ग्वार की खेती

ग्वार एक दलहन वर्गीय फसल है।ग्वार की फसल दाने, चारे, गोंद (ग्वार गम), हरी सब्जी तथा हरी खाद के लिए मुख्य रूप से खरीफ में उगाई जाती है। ग्वार गम का उपयोग औषधि निर्माण, खनिज उद्योग, कपड़ा व कागज उद्योग के साथ-साथ सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री जैसे लिपस्टिक, क्रीम, व शैम्पू बनाने में किया जाता है। ग्वार के दाने व चूरी पशुओ के लिए पोष्टिक आहार है। जायद में ग्वार मार्च माह में लगाया जा सकता है।


ग्वार

ग्वार उगाने वाले क्षेत्र

इसकी खेती देश के विभिन्न भागों, मुख्यतः शुष्क तथा अर्ध्द शुष्क क्षेत्रों में की जाती है। इन क्षेत्रों के किसानों की आय के साधन के रूप में यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण फसल है। ग्वार राजस्थान के पश्चिम प्रदेश की अतिमहत्वपूर्ण फसल है। अतः किसान भाइयों को उन्नत कृषि तकनीक से ग्वार उत्पादन करना चाहिये ताकि उन्हें फसल से अधिक से अधिक लाभ मिल सके।

ग्वार की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

नमी - 81.0 ग्राम, प्रोटीन -3 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट्स -11 ग्राम, वसा -0.2 ग्राम, रेशा -3.0 ग्राम, खनिज लवण - 1.0 ग्राम, कैल्शियम -130 मिलीग्राम, फॉस्फोरस -57 मिलीग्राम, लौह तत्व -1.0 मिलीग्राम।

बोने की विधि

बीजोपचार:- जैविक उपचार -इसके लिए 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में घोल लेवें। घोल ठण्डा होने पर इसमें 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर अच्छी तरह से मिला लेवें। इस घोल में 10 किलोग्राम बीज को अच्छी तरह से उपचारित करें ताकि सभी बीजों पर कल्चर की परत चढ जाये। अब बीजों को निकालकर छाया में सुखाकर शीघ्र ही बुवाई कर देवें। फसल को रोग मुक्त रखने हेतु बीज को ट्राईकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से भी उपचारित करना चाहिये l रसायनिक बीज उपचार :-बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बीज दर:- ग्वार की अकेली फसल हेतु 6से 7किलो उन्नत किस्म का बीज प्रति एकड़की दर से बुवाई करें। ग्वार की बुवाई कतार या पंक्ति में करें। कतार से कतार की दूरी 30 से 45 से.मी. रखें तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. रखें। बुवाई का उपयुक्त समय :-जुलाई का प्रथम पखवाङा (1 से 15 जुलाई) ग्वार की बुवाई के लिये सही होता है जबकी जल्दी पकने वाली किस्मों के लिये 20 से 30 जून सही समय होता है। 20 जून से पहले बुवाई करने पर पौधे की कायिक बढ़वार तो खूब होती है परन्तु उसमें फलियाँ कम लगती हैं जिससे बीज की उपज कम हो जाती है । 25 जुलाई के बाद बुवाई करने से भी बीज की उपज कम होती है। अतः ग्वार की बिजाई का उपयुक्त समय 01 से 15 जुलाई तक है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

ग्वार के लिए अच्छे वायु संचार वाली दोमट मृदायें उपयुक्त होती हैं। ग्वार की फसल लगभग सभी तरह की भूमि में ली जा सकती है परन्तु क्षारीय तथा जिस भूमि पर पानी ठहरता हो इसके लिए उपयुक्त नहीं है। मई माह में खेत को एक - दो गहरी जुताई कर छोङ देना चाहिये । मानसून की प्रथम वर्षा के साथ एक दो जुताई कर पाटा लगाकर खेत तैयार करना चाहिये । मानसून पूर्व खेत में गोबर की खाद चार पॉच ट्रोली प्रति एकड़की दर से अच्छी तरह बिछा लें।बुवाई से पूर्व खेत खरपतवार रहित तथा पर्याप्त नमीयुक्त होना चाहिये l

