सौंफ की खेती

सौंफ एक खुशबूदार पौधा है। यह नकदी वाली फसल है। सौंफ को मुख्य रूप से मसाले के लिए उगाया जाता है। शुष्क बीजों को अचार, शाक, चटनी आदि के लिए उपयोग किया जाता है। इनके अलावा सूप बनाने, माँस-मछली आदि को मसाले से सुगंधित बनाने, डबल रोटी, पेस्ट्री और विभिन्न प्रकार की मिठाइयां बनाने के लिए उपयोग होता है। सौंफ के बीजों से तेल भी निकाला जाता है। इसमें 14 - 22 प्रतिशत प्रोटीन, 12.0 - 18.5 प्रतिशत वसा पाई जाती है। भारत में सौंफ की खपत विशेष रूप से खाने के काम में आती है।


सौंफ

सौंफ उगाने वाले क्षेत्र

इस समय इसे व्यावसायिक स्तर पर गुजरात, राजस्थान, पंजाब, उत्तरप्रदेश, एवं पश्चिमी बंगाल में उगाया जाता है। इसके अलावा अन्य प्रदेशों में इसका उत्पादन छोटे स्तर पर किया जाता है। दक्षिणी भारत में कर्नाटक के बेलगांव और धारवाड़ जनपदों में सौंफ की खेती की जाती है।

सौंफ की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

नमी - 6.30, कैल्शियम-1.30, प्रोटीन-9.50%, फास्फोरस-0.48% वसा-10%, लोहा-0.01%, रेशा-18.50%, सोडियम-0.09% कार्बोहाइड्रेट्स-42.30% पोटेशियम-1.7%, खनिज लवण-13.40 विटामिन बी1-9.41gm/100gm, विटामिन 'ए'-10.40 आई.यू./100gm, विटामिन बी2-0.36% तदैव, कैलोरी-370, विटामिन 'सी'-12.00 तदैव

बोने की विधि

आमतौर पर कृषक सौंफ की बुवाई छिटकवां विधि से करते हैं। इस विधि में कहीं बीज अधिक पड़ जाते हैं और कहीं कम, दूसरे कृषि क्रियाएं करने में कठिनाई होती है, उपज में भारी कमी हो जाती है। अतः इसकी बुवाई सदैव पंक्तियों में करनी चाहिए। बीजों को हल के कूंड़ों में बोते हैं। जब पौधे 7-10 सेमी ऊंचे हो जाएं तो उनके बीच अंतर 30 सेमी कर देना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

सौंफ को विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। किंतु इसकी सफल खेती के लिए उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। अधिक क्षारीय, अधिक अम्लीय मृदायें इसकी सफल खेती में बाधक रहती हैं। खेत की तैयारी से पूर्व उसमें 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट समान रूप से डालकर जुताई करना चाहिए। इसके उपरान्त 2-3 बार हैरों या कल्टीवेटर चलाना चाहिए। बाद में पाटा लगायें ताकि मिट्टी भुरभुरी एवं समतल हो जाये।

बीज की किस्में

सौंफ के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

एन.पी.(डी.) 32 व 186, एन.पी.(जे.) 131 व 269, एन.पी.(प.) 163, एन. पी.(के.)1, पी.एस.एस.1, उदयपुर एफ.31 व 32,

बीज की जानकारी

सौंफ की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

12 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। जबकि पौध तैयार करने के लिए 4-5 किलो बीज पर्याप्त होता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

सौंफ का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए। बीज की रसीद अवश्य लें।

उर्वरक की जानकारी

सौंफ की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

गोबर या कम्पोस्ट की खाद 20 टन, नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फास्फोरस 50-60 किलोग्राम, पोटाश 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जाना चाहिए।। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बोते समय तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा बोने के 45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

सौंफ की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सौंफ की फसल की सिंचाई भूमि की किस्म, वातावरण पर निर्भर करती है। पौधों के समुचित विकास एवं बढ़वार के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई पर्याप्त होती है। फूल निकालते समय अधिक पानी देने से पौधों की वानस्पतिक बढ़वार अधिक हो जाती है। बीज की उपज में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

रोग एवं उपचार

सौंफ की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

सौंफ के अंगमारी रोग ( ब्लाइट ) के नियंत्रण के लिए डायथेन, एम.45 या जिनेब नामक दवा को 2 – 2.5 किलो ग्राम प्रति 500 – 800 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें । यह छिड़काव 10 – 15 दिनों के अंतर से आवश्यकतानुसार करना चाहिए ।सौंफ के फूल व कोमल बीजों पर माहू ( एफिड ) के नियंत्रण के  लिए कीटनाशी दवा मेलाथियान 0.5 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करना चाहिए या डायक्लोसेवास 250 – 400 मि.लीटर, 500 – 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें ।

खरपतवार नियंत्रण

सौंफ के साथ उगे खरपतवारों के विनाश के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। आमतौर पर 3 बार निराई-गुड़ाई करनी आवश्यक होती है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल,देशी हल या हैरों, कल्टीवेटर, फावड़ा, खुर्पी, हसियां आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।