फूल गोभी की खेती

फसल सारांश:- फूलगोभी भारत में उगाई जाने वाली लोकप्रिय सब्जी है।फूलगोभी की खेती के लिए ठन्डे मौसम की आवश्यकता होती है। परिचय:-फूल गोभी को सब्जी के रूप में उगाया जाता है। इसका पौधा 15- 30 सेंटीमीटर ऊंचाई तक बढ़ता  है।इसके फूल में भरपूर मात्रा में विटामिन सी और बी6 पाया जाता है।जलवायु:- फूल गोभी की खेती करने के लिए ठन्डे और ज्यादा-वर्षा वाले क्षेत्र अनुकुल होते है।इसकी खेती के लिए 6 से 8 सिंचाई बार की आवश्यक होती हैं।  फूलगोभी की बुआई के समय 20- 30 डिग्री सेंटीग्रेट और कटाई के समय 10- 18 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अनुकूल होता हैं।फूल गोभी के अच्छे विकास के लिए 120- 140 सेंटीमिटर वार्षिक वर्षा अनुकूल होती है।खेती का समय:-फूलगोभी की अगेती किस्मों की रोपाई जून-जुलाई और पिछेती किस्मों की रोपाई अगस्त से नवंबर माह के पहले सप्ताह में करनी चाहिए। 


फूल गोभी

फूल गोभी उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र:- भारत में बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, हरियाणा और महाराष्ट्र फूल गोभी उगाने वाले प्रमुख राज्य हैं ।

फूल गोभी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य:- फूल गोभी के फूलों में कैलोरी, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी6, फोलेट, पैंटोथेनिक एसिड और पोटेशियम पाया जाता है।इसके फूलों का इस्तेमाल सब्जी बनाने के लिए किया जाता है।इसके पत्तों का इस्तेमाल पशु चारे में किया जाता हैं।यह एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोन्यूट्रिएंट प्रदान करता है जो शरीर को कई रोगों से बचाता है। इसमें  उपस्थित फाइबर वजन कम करने और पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए उपयुक्त होता हैं।

बोने की विधि

बुवाई:- रोपण सामग्री तैयार करना:-एक एकड़ खेत के लिए 40 वर्ग मीटर नर्सरी बीज बुआई के लिए जमीन की तैयारी में अच्छे से जुताई और खरपतवार मुक्त बनाने के लिए भूमि को दो से तीन बार जुताई कर देनी चाहिए।जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर जमीन को समतल बनाना चाहिए।उसके बाद खेत में खालिया बना लें और अगेती किस्मों के लिए  दो खलियों के बीच 45x45 से.मी. और पिछेती किस्मों के लिए 45x30 से.मी. का फैसला रखें।बीज की बुआई के समय बीज को 1- 2 सें.मी. की गहराई पर बोयें।क्षेत्र पर्याप्त होता है।नर्सरी तैयार करने के लिए जमीन से उठे हुए नर्सरी बैड बनाएं और उन्हें कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (2.5 ग्राम/लीटर) से भीगें।नर्सरी बैड उपचारित करने के बाद बीज को 10 सेंटीमीटर की दूरी पर बोएं।बीज बुआई के 25-30 दिन बाद पौधे खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।खेत में रोपाई :-जब पौधे 5-6 सप्ताह के हो जाए, तब वे रोपने योग्य होते हैं। जब 3-4 पत्तियाँ दिखाई देने पर और तना मोटा हो जाने पर पौधों का प्रत्यारोपण कर सकते हैं। अगेती किस्म के लिए पंक्ति से पंक्ति तथा पौध से पौध की दुरी 60 x 30 सेमी. तथा पछेती फसल के लिए पौध से पौध तथा पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60 x45 सेमी. रखते हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी:-फूल गोभी की खेती रेतली दोमट से चिकनी सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती हैं।देर से बीज रोपण वाली किस्मों के लिए चिकनी दोमट मिट्टी और जल्दी पकने वाली किस्मो के लिए रेतली दोमट मिटटी का चयन करना चाहिए।बेहतर फसल विकास के लिए 6.0 से 7.0 की पीएच रेंज वाली मिटटी का चयन करें।कम पीएच रेंज की मिटटी वाले खेतों की पी एच बढ़ाने के लिए खेत में चूना डालकर उसे बढ़ाया जा सकता है।फूल गोभी की खेती के लिए नमी धारण क्षमता व अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी सबसे अच्छी और उपयुक्त होती है।खेत की तैयारी:- 2-3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद खेत में पाटा लगाकर समतल और भुरभुरी बना लें।मिट्टी का शोधन जैविक विधि:- जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं । 4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार खेत में बीज बुआई से पहले अच्छी तरह मिला देते हैं।रसायनिक विधि:- रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। 4-5 दिनों के पश्चात बुआई करते हैं ।

