कपास की खेती

परिचय -कपास की खेती के लिए अधिक पानी की ज़रूरत होती है और इसकी सिंचाई के लिए लगभग 6% पानी का उपयोग किया जाता है। देश की औद्योगिक और कृषि अर्थव्यवस्था में यह कपास की एक प्रमुख भूमिका है।इसकी  फसल से  सूती वस्त्र उद्योग को बुनियादी कच्चा माल प्राप्त होता है। भारत में यह 6 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष आजीविका प्रदान करता है और लगभग 40-50 मिलियन लोग कपास व्यापार और इसके प्रसंस्करण में कार्यरत हैं। जलवायुकपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल है और इसके लिए 21  से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। जब तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो कपास की वृद्धि धीमी  हो जाती है। कपास के पौधे के लिए ज्यादा ठंड काफी हानिकारक है, इसे साल में कम से कम 21 डिग्री तापमान और बर्फ  मुक्त क्षेत्रों में उगाया जाता है।खेती का समय कपास के बिजाई का उचित समय अप्रैल महीने में होता है।कपास के फसल की अच्छी पैदावार और विकास के लिए ज़मीन को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी होता है। रबी की फसल को काटने के तुरंत बाद खेत को पानी लगाना चाहिए। इसके बाद खेत की हल से अच्छी तरह  जुताई करें और फिर सुहागा फेर दें।


कपास

कपास उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्रभारत में यह महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। गुजरात कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, इसके बाद महाराष्ट्र और पंजाब का नंबर आता है। यह पंजाब की महत्वपूर्ण खरीफ़  फसल है।

कपास की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य साबुत बिनौला में उच्च प्रोटीन (23%), वसा के रूप में उच्च ऊर्जा (20%), और सूखे पदार्थ के आधार पर कच्चे फाइबर (24%) होते हैं। सामान्य रूप से उपलब्ध अन्य प्रोटीन सप्लीमेंट्स की तुलना में, केवल साबुत बिनौला में ही उच्च ऊर्जा और उच्च फाइबर दोनों  उपलब्ध हैं I

बोने की विधि

बुआई किस्म के आधार पर उचित दूरी के साथ 10 मीटर लंबी लकीरें और खांचे बनाएं।मेड़ बनाने के लिए रिज हल या पूर्व में बांध का प्रयोग करें ताकि खेती की लागत को कम किया जा सके।रागी के ठूंठ वाले खेतों में, निर्दिष्ट अंतराल पर कपास के बीज डालें।देसी कपास की बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन का प्रयोग करें और हाइब्रिड या बी टी किस्मों के लिए गड्ढे खोदकर बिजाई करें।अंतरअमेरिकी कपास के लिए सिंचित स्थिति में 75x15 सेमी की दूरी रखें, जबकि वर्षा सिंचित परिस्थितियों में 60x30 सेमी की दूरी रखें । देसी कपास के लिए बारिश के साथ-साथ सिंचित स्थिति के लिए 60x30 सेमी की दूरी रखें।बुआई की गहराईबुआई 5 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए।बुवाई की विधिदेसी कपास की बुआई के लिए  देसी कपासकी स्थिति में  लिए सीड ड्रिल का उपयोग करें जबकि संकर और बीटी कपास के मामले में बीज की डिब्लिंग की जाती है। आयताकार रोपण की तुलना में वर्गाकार रोपण लाभदायक होता है।बीज के अंकुरण में विफलता और अंकुर की मृत्यु के कारण कुछ अंतराल (गैप ) उत्पन्न होते हैं।इस गैप को दूर करने के लिए फिलिंग जरूरी है।बिजाई के दो सप्ताह बाद कमजोर/रोगग्रस्त/क्षतिग्रस्त पौधों को हटा कर,स्वस्थ पौधों को लगा  देना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टीइसे 6 से 8 के बीच पीएच रेंज वाली सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। गहरी, भुरभुरी, अच्छी जल निकासी वाली और उपजाऊ मिट्टी इस फसल की खेती के लिए अच्छी होती है। रेतीली, लवणीय या जल भराव वाली मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। मिट्टी की गहराई 20-25 सेमी से कम नहीं होनी चाहिए। मिट्टी का शोधन जैविक विधि जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है।  इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं । 4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं ।रसायनिक विधि रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। 4-5 दिनों के पश्चात बुवाई करते हैं ।

