धतूरा की खेती

यह बारहमासी या वार्षिकी झाड़ी है, जिसे जड़ी - बूटी या पेड़ के रूप में दुनिया के ज्यादातर गर्म भागों में उगाया जाता है। यह एक लकड़ी जैसी पत्तेदार जड़ी बूटी है। इसमें सफेद या बैंगनी रंग के बड़े फूल होते है जिसमें ऊपर की तरफ समान काँटेदार बीज वाले फल होते हैं। पत्तियों का उपयोग सिगार या हुक्का में तम्बाकू के साथ या बिना तम्बाकू के, अस्थमा के इलाज के लिए किया जाता है। पार्किंसंस रोग में भी इसका उपयोग होता है। सर्जरी और प्रसव में, नेत्र विज्ञान में, पूर्व चेतना शून्य करने वाली औषधि के रूप भी इसका उपयोग किया जाता है।


धतूरा

धतूरा उगाने वाले क्षेत्र

यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यो में भी पाया जाता है।

धतूरा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

धतूरे का सेवन दमा, सूजन, गर्भधारण, मिर्गी, बवासीर और कमजोरी जैसी तमाम समस्‍याओं के लिए होता है

बोने की विधि

बीजों को पंक्तियों में 45 - 60 से.मी. की दूरी पर बोया जाना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करनी चाहिए।

बीज की किस्में

धतूरा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

आर आर एल परपल आर आर एल ग्रीन ।

बीज की जानकारी

धतूरा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

7-8 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर।

बीज कहाँ से लिया जाये?

धतूरा के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए! 

उर्वरक की जानकारी

धतूरा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

इसकी खेती में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाता है खेत की तैयारी के समय 4 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

धतूरा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

बुवाई या रोपण के तुरंत बाद बारिश की अनुपस्थिति में पहली सिंचाई करना चाहिए। मौसम की स्थिति के आधार पर 8-10 दिन के अतंराल पर सिंचाई की जानी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

जब पौधा 10-12 से.मी. ऊँचाई का हो जाता है तब पहली निकाई - गुड़ाई की जाती है। दो महीने के बाद दूसरी बार निकाई - गुड़ाई की की जानी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल आने के कुछ दिनों पहले 5 किग्रा/हेक्टेयर की दर से डिमिड (डायफेनामाइट) का छिड़काव करना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।