बीज की किस्में

ग्वार के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

ग्वार की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं :- आर.जी.सी. 936 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है l यह असिंचित (बारानी) क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है आर.जी.सी. 986 : यह अशाखित व मध्यम पकने वाली किस्म है जो सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयोगी है आर.जी.सी. 1002 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है l यह असिंचित व सिंचित दोनों परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त किस्म है आर.जी.सी. 1003 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है जो असिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। आर.जी.सी. 1066 : इस किस्म के पौधे शाखाओं रहित होते है । पौधे की ऊँचाई 60 - 90 सेमी. होती है । इस किस्म में फलियाँ जमीन से 2-3 सेमी. ऊपर से ही लगने लग जाती है । यह एक जल्दी पकने वाली (85 -90 दिन) किस्म है । यह किस्म खरीफ व जायद दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है एच.जी. 365 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है जो हरियाणा व राजस्थान के लिए उपयुक्त है एच.जी. 563 : यह शाखित एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जो की ग्वार उगाने वाले सभी क्षेत्रोँ के लिए उपयुक्त है एच.जी. 2-20 : यह शाखित एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जो असिंचित व सिंचित दोनों परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त है l इसकी खेती जायद ऋतु में भी की जा सकती है आर.जी.सी. 1031 : इस किस्म के पौधे भी अधिक लम्बाई वाले (74 - 108 सेमी.) व अधिक शाखाओं वाले होते है । यह देर से पकने वाली (110 - 114 दिन) किस्म है आर.जी.सी. 1017 : इस किस्म के पौधे छोटे (55-60 सेमी.) व अधिक शाखाओं वाले होते हैं । पौधे की पत्तियां किनारों पर अधिक कटी होती है ।यह किस्म 90 -100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है । आर.जी.सी. 1038 : इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई 60-75 सेमी. व शाखाओं युक्त होती है । यह किस्म 95 - 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है व खरीफ व जायद दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है लआर.जी.सी. 197 : यह बिना शाखाओं वाली किस्म है । इसके पौधे की लम्बाई 90 से 120 सेमी. होती है । यह किस्म 100 से 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है । आर.जी.एम. 112 : यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट व जड़ गलन रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है तथा लगभग 95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है l  कोयम्बटूर‐1‒यह जून व दिसम्बर में बोने के लिए उपयुक्त किस्म है, इसकी उपज 150क्विंटल प्रति एकड़प्राप्त होती है जो लवणीय क्षारीय और सीमांत मृदाओं में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं।  अर्का बहार‒यह खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। बीज बोने के 120 दिन बाद फल की तुडाई की जा सकती है। इसकी उपज 150 से 170क्विंटल प्रति एकड़प्राप्त की जा सकती है।पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड‒यह अगेती किस्म है। इसकी बेलों का बढ़वार अधिक और फैलने वाली होती हैं। फल गोल मुलायम /कच्चा होने पर 15 से 18 सेमी. तक के घेरे वाले होतें हैं, जों हल्के हरें रंग के होतें है। बसंत और ग्रीष्म दोंनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त हैं। पंजाब गोल‒इस किस्म के पौधे घनी शाखाओं वाले होते है। और यह अधिक फल देने वाली किस्म है। फल गोल, कोमल, और चमकीलें होंते हैं। इसे बसंत कालीन मौसम में लगा सकतें हैं। इसकी उपज 100 क्विंटल प्रति एकड़प्राप्त होती है।  पुसा समर प्रोलेफिक लाग‒यह किस्म गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त रहती हैं। इसकी बेल की बढ़वार अच्छी होती हैं, इसमें फल अधिक संख्या में लगतें हैं। इसकी फल 40 से 45 सेंमी. लम्बें तथा 15 से 22 सेमी. घेरे वालें होते हैं, जो हल्के हरें रंग के होतें हैं। उपज 150 क्विंटल प्रति एकड़होती है। नरेंद्र रश्मि‒यह फैजाबाद में विकसित प्रजाती हैं। प्रति पौधा से औसतन 10‐12 फल प्राप्त होते है। फल बोतलनुमा और सकरी होती हैं, डन्ठल की तरफ गूदा सफेद औैर करीब 150 क्विंटल प्रति एकड़उपज प्राप्त होती है।  पूसा संदेश‒इसके फलों का औसतन वजन 600 ग्राम होता है एवं दोनों ऋतुओं में बोई जाती हैं। 60‐65 दिनों में फल देना शुरू हो जाता हैं और 140 क्विंटल प्रति एकड़उपज देती है। पूसा हाईब्रिड‐3 ‒फल हरे लंबे एवं सीधे होते है। फल आकर्षक हरे रंग एवं एक किलो वजन के होते है। दोंनों ऋतुओं में इसकी फसल ली जा सकती है। यह संकर किस्म 225 क्ंवटल प्रति एकड़की उपज देती है। फल 60‐65 दिनों में निकलनें लगतें है।  पूसा नवीन‒यह संकर किस्म है, फल सुडोल आकर्षक हरे रंग के होते है एवं औसतन उपज 150‐200 क्ंवटल प्रति एकड़प्राप्त होती है, यह उपयोगी व्यवसायिक किस्म है।  Punjab Barkat:यह किस्म 2014 में जारी की गई है। इसके फल लंबे, हल्के हरे रंग के और बेलनाकार होते हैं। यह किस्म चितकबरा रोग के काफी हद तक प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 226 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। Punjab Long:यह किस्म 1997 में जारी की गई है। इसके फल चमकदार, बेलनाकार और हल्के हरे रंग के होते हैं। यह किस्म लंबे परिवहन के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  Punjab Komal:यह किस्म 1988 में जारी की गई है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि बिजाई के 70 दिनों में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं जो कि हल्के हरे रंग के होते हैं। इसकी प्रति बेल पर 10-12 फल होते हैं। यह किस्म खीरे के चितकबरे रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  Punjab Bahar:इस किस्म के फल गोल और हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 222 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