बीज की किस्में

कपास के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

किसानो द्वारा दी गई प्रतिक्रिया पर आधारित है इसके अलावा कुछ जानकारी कंपनी द्वारा प्रोडक्ट के बारे में दिए गए विवरण से ली गई है। अपने विवेक से काम ले क्यूंकि अच्छे बीज के अलावा अन्य कारक जैसे मिटटी, जलवायु, बुवाई का समय, पोषक तत्व आदि बातें भी महतवपूर्ण होती है ।👉 RCH 773 :- Rasi seeds कंपनी की इस वैरायटी को किसानो की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है । इसका पौधा अच्छी ऊंचाई का तथा विगरस होता है । ये वैरायटी लीफ कर्ल वायरस के प्रति सहनशील है । रस चूसने वाले किटो के प्रति भी सहनशील है । बॉल बड़ी होती है । ये किस्म मध्यम भारी जमीन के लिए उपयुक्त है ।👉 RCH 776 :- Rasi seeds की इस किस्म (cotton variety) की बिजाई पिछले वर्ष काफी एरिया में किसानो द्वारा बोई गई तथा अच्छी प्रतिक्रिया मिली । इस किस्म पर फल श्रृंखला में आते है तथा कपास के बड़े गोले (बॉल) लगते है । रस चूसने वाले किटो के प्रति भी सहनशील है । बॉल पौधे पर बनी रहती है ।ये किस्म हल्की मध्यम जमीन के लिए उपयुक्त है ।👉 US 51 :- US agriseeds की ये किस्म (cotton Variety) काफी अच्छी है जो किसानो के बीच बहुत पसंद की गई ।ये किस्म पंजाब हरियाणा तथा राजस्थान के लिए उपयुक्त है । ये कपास की मध्यम परिपक्वता वाली हाइब्रिड किस्म है । रस चुसक किटो के प्रति सहनशील है ।उपज काफी अच्छी देती है । बॉल बड़े आकार की होती है ।इसकी चुगाई / कटाई आसान है ।👉 US 71 :- US 51 के बाद US agriseeds की इस किस्म (cotton Variety) ने भी कपास का काफी एरिया अपने नाम किया ।ये किस्म पंजाब हरियाणा तथा राजस्थान के लिए उपयुक्त है । ये कपास की मध्यम परिपक्वता वाली हाइब्रिड किस्म है । रस चुसक किटो के प्रति सहनशील है । उपज काफी अच्छी देती है । बॉल बड़े आकार की होती है ।इसकी चुगाई / कटाई आसान है ।👉 Surpass 7172 BGII :- ये बायर क्रॉप साइंस कंपनी की किस्म ( cotton variety) है । किस राज्य के लिए उपयुक्त उत्तर भारत राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा और राजस्थान समय कपास की सरपास किस्म 162 से 170 दिन का समय लेती है । ज्यादा पैदावार की क्षमता है ।कपास अच्छी खिलती है तथा चुगाई आसान है । सफ़ेद मक्खी तथा लीफ कर्ल वायरस के प्रति सहनशील है ।गेहूं कपास फसल चक्र के लिए ये किस्म अच्छी है ।👉 Surpass 7272 BGII :-किस राज्य के लिए उपयुक्त ये मध्यम अवधि की किस्म (cotton variety) उतरी भारत के राज्य जैसे हरियाणा, पंजाब व् राजस्थान के लिए उपयुक्त है । समय ये 162 से 170 दिन की वैरायटी है ।पैदावार ज्यादा देती है । खुला और सीधी बढ़ने वाली किस्म है और इसकी बॉल बड़ी होती है । सफ़ेद मक्खी तथा लीफ कर्ल वायरस के सहनशील है ।👉 Money Maker :- ये कावेरी सीड्स कंपनी की वैरायटी (cotton variety) है । इसकी बॉल बड़ी होती है । ये वैरायटी काफी अच्छी पैदावार देती है ।👉 Ajeet-199 BGII :- ये किस्म 140 से 150 दिन लेती है । पौधे की ऊंचाई 150 से 160 cm होती है । कपास के गोले (बॉल) का वजन 6 से 6.5 ग्राम होता है । ये किस्म कम पानी वाली जगह के लिए अच्छी है । पत्ते लाल होने की समस्या कम होती है । ये रस चुसक किटो और बीमारियों के प्रति सहनशील है । रेशे की क्वालिटी अच्छी होती है ।👉 Shriram 6588 :- ये मध्यम अवधि की किस्म (cotton variety) है । ये किस्म 165 से 170 दिन का समय लेती है ।बॉल का वजन 5 से 5.5 ग्राम होता है । अच्छी पैदावार देने वाली किस्म है ।मध्यम भारी जमीन के लिए उपयुक्त किस्म है ।👉BCHH 6488 BG II :-यह एक हाइब्रिड किस्म है, जिसके पत्ते हरे, तंग, उंगलियों के आकार और फूल क्रीम रंग के होते हैं। यह किस्म 165-170 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पिंजाई के बाद 34.5 प्रतिशत तक रूई प्राप्त होती है और रेशे की लंबाई 27 मि.मी. होती है पर इस किस्म पर पत्ता मरोड़ बीमारी और सूखा रोग के हमले का खतरा ज्यादा होता है।👉BCHH 6588 BG II :-यह किस्म किसानों में बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा अजीत 55, ATM, JK8940, RCH 650 काफी अच्छी किस्मे है ।👉जी.-27, लोहित एफ-320, प्रमुख, संकर-6, संकर-10, सुजाता, कीर्ति, संगम, सुविन तथा पूसा अगेती।

