गुलदाऊदी की खेती

पुष्प वाले पौधों में गुलदाउदी का प्रमुख स्थान है तथा अलंकृत बागवानी में गुलदाउदी का स्थान मुख्य फूलों वाले पौधों में आता है। इसे ऑटम क्वीन के नाम से भी जाना जाता है। हमारे देश में ही नहीं, बल्कि संसार के विभिन्न प्रगतिशील देशों में गुलदाउदी की प्रदर्शनियाँ लगाई जाती हैं तथा इसके उगाने वालों को विभिन्न प्रकार के पुरस्कार दिये जाते हैं। गुलदाऊदी एकवर्षीय तथा बहुवर्षीय होती है। एकवर्षीय गुलदाऊदी शरद ऋतु में ही हरा-भरा रहता है। इसका बीज सितंबर माह में पौधशाला में बौ दिया जाता है तथा अक्टूबर में क्यारियों में परिपक्व होकर पौधा समाप्त हो जाता है। बहुवर्षीय गुलदाउदी सदैव हरी-भरी बनी रहती हैं लेकिन पुष्प केवल शरद ऋतु में ही लगते हैं। इसका प्रसारण अधोभूस्तारियों द्वारा किया जाता है। इसकी सबसे अच्छी वृद्धि 8-16 डिग्री तापमान पर होती है।


गुलदाऊदी

गुलदाऊदी उगाने वाले क्षेत्र

भारत में इसकी व्यवसायिक खेती महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में होती है।

गुलदाऊदी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

गुलदाऊदी  काफी पौष्टिक और हृदय के लिए लाभकारी होती है। यह वीर्यवर्धक, शरीर की चमक बढ़ाने वाली, वात तथा पित्त को शान्त करने वाली तथा जलन को समाप्त करने वाली होती है। इसकी जड़ को चबाने से अकरकरा की जड़ के समान मुंह में चरमराहट उत्पन्न होती है। इसके फूल भोजन को पचाने वाले, हृदय को स्वस्थ रखने वाले तथा रक्त का प्रवाह ठीक करने वाले होते हैं।

बोने की विधि

इसका प्रवर्धन बीज एवं वानस्पतिक दोनों विधियों द्वारा होता है। बीज द्वारा प्रवर्धन मुख्यत: वैज्ञानिकों द्वारा नई किस्में विकसित करने के क्रम में होता है। बीज से प्रवर्धन वार्षिक गुलदाउदी में भी होता है। वानस्पतिक प्रवर्धन द्वारा प्राप्त पौधे आसानी से स्थापित हो जाते हैं तथा ये मजबूत एवं सीधे होते हैं। वानस्पतिक प्रसारण मुख्यत: जड़ से विकसित तनों, तनों की कटिंग एवं सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा होता है। फूल समाप्त होने के लगभग एक महीने बाद जड़ से विकसित तनों की वृद्धि बहुत होती है। जड़ से विकसित तनों, जो कि लगभग 10-15 सें.मी. लम्बे हों, को फरवरी-मार्च महीने में गमले या क्यारियों में लगा देते हैं। तनों की कटिंग मातृ पौधे से जून माह में लेते हैं। लगभग 4-6 सें.मी. लंबी एवं 3-5 मि.मी. व्यास वाली कटिंग को फफूंदनाशी वेवीस्टीन या केप्टान 2 ग्राम/ली. पानी में घोल कर उपचारित कर क्यारियों में लगाएं। जल्दी एवं अच्छी जड़ें प्राप्त करने के लिए कर्त्तनों (कटिंग) को सेरेडिक्स बी-1 या 2000 पी.पीएम, आई.बी.ए. में डुबाकर तुरन्त निकाल लें। इस तरह से कटिंग द्वारा पौधे लगभग 1 महीने में तैयार हो जाते हैं। बहुत से देशों में व्यावसायिक रूप से तथा वायरस रहित कटिंग तैयार करने के लिए उत्तक प्रवर्धन विधि का इस्तेमाल करते हैं।पौध रोपण: अधिक फूल प्राप्त करने के लिए जड़ द्वारा विकसित तनों को 30 X 30 सें.मी. की दूरी पर विभिन्न आकार की क्यारियों में लगाते हैं। पौधा लगाने का समय किसी क्षेत्र विशेष के ऊपर निर्भर करता है जो मार्च से अगस्त तक होता है। पौधों को गमलों में लगाने पर तीन बार गमले बदले जाते हैं।पहली बार 10 सें.मी. का गमला लेते है। लगाने का उचित समय फरवरी-मार्च होता है। इसमें मिश्रण के रूप में एक भाग बालू, एक भाग मिट्टी एवं एक भाग पत्ती खाद या गोबर की सड़ी खाद डालते हैं।दूसरी बार गमला को अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह में बदलते हैं। इसके लिए 15 सें.मी. का गमला चाहिए। इसमें मिश्रण के लिए एक भाग मिट्टी एक भाग बालू एवं दो भाग पत्ती खाद, एक भाग हड्डी चूर्ण या सिंगल सुपर फास्फेट एवं एक चौथाई भाग लकड़ी की राख डालते हैं।तीसरी एवं अंतिम बार गमला बदलने का काम अगस्त एवं सितम्बर महीने में करना चाहिए। इसके लिए 30 सें.मी. का गमला लेते हैं। इसमें एक भाग बालू, दो भाग मिट्टी, दो भाग पत्ती खाद, दो भाग गोबर की सड़ी हुई खाद दो चम्मच हड्डी चूर्ण या सिंगल सुपर फास्फेट एवं एक चौथाई भाग लकड़ी की राख मिलाकर गमले में भरते हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