बीज की किस्में

फूल गोभी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँपूसा स्नोबॉल 1:-इस किस्म के बाहरी पत्ते सीधे और ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं। इस किस्म के फूल सफेद होतें है।फूल गोभी की यह किस्म 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं।औसतन उपज -  90  क्विंटल/ एकड़पूसा सनोबाल के-1:- फूल गोभी की यह किस्म देरी से पकने वाली किस्म है। इस किस्म के फूल बर्फ के जैसे सफेद होतें है।फूल गोभी की यह किस्म 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं।औसतन उपज -  90  क्विंटल/ एकड़स्नोबाल 16:-फूल गोभी की यह किस्म देरी से पकने वाली किस्म है। इसके फूल सख्त और छोटे आकर्षित रंग के होते हैं।औसतन उपज - 120- 125 क्विंटल/ एकड़पंत शुभ्रा:-यह फूल गोभी की जल्दी पकने वाली किस्म है और यह उत्तरी भारत में बीजारोपण के लिए सिफारिश की जाती है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं।औसतन उपज - 80 क्विंटल/ एकड़  

बीज की जानकारी

फूल गोभी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर:- एक एकड़ में लगभग 16,000 से 20,000 पौधे रोपने की आवश्यकता होती है अगेती किस्मों के लिए 500 ग्राम, व पछेती और मुख्य किस्मों के लिए 250 ग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती हैं।बीज उपचार:-फूलगोभी की बीजारोपण खेत में सीधा बीज बोकर या फिर रोपण विधि द्वारा की जाती है। बीज की खेत या नर्सरी में बुआई से पहले उन्हें गर्म पानी  में 50 डिग्री सैल्सियस तापमान पर 30 मिनट के लिए उपचारित करे और उसके बाद बीजो को छाँव में सुखाएं। बुआई से पहले बीजो को कार्बेनडाज़िम 50 %डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

फूलगोभी के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

फूल गोभी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

फूलगोभी की अच्छी व गुणवत्तायुक्त फसल लेने के लिए उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए।फूलगोभी मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी।उर्वरकों का अनुपात - एनपीके 50:25:25 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें।नत्रजन :- 55 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 27 किलो यूरिया रोपाई के 30 से 35 दिन बाद और खड़ी फ़सल में 27 किलो यूरिया 50 से 55 दिन बाद खेत में डालें।फॉस्फोरस :- 157 किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।पोटाश :- 42 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।सूक्ष्म तत्वों का महत्व :- बोरोन - बोरोन की कमी से फूलगोभी का खाने वाला भाग छोटा रह जाता है| इसकी कमी से शुरू में तो फूलगोभी पर छोटे-छोटे दाग या धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं एवं बाद में पूरा का पूरा फूल हल्का गुलाबी पीला या भूरे रंग का हो जाता है, जो खाने में कडवा लगता है| फूलगोभी और फूल का तना खोखला हो जाता है तथा फट जाता हैं| इससे फूलगोभी की पैदावार और गुणवता दोनों में कमी आ जाती है| इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स 5 से 8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से अन्य उर्वरक के साथ खेत में डालना चाहिए। मॉलीब्डेनम - इस सूक्ष्म तत्व की कमी से फूलगोभी का रंग गहरा हरा हो जाता है तथा किनारे से सफेद होने लगती है, जो बाद में मुरझाकर गिर जाती है| इससे बचाव के लिए 600 ग्राम मॉलीब्डेनम प्रति की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए| इससे फूलगोभी का खाने वाला भाग अर्थात फल पूर्ण आकृति को ग्रहण कर ले। 