बीज की जानकारी

कपास की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर बुआई के लिए 3 किलो प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। बीज उपचारकुदरती ढंग से रेशा हटाने के लिए बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें, फिर अगले दिन गोबर और लकड़ी के बुरे या राख से बीजों को मसलें।  बिजाई से पहले बीजों को छांव में सुखाएं।रासायनिक बीज उपचार ढंग बीज के रेशे पर निर्भर करता है।अमेरिकन कपास के लिए 400 ग्राम शुद्ध सल्फियूरिक एसिड (औद्योगिक ग्रेड) को   प्रति 4 किलो बीज और देसी कपास के लिए 300 ग्राम शुद्ध सल्फियूरिक एसिड (औद्योगिक ग्रेड) प्रति 3 किलो बीज कोकी दर से  2-3 मिनट के लिए मिक्स करें।   इससे बीजों का सारा रेशा उतर जायेगा। फिर बीजों वाले बर्तन में 10 लीटर पानी डालें और अच्छी तरह से हिलाकर पानी निकाल दें। बीजों को तीन बार सादे पानी से धोयें और फिर चूने वाले पानी (सोडियम बाइकार्बोनेट 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से एक मिनट के लिए धोयें। फिर एक बार दोबारा धोयें और छांव में सुखाएं।

बीज कहाँ से लिया जाये?

