खजूर की खेती

 खजूर पाम फैमिली का सदस्य हैं, और ये ट्रॉपिकल क्लाइमेटिक कंडीशन में ही उगता हैं. वैसे ये मरुस्थलीय क्षेत्र की भी सबसे महत्वपूर्ण फसल हैं, लेकिन इसे सामान्य कृषि के अंतर्गत भी उगाया जा सकता हैं और अब भारत में भी इसका औद्योगिक उत्पादन होने  लगा हैं.


खजूर

खजूर उगाने वाले क्षेत्र

राजस्थान, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु, केरल आदि खजूर की खेती करने वाले प्रमुख राज्य हैं।

खजूर की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

खजूर की अधिकांश किस्में शर्करा, ग्लूकोज, व फ्रक्टोज के रूप में होती है, जो शक्कर नहीं खाने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। फलों के गूदे में लगभग 20% नमी के अतिरिक्त 70 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 60-64 प्रतिशत शर्करा, लगभग 2.5 प्रतिशत रेशा, 2 प्रतिशत प्रोटीन, 2 प्रतिशत से कम वसा, 2 प्रतिशत से कम खनिज तत्त्व (लोहा, पोटेशियम, कैल्शियम, तांबा, मैग्नीशियम, क्लोरीन,गंधक, फॉस्फोरस इत्यादि) तथा 2 प्रतिशत से कम पैक्टिक पदार्थ होते हैं। यह खून की कमी व अंधेपन जैसी बीमारियों से बचाता है। यह पोषण, दस्तावर व ऊर्जा के स्रोत के रूप में जाना जाता है। खजूर के फलों में विटामिन -ए, विटामिन बी-1 तथा विटामिन B2 भी पाए जाते हैं।

बोने की विधि

पंक्ति से पंक्ति तथा पौध से पौध के बीच की दूरी 8 मीटर रखनी चाहिए। इससे पौधे का समुचित फैलाव होता है और पौधों के बीच में की जाने वाली कृषि क्रियाएं सुगमता पूर्वक की जा सकती हैं। पौध लगाने से एक माह पूर्व 1 मीटर लम्बा,1 मीटर चौड़ा व 1 मीटर गहरे गड्ढे खोद लेने चाहिए। इन गड्ढों में भूमि के ऊपर की उपजाऊ मिट्टी, सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 25 ग्राम क्लोरोपायरीफॉस मिलाकर भर देना चाहिए जिससे कीटों का प्रकोप न हो। इस प्रकार तैयार गड्ढों में पौध की रोपाई कर देनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

खजूर की खेती के लिए बलुई दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। इसकी खेती हेतु पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा कर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

खजूर के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

बरही, खलास, हलावी, जाहिदी, खदरावी, शामरन, खुनजी, जगलूल, सेवी, आदि उन्नत किस्म हैं।

बीज की जानकारी

खजूर की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 156 पौधों की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

खजूर की खेती हेतु पौध किसी विश्वसनीय स्रोत से खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

खजूर की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खजूर के 1 से 4 वर्ष के पौधों को प्रति वर्ष 262 ग्राम नाइट्रोजन, 138 ग्राम फॉस्फोरस और 540 ग्राम पोटाश देना जरूरी होता है। इसके साथ अगस्त-सितंबर माह में 25-30 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति पौधे की दर से देना चाहिए। पांच वर्ष से अधिक आयु के खजूर के पौधों में प्रति वर्ष 40-50 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति पौधे की दर सेअगस्त-सितंबर माह में देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 650 ग्राम नाइट्रोजन, 650 ग्राम फॉस्फोरस तथा 870 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की दर से प्रयोग करना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

खजूर की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

खजूर के पौधे को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नही होती, फिर भी अच्छी उपज तथा पौधों के उचित विकास हेतु सिंचाई करना आवश्यक होता है। ग्रीष्म ऋतु में इसके पौधों की 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए और शरद ऋतु में महीने में एक बार सिंचाई करना आवश्यक है। जब पौधे पर फल बन रहे हो तब पौधे के पास नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

खजूर की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. खजूर का शल्क अथवा स्केल कीट - यह कीट खजूर की फसल के लिए बहुत हानिकारक होता है। इस कीट के निम्फ व मादा पत्तियों का रस चूस कर क्षति पहुंचाते हैं। अधिक प्रकोप होने पर ये कीट कच्चे फलों को भी खाते हैं। इन कीटों के प्रकोप से पौधों के सामान्य विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फल छोटे रह जाते हैं, ठीक से पक नहीं पाते और सूख जाते हैं। नियंत्रण हेतु इस कीट से अधिक प्रभावित पत्तियों को काटकर जला देना चाहिए तथा प्रभावित पत्तियों पर डाइमिथोएट 30 ईसी 1 मिली. अथवा मोनोक्रोटोफॉस 1.5 मिली. अथवा प्रोफेनोफॉस 50 ईसी 3 मिली. दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। 2. दीमक - यह भूमिगत व जमीन के पास के तने को खाकर क्षतिग्रस्त कर देता है। छोटे पौधों की वृद्धि रुक जाती है तथा वे मुरझाकर सूख जाते हैं। दीमक के नियंत्रण हेतु प्रत्येक माह या दो महीने के अन्तराल पर 1 मिलीलीटर क्लोरोपायरीफॉस प्रति लीटर पानी में घोलकर थाले में अच्छी तरह सिंचाई करना चाहिए। 3. पत्ती धब्बा रोग - यह रोग अल्टरनेरिया फफूँद द्वारा होता है। इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों की दोनों सतहों पर अनियमित आकार के भूरे-काले रंग के धब्बे पाये जाते हैं। रोग की उग्र अवस्था में पौधे के तने व फलों को भी प्रभावित करता है। रोकथाम हेतु अधिक प्रभावित पत्तियों को काटकर जला देना चाहिए तथा कर्बेंडाजिम 1 ग्राम या मेन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़कना चाहिए। 4. फल विगलन (फ्रूट-रॉट) - गुच्छों में हवा के कम संचार व अधिक वर्षा के कारण फलों के गलने की समस्या उत्पन्न हो जाते है। गुच्छों की छंटाई एवं सधाई द्वारा वायु संचार की समुचित व्यवस्था करके उन पर पकने से पूर्व कार्बेंडाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण हेतु उचित समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। प्रति वर्ष 5 से 6 गुड़ाई करनी चाहिए जिससे पौधे की उचित वृद्धि एवं विकास के साथ अधिक उत्पादन की प्राप्ति हो।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हेरौ या कल्टीवेटर, पॉवर वीडर,फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।