जलवायु और सिंचाई

फूल गोभी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई:-फूलगोभी के पौधों को मौसम के आधार पर पांच से आठ बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।पौध रोपण के तुरंत बाद खेत को सिंचित करना चाहिए।  उसके बाद मिटटी की नमी और मौसम के आधार पर गर्मियों में 7-8 दिन और सर्दिओं में 10-15 दिनों के अंतराल पर खेत की सिंचाई करें।

रोग एवं उपचार

फूल गोभी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग प्रबंधन और उपचार:-1. पत्ता बिंदु रोग (एन्थ्रेक्नोज)नुकसान के लक्षण:- पत्तों और तनों पर गहरे भूरे से काले घाव विकसित होते हैं। पौधे की वृद्धि रूक जाती है, रोग तने को घेर लेता है।नियंत्रण:- ओवरहेड (स्प्रिंकलर) सिंचाई से बचें। फलों के मिट्टी के संपर्क में आने से बचें।फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें।पौधों को कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी जा मैनकोज़ेब 75% डब्ल्यू पी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करें। 2. पत्तों के निचली तरफ धब्बे (डाउनी मिल्ड्यू)नुकसान के लक्षण:-पत्ती, की निचली सतह पर पाउडरी, भूरा, सफेद चूर्ण दिखाई देता है।जो बाद में पुरे पौधे में फैल जाता हैं और पत्तिया सुख जाती हैं।नियंत्रण:-बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित करें। यदि उपलब्ध हो तो रोग सहिष्णु या प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें, खेत और मेड़ को खरपतवार मुक्त रखें।पौधों को मैटालैक्सिल 8 %+ मैनकोजेब 64 %डब्लयु पी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें।    3 ). विल्ट (मुरझाना)नुकसान के लक्षण:- यह रोग किसी भी अवस्था में पौधों को प्रभावित कर सकता है। इसके हमले से पौधे कमजोर हो जाते हैं और रोग के शुरुआती चरण में पौधे पीले रंग के हो जाते हैं, और गंभीर संक्रमण में पौधे पूरी तरह से मुरझा जाते हैं।नियंत्रण:-पौधों को पानी की कमी या अत्यधिक सिंचाई से बचें। फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें, खेत और मेड़ को खरपतवार मुक्त रखें।रोग का संक्रमण दिखने पर पौधे के पास की मिटटी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम / लीटर पानी के साथ भीगें।4) युवा पौधों का गिरनानुकसान के लक्षण:- संक्रमित ऊतक नरम हो जाते हैं और पानी से लथपथ हो जाते हैं। अंकुर गिर जाते हैंनियंत्रण:-100 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 10 लीटर पानी में मिलाकर घोल बना लें और बीजों को 10-15 मिनट के लिए डुबो दें। फिर बीजों को 20-30 मिनट के लिए छाया में सुखा लें और फिर बीज बोने के लिए जाएं। इससे पौधों के गिरने  के साथ-साथ अन्य मृदा जनित बीमारियों  से बचा जा सकता है।रोग का संक्रमण दिखने पर पौधे के पास की मिटटी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम / लीटर पानी के साथ भीगें।5) क्लब राॅटनुकसान के लक्षण:-इस रोग से पौधे छोटे रह जाते हैं और पत्ते पिले हो जाते हैं।नियंत्रण:-बीजों  को कार्बेन्डाजिम के घोल 2 ग्राम/लीटर में 20 मिनट के लिए डुबोएं|रोग का संक्रमण दिखने पर पौधे के पास की मिटटी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम / लीटर पानी के साथ भीगें। कीट  प्रबंधन और उपचार 1 ) इल्ली/ सुंडी (कैबेज बटरफ्लाई)नुकसान के लक्षण:- इल्लियां पत्तों पर छेद करके उन्हें खाती हैं और उनके ऊपर मल को देखा जा सकता हैं। बाहरी पत्तियों में छिद्रों के अलावा, इल्लियां गोभी को भी खा जाती हैं।