कपास के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

कपास की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

कपास की अच्छी व गुणवत्तायुक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा को मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए।कपास मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी।उर्वरकों का अनुपात देशी व अमेरिकन किस्मों के लिए एनपीके 24:12:12 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें।देशी व अमेरिकन किस्मों के लिए :- विकल्प 1 - 👉यूरिया - 26 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय और बुवाई के 30 दिन बाद 13 किलो यूरिया और बुवाई 45 दिन बाद 13 किलो यूरिया खाद प्रति एकड़ टॉप ड्रेसिंग के दें।👉 एसएसपी ( सिंगल सुपर फॉस्फेट )- 75 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं ।👉 म्यूरेट ऑफ पोटास - 20 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं ।विकल्प 2 - 👉 यूरिया - 16 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय और बुवाई के 30 दिन बाद 13 किलो यूरिया और बुवाई 45 दिन बाद 13 किलो यूरिया खाद प्रति एकड़टॉप ड्रेसिंग के दें।👉 डीएपी-  27 किलोप्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं ।👉 म्यूरेट ऑफ पोटाश- 20 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं ।हाइब्रिड किस्मों के लिए :- उर्वरकोंका अनुपात एनपीके 40:20:20 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें। 👉 यूरिया - 44 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय और बुवाई के 30 दिन बाद 22 किलो यूरिया और बुवाई 45 दिन बाद 22किलो यूरिया खाद प्रति एकड़टॉप ड्रेसिंग के दें।👉 एसएसपी ( सिंगल सुपर फॉस्फेट )- 125 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं ।👉 म्यूरेट ऑफ पोटाश  - 34 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं ।घुलनशील खादें :- यदि बिजाई के 80-100 दिनों के बाद फसल को फूल ना निकलें या फूल कम हों तो फूलों की पैदावार बढ़ाने के लिए ज्यादा सूक्ष्म तत्व खाद 750 ग्राम प्रति एकड़ प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें। बी.टी किस्मों की पैदावार बढ़ाने के लिए बिजाई के 85, 95 और 105 दिनों के बाद 13:0:45  10 ग्राम या NPK 0.52.34 @ 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे शाम के समय करें।अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए पोटेशियम 10 ग्राम प्रति लीटर और डी.ए.पी. 20 ग्राम प्रति लीटर (पहले फूल खिलने के पहले प्रत्येक 15 दिनों के फासले पर 2-3 स्प्रे) की स्प्रे करें। कई बार वर्गाकार लार्वा गिरता है और इससे फूल झड़ने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए पलैनोफिक्स (एन ए ए) 4 मि.ली. और सूक्ष्म तत्व 120 ग्राम, मैगनीश्यिम सल्फेट 150 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।यदि खराब मौसम के कारण टिंडे झड़ते दिखाई दें तो इसकी रोकथाम के लिए 100 ग्राम 00:52:34+30 मि.ली. हयूमिक एसिड (12 प्रतिशत से कम)+ 6 मि.मी. स्टिकर को 15 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों की फसलों पर तीन स्प्रे करें।आज कल पत्तों में लाली बहुत ज्यादा दिख रही है, इसका मुख्य कारण पौष्टिक तत्वों की कमी है। इसे खादों के सही उपयोग से ठीक किया जा सकता है। इस तरह करने के लिए 1 किलो मैगनीश्यिम सल्फेट की पत्तियों पर स्प्रे करें और इसके बाद यूरिया 2 किलो को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

जलवायु और सिंचाई

कपास की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाईकपास की फसल को बारिश की तीव्रता के अनुसार चार से छः सिंचाई की जरूरत होती है।पहली सिंचाई बिजाई के चार से छः सप्ताह बाद करें। बाकी सिंचाइयां दो या तीन सप्ताह के फासले पर करें। छोटे पौधों में पानी जमा  ना होने दें। फूल और टिंडे को  बचाने के लिए, फूल निकलने और फूल गूलर  लगने के समय फसल को पानी की कमी नहीं रहने देनी चाहिए। जब टिंडे 33 प्रतिशत खिल जायें उस समय आखिरी सिंचाई करें और इसके बाद फसल को सिंचाई के द्वारा पानी ना दें।महत्वपूर्ण चरण तथा सिंचाई अंतरालशाखाएं और वर्गाकार गठन - बुआई के 45-50 दिन बादफूल और फलने की अवस्था - बुआई के 75-85 दिन बादगूलर बनना - बुआई के 95-105 दिन बाद गूलर विकास और गूलर खुलना - बुआई  के 115-125 दिन बाद 

