कोको की खेती

चॉकलेट आज बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी की पसंद बन चुकी है। चॉकलेट की देश के हर गांव तक पहुंच बन गई है। चॉकलेट का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। चॉकलेट बनाने के लिए कोको की खेती की जाती है। कोको की खेती दुनियाभर में की जाती है। कोको की खेती कमाई का बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है


कोको

कोको उगाने वाले क्षेत्र

केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू में उगाये जाते है।

कोको की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

इसका उपयोग मुख्या रूप से मुँह मीठा करने वाली चॉकलेट उत्पादन के लिए होता है। इसके अन्य फायदे कुछ इस प्रकार हैं : रक्त चाप संचालन , मधुमेह से लाभ, मोटापा नियंत्रण।

बोने की विधि

दिसंबर-जनवरी महीने में बोया जाए ताकि रोपण-काल में, याने मई-जून में, 4-6 महीने के बीजू पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाएँ। कोको का, बीज प्रवर्धन या कायिक प्रवर्धन किया जा सकता है। 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

रेतीली मिट्टी और  लाल मिट्टी  इसके उत्पादन के लिए उपयुक्त है। मिटटी में पानी सोखने की क्षमता अधिक हो, अथवा काफी गहरी हो तो कोको की पौध बहुत जल्दी लगती और बढ़ती है।

बीज की किस्में

कोको के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

कोको का, बीज प्रवर्धन या कायिक प्रवर्धन किया जा सकता है। कोको को बीज द्वारा प्रचारित किया जा सकता है। फली से बीज निकालने होते हैं। कोको की फली परागण से लेकर कटाई के चरण तक पहुंचने में 150-170 दिन लेती है। फली के रंग के हरे से पीले (फॉरेस्टेरो) और लाल से पीले (क्रिओलो) में परिवर्तन से परिपक्वता की अवस्था दिखाई देती है। रोपण सामग्री की आनुवंशिक श्रेष्ठता सुनिश्चित करने के लिए बेहतर स्व-असंगत माता-पिता को शामिल करते हुए बाइक्लोनल या पॉलीक्लोनल बीज उद्यानों से बीजों का संग्रह करने की सिफारिश की जाती है। 

बीज की जानकारी

कोको की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

कोको के पौधे प्रति हेक्टेयर 614 लगाए जा सकते हैं। 

बीज कहाँ से लिया जाये?

कोको के बीज या नर्सरी  किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए। 

उर्वरक की जानकारी

कोको की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

प्रारम्भ में जैविक खाद देना उचित रहेगा। लेकिन तीन से पाँच वर्ष के बाद इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि कोको के पत्तापशिष्ट जैविक खाद का प्रचुर और उच्च स्रोत है। प्रति वर्ष एक बार 100 ग्राम नाइट्रोजन, 40 ग्राम पी 205 और 140 ग्राम के2o प्रति पेड़ दो खुराकों में देने की सिफ़ारिश की जाती है। रोपण के प्रथम वर्ष में उपर्युक्त खुराक की एक तिहाई दी जाए दूसरे वर्ष और तीसरे वर्ष में दो तिहाई उर्वरक का पूरी खुराक दी जाए। उर्वरक और खाद देते समय यह ध्यान रखें कि पेड़ों के चारों ओर थावले छिछले हो (वयस्क पेड़ के लिए जिनका घेरा 1.5 मी हो) ताकि सतही पोषण से जड़ों को कोई नुकसान न हो।

जलवायु और सिंचाई

कोको की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

कोको को खूब बारिश की आवश्यकता होती है। यदि बरसात में कमी हो तो उपयक्त सिंचाई करना अनिवार्य है।

रोग एवं उपचार

कोको की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

कोको पर आक्रमण करने वाले विभिन्न कीटों में मुख्य हैं फली वेधक, चाय मच्छर, चूहे, गिलहरियॉं, भूरे घुन, चूर्णी मत्कुण, आदि।

खरपतवार नियंत्रण

कोको के फसल से खरपतवार का प्रकोप होने पर निडाई गुड़ाई करते रहे।  निदाई गुड़ाई करने से पौधे के बढ़वार और उत्पादन में वृद्धि होती है 

सहायक मशीनें

कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।