पत्तियों का कंकालीकरण होता है, पत्तियों का केवल कठोर भाग ही शेष रह जाता है।नियंत्रण:- हमले के शुरुआती चरण में अंडे और इल्लियां इकट्ठा करके नष्ट कर दें। पौधों को फ़्लूबंडीएमाइड 480 SC @ 0.2 मिलीलीटर / लीटर पानी या स्पिनेटोराम 11.7% SC @ 0.5 मिलीलीटर/ लीटर पानी के साथ स्प्रे करें।2 ) तेला (एफिड्स) : नुकसान के लक्षण:- कीट ग्रसित पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रूक जाती है। बच्चे और वयस्क बड़ी मात्रा में पौधे का रस चूसते हैं जिसके कारण वे शहद की ओस का उत्सर्जन करते हैं और इस पर काले कालिख के सांचे के रूप  में पत्तियों पर फफूंद का विकास होता है।नियंत्रण:-खेत में नीला चिपचिपा ट्रैप 5 प्रति एकड़ लगाएं (एफिड्स के पंखों वाले रूप की निगरानी और उसे कम करने के लिए)।पौधों की वृद्धि के दौरान उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। रसायनिक नियंत्रण के लिए एफिड का प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30  ईसी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या पयरिप्रोक्सीफेन 10% ई सी @ 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 3 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें।3) डायमंड जैसी चमकीली पीठ वाला पतंगा (डायमंड बैक मोथ): नुकसान के लक्षण:- कीट पत्तियों की निचली सतह पर भोजन करते हैं और पत्तियों में छेद कर देते हैं और गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। प्रभावित पत्तियों मुरझा जाती हैं। पत्ते कंकालयुक्त हो जाते हैं। युवा कैटरपिलर पत्तियों पर सुरंगे बना देते हैं जिससे पत्तियों पर विशिष्ट सफेद धब्बे बनते हैं। पूर्ण विकसित लार्वा पत्तियों में छेद करके खाते हैं।नियंत्रण:-खेत में फेरोमोन ट्रैप स्थापित करें। न्यूक्लियर पॉलीहाइड्रोसिस वायरस या बैसिलस थुरिंगिनेसिस या एंटोमोपैथोजेनिक कवक के साथ पौधों को बारी-बारी से स्प्रे करें। नर्सरी में बीज बोने के 10 दिन बाद और खेत में कीट का प्रकोप दिखने पर कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 50% एसपी @ 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।4) तना छेदकनुकसान के लक्षण:-इस कीट की इल्लियां पत्तियों में जाले बनाती हैं और रोपाई के तुरंत बाद मुख्य तने में छेद कर देते हैं और हेड को बनने से रोकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई फूल बन जाते हैं और वे पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते।नियंत्रण:-हमले के शुरुआती चरण में अंडे और इल्लियां इकट्ठा करके नष्ट कर दें। पौधों को फ़्लूबंडीएमाइड 480 SC @ 0.2 मिलीलीटर / लीटर पानी या स्पिनेटोराम 11.7% SC @ 0.5 मिलीलीटर/ लीटर पानी के साथ स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण:-फूलगोभी के खेत में खरपतवार के नियंत्रण के लिए 2 बार निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती हैं। पहली निराई गुड़ाई रोपण के 20- 30 दिन बाद करनी चाहिए।दूसरी निराई गुड़ाई बीज रोपण के 40-45 दिन बाद करनी चाहिए।

सहायक मशीनें

जब फूल पूरे आकार के सफेद व कठोर हो जाते हैं, तो कटाई आरंभ कर देते हैं। कटाई गण्डासो से की जाती है। बोने के 4 या 5 माह बाद गोभी काटने के योग्य हो जाती है। गोभी की कटाई धीरे-धीरे मंडी की आवश्यकता अनुसार की जाती है।