रोग एवं उपचार

कपास की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

कीट प्रबंधन 1)थ्रिप्स :नुकसान के लक्षण: छोटे और बड़े थ्रिप्स पत्तों के निचली ओर से रस चूसते हैं। पत्तों का ऊपर वाला हिस्सा भूरा हो जाता है और निचला हिस्सा चांदी जैसे सफेद रंग का हो जाता है। नियंत्रण: इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 WS 7 मिली/किलोग्राम से बीजोपचार करने से फसल को एफिड्स, लीफ-हॉपर और थ्रिप्स से 8 सप्ताह तक बचाया जा सकता है।मिथाइल डेमेटोन 25 ईसी 160 मिली/एकड़ या  बुप्रोफेज़िन 25% एससी 350 मिली/एकड़, या फिप्रोनिल 5% एससी @ 200-300 मिली/एकड़,या  इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्लूजी @10-30 मिली/एकड़ जैसे कीटनाशकों में से किसी एक का छिड़काव करें। या  थियामेथोक्सम 25% डब्ल्यूजी 30 ग्राम  200 लीटर पानी में प्रति एकड़ का प्रयोग करें ।2 ) सफेद मक्खी (वाइट फ्लाई ):नुकसान के लक्षण: निम्फ पीले अंडाकार होते हैं जबकि वयस्क पीले शरीर के होते हैं जो सफेद मोम के फूल से ढके होते हैं।वे पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण खराब होता है। यह लीफ कर्ल वायरस रोग को स्थानांतरित करने के माध्यम के रूप में भी कार्य करता है।गंभीर संक्रमण में पतझड़, गूलर का गिरना और गूलर का खराब खुलना देखा जाता है।कालिख का विकसित  सांचा, पौधे बीमार और काला बना देते हैं। नियंत्रण: सफेद मक्खी की निगरानी के लिए पीले चिपचिपे जाल (2 ट्रैप/एकड़) लगाएं। यदि सफेद मक्खियों का हमला दिखे तो इसके नियंत्रण के लिए ट्रायाजोफॉस 3 मिली/लीटर या थियाक्लोप्रिड 4.5 ग्राम/लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 4 ग्राम या 75 WP एसीफेट 800 ग्राम/200 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 40 मिली/एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। थियामेथोक्सम 40 ग्राम 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में दें।3 ) मीली बग: नुकसान के लक्षण: ये पौधे के विभिन्न भागों से रस चूसते हैं और इस प्रकार पौधे को कमज़ोर कर देते हैं। नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए ऐसीफेट 20% इ.सी का 1 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। 4 ) गुलाबी सुंडी (पिंक बॉलवर्म)नुकसान के लक्षण: इसके प्रभाव से बॉल  पर नियमित, गोलाकार बोर होल दिखने लगते है |  लार्वा अपने सिर को अकेले अंदर धकेल कर और शरीर के बाकी हिस्सों को बाहर छोड़कर बॉल  को खाता है | बॉल   होल के बाहर दानेदार मल की उपस्थिति होने लगती है।एक अकेला लार्वा 30-40 बीजकोषों को नुकसान पहुंचा सकता है।नियंत्रण: खेत में फेरोमोने ट्रैप @ 5 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें।इसकी रोकथाम के लिए फ्लुबेंडियामाइड 39.35% एससी की 40 -50  मिली / एकड़ या इंडोक्साकार्ब 14.5% एससी 200 मिली/एकड़ की स्प्रे करे|  5 ) लीफ हॉपरनुकसान के लक्षण: बच्चे और वयस्क हरे रंग के होते हैं और पत्तों की निचली सतह से रस चूसते रहते हैं। संक्रमित पत्ते निचे की और मुड़ जाते हैं और बाद में लाल या भूरे रंग के हो जाते हैं।नियंत्रण: पौधों की जड़ों के नजदीक क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4 जीआर @ 4 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से नमी वाली मिट्टी में डालें या इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 40-50 मि.ली. या एसेटामीप्रिड 75 ग्राम प्रति एकड़ की दर से पौधों पर स्प्रे करें।रोग प्रबंधन 1 ) फ्यूजेरियम विल्ट :नुकसान के लक्षण: पौधे मुरझा जाते हैं, पीले हो जाते हैं और पत्तियां गिर जाती हैं। पीलापन सबसे पहले पत्ती के किनारों के आसपास होता है और अंदर की ओर बढ़ता है।संक्रमित पौधे जल्दी फल देते हैं और छोटे बीजकोषों का उत्पादन करते हैं।यह छाल के ठीक नीचे एक गोलाई  में पाया जाने वाला कालापन और मलिनकिरण का कारण बनता है। यह फसल की सभी अवस्थाओं पर प्रभाव डालता है। नियंत्रण: फुसैरियम विल्ट को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरोधी किस्म का प्रयोग करें।एक ही खेत में कपास की लगातार बुवाई करने से बचें। उचित फसल चक्र अपनाएं। अच्छी जल निकासी प्रदान करें। ट्राइकोडर्मा विरडी  दवा  से  4 ग्राम प्रति किग्रा बीज के साथ बीज का उपचार करें। नियंत्रण के लिए थियोफानेट मिथाइल @10 ग्राम और यूरिया 50 ग्राम/10 लीटर पानी का घोल बनाकर पौधों के आधार के पास लगाएं। 2) अल्टरनेरिया लीफ स्पॉटनुकसान के लक्षण: पत्तियों पर छोटे, हल्के से भूरे रंग के, गोलाकार से अर्ध-गोलाकार आकार के गोल या अनियमित धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं।ग्रसित पत्तियाँ सूख कर गिर जाती हैं। इससे तने पर कैंकर हो सकते हैं। गूलर में संक्रमण फैल जाता है, फिर गूलर सड़ जाते हैं और बाद में गिर जाते हैं। सूखे, पोषक तत्वों की कमी और अन्य कीटों से प्रभावित पौधे रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।नियंत्रण: इस रोग को नियंत्रित करने के लिए टेबुकोनाजोल 1 मिली/लीटर या ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन + टेबुकोनाज़ोल 0.6 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे बुवाई के 60वें, 90वें और 120 दिन बाद करें।यदि खेत में इसका हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कैप्टन 500 ग्राम/200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ या 12% कार्बेन्डाजिम + 63% डब्ल्यूपी मैनकोजेब 25 ग्राम/10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 3) बॉल  रोटनुकसान के लक्षण: बीजकोषों पर भूरे और काले धब्बे बन जाते हैं, जो सभी बीजकोषों पर फैल जाते हैं।बीजकोष के अंदर या बाहर सड़ांध (सड़न) हो सकती है।बॉल्स समय से पहले नहीं खुलते या गिरते नहीं हैं।नियंत्रण: बुवाई के 45वें दिन से 15 दिनों के अंतराल पर कार्बेन्डाजिम @ 400 ग्राम या मैनकोजेब @ 400 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।4) जड़ सड़ननुकसान के लक्षण: एक से दो सप्ताह पुराने अंकुरों पर इसका प्रभाव दिखाई देता है , जिससे उस पर काले घाव, तने की कमर और अंकुर की मृत्यु हो जाती है, जिससे खेत में बड़े अंतराल हो जाते हैं।नियंत्रण: पौधों को बीमारी से बचाने के लिए  बुआई  से पहले बीज को ट्राइकोडर्मा विरडी  4 ग्राम प्रति किग्रा बीज से उपचारित करें।बुवाई का समय, जल्दी बुवाई (अप्रैल का पहला सप्ताह) या देर से बुवाई (जून का अंतिम सप्ताह) को समायोजित करें ताकि फसल उच्च मिट्टी के तापमान की स्थिति से बच सके।खेत में गोबर की खाद 4 टन/एकड़  या नीम की खली 60 किलोग्राम/एकड़ की दर से डालें।इसके नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर जड़ो में स्प्रे करे |  