गुलदाउदी के पौधे किसी भी तरह की भूमि में उगाए जा सकते हैं, लेकिन अच्छे फूल प्राप्त करने के लिए दोमट या बलुई दोमट भूमि जिस में जीवांश की पर्याप्त मात्रा हो, सर्वोत्तम रहती है। ग्रीष्मकाल में 30 से 40 सेमी गहरी खुदाई करें जिससे खरपतवारों की जड़े, कीट इत्यादि समाप्त हो जायें।

बीज की किस्में

गुलदाऊदी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) शांति - इसके फूलों से मूलतः सजावट की जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई लगभग 50 सेमी होती है। लंबे तने व अत्यधिक शाखा वाले पौधे एवं एक साथ खिलने वाली प्रजाति है। फूलों से माला, हार व गुलदस्ते बनाए जाते हैं। (ii) सद्भावना - इस प्रजाति के पौधे छोटे व लाल रंग के फूल पैदा करते हैं। इनके लिए लकड़ी का सहारा देने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार के फूल दिसंबर माह में खेलते हैं। इसकी खेती छोटे स्तर पर ही की जाती है। (iii) वाई 2 के. - यह प्रजाति भी छोटे पौधे व छोटे फूल उत्पन्न करती है। इसके लिए भी सहारा देने की आवश्यकता नहीं होती है, पर इसके फूल आने का समय सितंबर माह है। इसके पौधों की अधिकतम ऊंचाई 35 सेमी के लगभग है। छोटे स्तर पर इसकी खेती की जाती है। (iv) कारगिल 99 - कारगिल युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु इस प्रजाति का विकास किया गया। इसके फूल छोटे, चम्मच का आकार लिए हुए पीले रंग के होते हैं। इसकी पत्तियां वर्ष भर हरी-भरी एवं रंग-बिरंगी रहती हैं। इसके पौधे सघन, छोटे व सितंबर माह में अत्यधिक फूल पैदा करते हैं जो उचाई में लगभग 30 सेमी होते हैं।

बीज की जानकारी

गुलदाऊदी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

गुलदाऊदी  के रोपाई के लिए 45,000 पौधे प्रति एकड़ के घनत्व का प्रयोग करें। 

बीज कहाँ से लिया जाये?

गुलदाऊदी   के पौधे  किसी विश्वसनीय  स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

गुलदाऊदी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

300 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भूमि की तैयारी के समय डालना चाहिए। पौधा लगाने से पूर्व जब क्यारियां पूर्णत: तैयार हो जायें तो 100 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 75 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्यारियों में डालना चाहिए व् अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। अक्टूबर माह में 25 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से या 5 ग्राम यूरिया प्रति पौधे के हिसाब से डालकर सिंचाई करना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

गुलदाऊदी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पौधा लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करना अति आवश्यक है। इसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। वर्षा ऋतु में अधिक पानी से पौधे पीले पड़ना शुरू कर देते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि आवश्यकता से अधिक पानी को शीघ्र ही बाहर निकाल दिया जाए।

रोग एवं उपचार

गुलदाऊदी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

जड़ एवं तना सड़न - यह गर्म व आर्द्र वातावरण में अधिक फैलती है। यह बीमारी वानस्पतिक विधि से पौध सामग्री को तैयार करते समय नर्सरी में जल भराव होने के कारण होता है। संक्रमित पौधों की जड़ें, तने व पत्तियाँ गल जाती है। इसकी रोकथाम के लिए नर्सरी को 1% फार्मेल्डिहाइड के घोल से उपचारित करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

पौधे की अच्छी वृद्धि और खेत को नदीन मुक्त करने के लिए 2-3 हाथ से गोडाई की आवश्यकता होती है। रोपाई के 4 सप्ताह बाद पहली गोडाई करें।

सहायक मशीनें

इसमें किसी खास मशीन का उपयोग नहीं होता है