें 4 सेमी की गहराई में भूमि में दबा देना चाहिए। पंक्तियों की आपसी दूरी 25-30 सेमी और पौधों की आपसी दूरी 15-20 सेमी रखना चाहिए। बीज प्रकन्दों को मिट्टी से भली-भांति ढक देना चाहिए। बुवाई के तुरंत बाद ऊपर से घास-फूस पत्तियों व गोबर की खाद से भली-भांति ढक देना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के अंदर नमी बनी रहती है और तेज धूप के कारण अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

अदरक की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। लेकिन उचित जल निकास वाली दोमट या रेतीली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।अप्रैल-मई में मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए और उसके उपरान्त 4-5 जुताइयां देशी हल से करके पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

अदरक के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) सुरभि - इस किस्म को उत्परिवर्तन से विकसित किया गया है। यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसके प्रकन्दों में रेशा 4%, तेल 2.1% पाया जाता है। प्रकन्द अधिक संख्या में बनते हैं जिनका छिल्का गहरे चमकीले रंग का होता है।(ii) सुप्रभा - इस किस्म में फुटाव अधिक होता है। इसके प्रकन्द लंबे अण्डाकार सिरों वाले, चमकीले भूरे रंग के होते हैं। जिनमें रेशा 4.4 प्रतिशत, तेल 1.9 प्रतिशत, ओलेरिओसिन 8.91 प्रतिशत होता है। यह किस्म पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अति उत्तम है। (iii) सुरुचि - यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसके प्रकन्द हरापन लिए पीले रंग के होते हैं जिनमें रेशा 3.8 प्रतिशत, तेल 2 प्रतिशत और ओलेरिओसिन 10% होता है। इसमें रोग कम लगते हैं।

बीज की जानकारी

अदरक की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हेक्टेयर के लिए लगभग 20 से 25 कुंतल बीज प्रकन्दों की आवश्यकता होती है। बोने के लिए रोगमुक्त बीज प्रकन्दों की आवश्यकता होती है। जिन्हें 4 से 5 सेमी के टुकड़ों में विभाजित कर लेना चाहिए। प्रत्येक टुकड़े का भार 25 से 30 ग्राम होना चाहिए और उसमें दो आंखें अवश्य होनी चाहिए।

बीज कहाँ से लिया जाये?

अदरक का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही लेना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

अदरक की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

अदरक की फसल के लिए कितना खाद व उर्वरक होना चाहिए इसका पता लगाने के लिए मृदा जांच अनिवार्य है। यदि किसी कारणवश मृदा जांच ना हो सके, तो उस स्थिति में 20-25 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद भूमि की तैयारी से पूर्व खेत में मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा प्रकन्द लगाते समय डालना चाहिए तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा को बुवाई के 50-60 दिन बाद खेत में डालकर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

अदरक की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

अदरक की खेती में बराबर नमी का बना रहना बहुत ही आवश्यक है। इसलिए इसकी खेती में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। फिर भूमि में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।

रोग एवं उपचार

अदरक की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) मृदु विगलन या प्रकंद विगलन - इस रोग के प्रकोप के कारण पौधे की नीचे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। बाद में पूरा पौधा पीला पड़कर मुरझा जाता है। पौधों को खींचने पर वह प्रकन्द से जुड़े स्थान से सुगमता से टूट जाता है। बाद में पूरा प्रकन्द सड़ जाता है। इस रोग के बीजाणु भूमि में विद्यमान रहते हैं और बीज के रूप में प्रयुक्त प्रकन्द भी बीजाणु अपने साथ ले जाते हैं। इसलिए रोग से प्रभावी बचाव हेतु दोनों को ही उपचारित करना पड़ता है। रोकथाम - भूमि में चेस्टनट क्म्पानेण्ट के 0.6 प्रतिशत घोल को आधा लीटर प्रति पौधे की दर से देना चाहिए। बीज प्रकन्दों को 0.25 प्रतिशत सांद्रता को घुलनशील सेरेसन में बुवाई से पूर्व 30 मिनट तक या 0.3 प्रतिशत विटीग्राम से 1 घंटे तक उपचारित करना चाहिए। (ii) पत्तियों के धब्बे - यह रोग फिलोस्टिकटा जिन्जिबेरी नामक फफूँदी के कारण होता है। पत्तियों पर अण्डाकार या अनियमित आकार के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में आपस में मिल जाते हैं। पौधों की व्रद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। प्रकन्दों की उपज भी कम मिलती है। रोकथाम - किसी भी ताम्रयुक्त रसायन का 0.3 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करने से रोग की रोकथाम होती है।

खरपतवार नियंत्रण

अदरक के खेत को खरपतवार रहित रखने और मिट्टी को भुरभुरी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। अदरक की फसल अवधि में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करना पर्याप्त होता है। प्रत्येक गुड़ाई के उपरांत मिट्टी अवश्य चढ़ायें।पलवार - पत्तियों का पलवार देने से अंकुरण अच्छा होता है और खरपतवार भी कम लगते हैं। तीन बार पलवार देने से अधिकतम उपज मिलती है। 5000 किलोग्राम हरी पत्तियों का पलवार बुवाई के तुरंत बाद इतनी ही पत्तियों का पलवार 30 दिन व 60 दिन बाद देते हैं। जब पौधे 20-25 सेमी ऊंचे हो जायेे तो उन पर मिट्टी चढ़ा देते हैं।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।