बीज की जानकारी

ग्वार की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक एकड़ क्षेत्र के लिए बीज उत्पादन के लिए 6-7 किग्रा बीज पर्याप्त होता है। सब्जी उत्पादन के लिए 5 किलों बीज प्रति एकड़ और चारा फ़सल के लिए 15 किलो प्रति एकड़ बीज काम में ले।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

ग्वार की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद एवं उर्वरक ग्वार एक दलहनी फसल होने के कारण इसके लिए नाइट्रोजन की विशेष आवश्यकता नहीं होती लेकिन पौधे की जड़ों में गाठो की संख्या बढ़ाने के लिए फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। फसल की बुवाई के समय 18 किग्रा फास्फोरस प्रति एकड़की दर से प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त 10 किग्रा नाइट्रोजन प्रति एकड़ वह गोबर की सड़ी हुई खाद 5 टन प्रति एकड़की दर से प्रयोग करनी चाहिए।  यूरिया :-11 किलों प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं। और 25 दिन बाद निराई गुड़ाई के उपरांत 11 किलो यूरिया का छिड़काव करें।  फॉस्फोरस :- 112 किलों एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं।  गोबर की खाद :- 5 टन खाद अच्छे उत्पादन के खेत में मिलाएं।

जलवायु और सिंचाई

ग्वार की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

आमतौर पर ग्वार की खेती वर्षा आधारित शुष्क व अर्ध शुष्क क्षेत्रों में की जाती है l लेकिन यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है तो फसल को पानी की कमी होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिये l मुख्यतः फूल आने पर एवं बीज बनने की अवस्था पर जीवन रक्षक सिंचाई अवश्य करनी चाहिये l बीज बनने के समय ज्यादा तापमान एवं निम्न आर्द्रता होने से फसल की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है l वर्षा आधारित क्षेत्रों में खेतों की मेढ़ बंदी कर वर्षा जल का संरक्षण किया जाना चाहिये l बुवाई के 25 व 45 दिन बाद थायोयूरिया के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करने से फसल में जल कि कमी को सहने की क्षमता बढ़ती है l

रोग एवं उपचार

ग्वार की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

एफिड्स(माहूयाचेंपा) यालीफ हॉपर (जैसिड) :-ग्वार की शीघ्र पकने वाली तथा एफिड रोधी किस्मों का चयन करें। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 10 मिली./15 लीटर या डायमेथएट 30 ई. सी. 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल  बना कर पौधों में छिड़काव करें। झुलसा रोग - यह एक भयंकर रोग है। इस रोग से धीरे-धीरे पौधों की सम्पूर्ण पत्तियाँ गिरने लगती हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 100 पी.पी.एम. दवा का छिड़काव करें। चूर्णी फफूँद रोग - यह फफूँद जनित रोग है। इसके नियंत्रण के लिए जिनेब का 0.20% घोल का छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण

निराई गुड़ाई:- बुवाई के 25 से 30 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करनी चाहिये । दूसरी निराई गुड़ाई यदि आवश्यकता हो तो 40 से 45 दिन पश्चात करनी चाहिये। समय पर निराई गुड़ाई करने से खरपतवार तो समाप्त होती ही है साथ ही भूमि में हवा का प्रवाह भी अच्छा होता हैं।रसायनिक नियंत्रण - 1. ग्वार फसल में अंकुरण पूर्व पेण्डीमिथलीन 500ग्रा./ एकड़ छिड़काव करें। 2. खड़ी फ़सल में20-25 दिन में इमेजाथायपर 300 ग्राम/ एकड़सक्रिय तत्व का 200 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करने पर सफलता पूर्वक खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता हैं।छिडकाव के लिए फ्लैट फेन नोजल पम्प का उपयोग करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, कल्टीवेटर, खुर्पी, फावड़ा, आदि यन्त्रों की आवश्यकता होती है।