रागी की खेती

रागी की खेती दाने तथा चारे के लिए की जाती है। भारत में उगाए जाने वाले लघु धान्यों में रागी सबसे महत्वपूर्ण एवं जीविका प्रदान करने वाला अन्न है। प्राय: गरीब आदिवासी ही इसेके दाने का प्रयोग खाने में करते हैं। खाने में इसका स्वाद भले ही अच्छा न लगे परंतु रागी का दाना काफी पौष्टिक होता है, जिसका आटा व दलिया बनाया जाता है। आटे से रोटी, पारिज, हलवा तैयार किया जाता है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह विशेष रूप से उपयोगी है।


रागी

रागी उगाने वाले क्षेत्र

रागी की खेती मुख्य रूप से बिहार ,राजस्थान, महाराष्ट्र , ओडिशा ,तमिलनाडू राज्य में की जाती है 

रागी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

प्रोटीन - 7.30 ग्राम, वसा - 1.30 ग्राम, रेशा - 3.60 ग्राम, लौह - 3.90 मिग्रा, कैल्शियम -334 मिग्रा, थायमीन 0.42 मिग्रा, राइबोफ्लेविन - 0.19 मिग्रा.

बोने की विधि

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22 सेमी तथा पौध से पौध की दूरी 7-8 सेमी रखनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

उत्तम जल-निकास वाली दोमट से हल्की दोमट भूमि रागी की खेती के लिए उपयुक्त रहती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

रागी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

गोदावरी, एकेपी-2, आई-28, पद्मावती, आएरयू-1, बीआर-2, एमआर-374, पीआर-202,एचआर-374,एचआर-376,बीआर407, दिव्यासिंहा, व्हीएल-101,व्हीएल-102,व्हीएल-146, पन्त मंडुआ-3(विक्रम), निर्मल, गुजरात नगली-1, आदि।

बीज की जानकारी

रागी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

प्रति हैक्टेयर 8-10 किग्रा बीज तथा छिटकवाँ विधि से बुवाई करने पर बीज की मात्रा 12-15 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

रागी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

5-7 टन गोबर की सड़ी खाद अंतिम जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। उर्वरक में 60 किग्रा नत्रजन, फॉस्फोरस 30 किग्रा तथा 20-30 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा बुवाई के 20-25 दिन बाद प्रयोग करनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

रागी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

खरीफ में बोई जाने वाली फसल को प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि वर्षा सही समय पर न हो तो 1 या 2 सिंचाई करना लाभप्रद होता है। ग्रीष्म तथा रबी में बोई गई फसल में 2-3 सिंचाई कीआवश्यकता होती है।

रोग एवं उपचार

रागी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रागी के प्रमुख कीट तना छेदक, मक्खी, गॉल मिज, ग्रॉस हॉपर, सफेद ग्रब्स आदि हैं। इनके नियंत्रण के लिए फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3जी 15 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।  गॉल मिज कीट भरते हुए दानों को नुकसान पंहुचाती है, जिससे दाना खराब हो जाता है। बालियाँ बनते समय इंडोसल्फान 4% पाउडर की 20 किग्रा मात्रा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से भुरकाव करने से कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।

खरपतवार नियंत्रण

फसल बोने के 20-25 दिन के बाद एक बार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। दूसरी निकाई-गुड़ाई 40-45 दिन में अवश्य पूरी करनी चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के बाद तथा अंकुरण के पूर्व आइसोप्रोट्यूरान नामक रसायन 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़कना चाहिए। इसके अलावा बुवाई के 40-45 दिन बाद 2,4-डी सोडियम लवण 400 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से सँकरे व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरो, कल्टीवेटर, कुदाल,खुर्पी, फावड़ा, आदि यन्त्रों की आवश्यकता होती है।