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण खरपतवार का नियंत्रण खरपतवार नाशक रसायन के द्वारा किया जाता है।  रसायनिक खरपतवारनाशी का प्रयोग खरपतवार के उगने से पहले या उगने के बाद  करें जब मिट्टी में नमी हो। बुवाई के तीन दिन बाद, पेंडीमेथालिन  1.3 लीटर/ एकड़  का  विक्षेपण या पंखे के प्रकार के नोजल युक्त हाथ से संचालित स्प्रेयर का उपयोग करके लागू करें। शाकनाशी के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यह 40 दिनों तक खरपतवार मुक्त स्थिति सुनिश्चित करता है ।बुआई के 45 दिनों बाद  पर एक निराई हाथ से निराई करने से 60 दिनों  तक खरपतवार मुक्त वातावरण बना रहेगा।यदि बुआई के समय शाकनाशी न डाली जाए, तो बुआई के 18वें से 20वें दिन के बीच कुदाल और हाथ की निराई करें ।बिजाई के 6-8 सप्ताह बाद जब पौधों का कद लगभग 40-45 सेमी. हो, तो पेराकुएट (गरामोक्सोन) 24 प्रतिशत डब्लयू एस सी 500 मि.ली. प्रति एकड़ या ग्लाइफोसेट 1 लीटर को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।कपास की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 25 से 30 दिन की अवस्था में पाइरिथियोबैक सोडियम 6% + क्विज़ालोफोल एथिल 4% एमईसी ( हिटवीड मैक्स)400 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।  

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, फावड़ा, खुर्पी, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।