नारियल का सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ आर्थिक महत्व भी है। नारियल का फल प्राकृतिक पेय के रूप में, गिरी खाने एवं तेल के लिए, फल का छिलका व रेशा विभिन्न औद्योगिक कार्यो में तथा पत्ते जलावन, झाडू, छप्पर एवं खाद, आदि बनाने के उपयोग में लाते हैं जबकि लकड़ी का उपयोग फर्नीचर के उपयोग में करतें हैं। इसकी उपयोगिता को देखकर इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है।
नारियल के वृक्ष भारत में प्रमुख रूप से केरल, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में खूब उगते हैं। महाराष्ट्र में मुंबई तथा तटीय क्षेत्रों व गोआ में भी इसकी उपज होती है।
लगभग 397 ग्राम वजन वाले एक मध्यम आकार के नारियल में 1,405 कैलोरी होती है। यदि आप नारियल के मांस को लगभग 2 इंच के टुकड़ों में काटते हैं, तो कैलोरी की संख्या 159 प्रति टुकड़ा है। एक नारियल में कुल फैट लगभग 133 ग्राम होता है। एक 2 इंच के टुकड़े में लगभग 15 ग्राम कुल वसा होता है जिसमें 13 ग्राम संतृप्त वसा होता है।
नारियल को बोने का सही समय है जून-जुलाई का महीना व कटाई के लिए <p>नारियल की पौध रोपण के लिए जून-जुुुलाई का माह उपयुक्त होता है।</p> के महीने को उपयुक्त माना जाता है।
ढलान वाले क्षेत्रों में तथा लहरदार भूभागों में कोंटूर टेरसिंग या बांधो द्वारा भूमि की तैयारी की जाती है। निम्नवर्ती क्षेत्रों में जलीय स्तर से 1 मीटर ऊँचाई में टीला बनाकर रोपण के लिए स्थान तैयार किया जाता है। कृषि योग्य बनाए गए कायल क्षेत्रों में उन क्षेत्रों में पौध का रोपण किया जाता है। कम जल जमाव वाले दोमट मिट्टी में 1 मी. X 1 मी. X 1 मी. आकार का गढ्डा रोपण के लिए उचित हैं। नीचे चट्टानों वाली मखरली मिट्टी में 1.2 मी. X 1.2 मी. आकार के बड़े गड्ढे बनाने चाहिए। रेतीले मिट्टी में गड्ढे का आकार 0.75 मी. X 0.75 मी. X 0.75 मी. अधिक नहीं होना चाहिए
नारियल की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है।
नारियल के मुख्यत: दो किस्में हैं, लंबा और बौना। लंबी प्रजातियों में व्यापक तौर पर पश्चिम तटीय लंबा और पूर्वी तटीय लंबा उगाए जाते हैं। बौनी प्रजातियॉं आकार में कम होता है और इसकी आयु भी लंबी प्रजातियों की अपेक्षा कम होता है। लंबा x बौना(टी x डी) और बौना x लंबा (डी x टी) आदि दो प्रमुख संकर किस्में हैं
1.ऊंची किस्में (Tall varieties)-कपाडम, वेस्टकोस्ट टाँल,अंडमान ज्वाँइन्ट,लक्षद्वीप आर्डीनरी,लक्षदीव मीडियम, लक्षद्वीप माइक्रो,रंगून, कावेरी, कैतताली, गंगाभवानी, कोचीन चाइना, जावा स्याम, फिजी घई,तेगाई आदि।२.बौनी किस्में (Dwarf Varieties)-ड्वार्फ- ग्रीन,लक्षद्वीप स्माल, अंडमान ड्वार्फ, लक्षद्वीप ड्वार्फ, चावकट ड्वार्फ. मालद्वीप ड्वार्फ,फिलीपीन ड्वार्फ, चेन्थेंगू आदि प्रमुख किस्में हैं।
नारियल का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
नारियल की खेती के लिए मिट्टी में उर्वरक की मात्रा उचित होनी चाहिए। एक वर्ष के पौधों के लिए 40 किग्रा गोबर की खाद 50 ग्राम नाइट्रोजन, 40 ग्राम फॉस्फोरस व 135 ग्राम पोटाश दो वर्ष के पौधों के लिए20 किग्रागोबर की खाद 160 ग्राम नाइट्रोजन, 120 ग्राम फॉस्फोरस व 400 ग्राम पोटाश,3 वर्ष के पौधों के लिए 25 किग्रागोबर की खाद 330 ग्राम नाइट्रोजन, 240 ग्राम फॉस्फोरस व 810 ग्राम पोटाश,4 वर्ष के पौधों के लिए 30 किग्रागोबर की खाद 500 ग्राम नाइट्रोजन, 320 ग्राम फॉस्फोरस व 12,00 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की दर से देना चाहिए।
रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई करना नितान्त आवश्यक है वर्षा ऋतु में यदि समय पर वर्षा होती रहे तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है नारियल की फसल को प्राम्भिक अवस्था में अवस्था में अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।नारियल के बागानों में ड्रिप सिंचाई (Drip lrrigation) सर्वोत्तम सिंचाई प्रणाली है।
(i) फल सड़न एवं नट फ़ॉल (फल गिराव)- इस बीमारी के कारण मादा फूल एवं अपरिपक्व फल गिरते है। इसके चलते नव विकसित फलों तथा बुतामों (बटन) के डंठलों के समीप घाव दिखाई देते हैं जो अंतत: आंतरिक ऊतकों के नाश के परिणामी होते हैं। इसके नियंत्रण के लिए नारियल के मुकुट पर एक प्रतिशत बोर्डो मिश्रण या 0.5 प्रतिशत फाइटोलॉन नामक दवा का छिड़काव एक बार वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व और पुन: दो माह के अंतराल पर करना चाहिएं। (ii) कली सड़न-इस बीमारी में कोंपल (केंद्रस्थ पत्ती) जो कृपाण सदृश होती है झुकी तथा मुरझाई हुई दृष्टिगोचर होती है। जब बीमारी अपने उत्कर्ष पर पहुंचती है तो केन्द्रस्थ पत्ती मुरझा कर नीचे झुक जाती है और अंतत: नारियल का सम्पूर्ण मुकुट नीचे गिर जाता है तथा पौधा मर जाता है। मुकुट के कोमल पर्णाधार के सड़ने से सड़े अण्डों जैसी दुर्गंध निकलती है। इसके नियंत्रण के लिए मुकुट के सभी आक्रान्त ऊतकों को निकाल कर 10 प्रतिशत बोर्डोपेस्ट का लेप करें और जब तक नये प्ररोह नहीं प्रस्फुटित हो तब तक यह रक्षात्मक कवच बने रहने दें। आक्रांत नारियल के पड़ोसी नारियल वृक्षों के मुकुट पर एक प्रतिशत बोर्डो मिश्रण का छिड़काव कर उन्हें रक्षात्मक कवच पहनावें। तथा बीमारी के संभावित समय में प्राय: एक प्रतिशत बोर्डो मिश्रण का छिड़काव बार-बार करते रहे।
नारियल बाग़ में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए नियमित निराई-गुड़ाई एवं जुताई आवश्यक है। इन क्रियाओं से खरपतवार नियंत्रण तो होता ही है, साथ ही जड़ों में वायु का संचालन पर्याप्त रूप में होता है।
मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।
<p>नारियल की पौध रोपण के लिए जून-जुुुलाई का माह उपयुक्त होता है।</p>