अरण्डी की खेती

अण्डी की फसल तेल वाली फसलों में आती है। इसकी खेती के लिए गर्म व तर जलवायु, शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। 50 - 75 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में इसका उत्पाद काफी अच्छा रहता है। इसका तेल बहुत ही महत्वपूर्ण होता है लेकिन खाने के काम में नहीं आता है। अण्डी के तेल से बहुत से सामान बनाये जाते है, जैसे तेल, डाई, डिटर्जेंट, दवाये, प्लास्टिक, छपाई की स्याही, लिनोलियम फ्लूड, पेंटस, लेदर, मरहम, पालिश, फर्श का पेंट, लुब्रिकेंट आदि।


अरण्डी

अरण्डी उगाने वाले क्षेत्र

इस की खेती आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान के शुष्क भागों में की जाती है।

अरण्डी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

इसका तेल खली, साबुन बनाने, रेशम, किट के भोजन के रूप में इसके पत्तो का उपयोग होता है।

बोने की विधि

बीज को हल के पीछे या सीडड्रिल की सहायता से भी बोया जा सकता है, पर यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज कूडों में 7 - 8 सेमी. की गहराई से ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए, अन्यथा बीजों के अंकुरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। बीज को बोने से पहले उपचारित अवश्य कर लेना चाहिए। बीमारियों से बचने के लिये बीजों को 3 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि अरण्डी की खेती के लिए उपयुक्त होती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2 - 3 जुताई हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

अरण्डी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

ज्योति, अरूणा, क्रान्ति, काल्पी- 6, टी- 3, पंजाब अरंडी नं- 1,जी सी एच- 4, जी सी एच- 5, डी सी एच- 32, जी एयू सी एच- 1, जी सी एच- 6, डी सी एच- 177, डी सी एच- 519 आदि।

बीज की जानकारी

अरण्डी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 12 - 15 किग्रा बीज पर्याप्त रहता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

अरण्डी के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से  खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

अरण्डी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

अरण्डी की अच्छी उपज के लिए विभिन्न क्षेत्रों में 40-60 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 30-40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हैक्टर की आवश्यकता रहती है। सिंचित दशाओं में नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्राओं को बुवाई के पहले ही कूंडो़ में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा दो महीने बाद सिंचाई के समय दे देना चाहिए। उन स्थानों पर जहाँ फसल असिंचित दशाओं में उगाई जा रही हो तथा सिंचाई की समुचित व्यवस्था न हो वहाँ नाइट्रोजन की पूरी मात्रा बुवाई के पहले ही कूंडों में मिला देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

अरण्डी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

यदि वर्षा समय पर नहीं हुई तो उस अवस्था में सामान्य रूप से 3-4 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ सकती है। फसल पर फूल आते समय सिंचाई अत्यधिक लाभदायक होती है।

रोग एवं उपचार

अरण्डी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. उकटा रोग (विल्ट) - यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम कवक से होता है। नियंत्रण हेतु रोगग्रस्त खेतों में 2-3 वर्षों तक अरंडी की फसल न बोकर रोग की उग्रता को एवं फैलाव को कम किया जा सकता है। बीजों को कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) 50 % डब्लूपी 2 ग्राम/किग्रा या थाइरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करके बुवाई करना चाहिए। रोग रोधी किस्मों की बुवाई करना चाहिए। 2. छाछिया रोग (पाऊडरी मिल्डयू) - यह एक फफूंदजनित रोग है। इस रोग के कारण पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा जम जाता है। रोग की तीव्रता अधिक होने पर दाने सिकुड़ जाते है। उनका आकार छोटा हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिये उचित समस्य परफस्ल की बुआई करना चाहिए। सल्फेक्स 0.3 प्रतिशत या केराथेन 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देते ही करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

प्रारम्भिक अवस्थाओं में यदि इनकी रोकथाम न की जाय तो अरण्डी के पौधे लम्बे व काफी कमजोर हो जाते हैं। पहली गुड़ाई बोने के 3 सप्ताह बाद, जब पौधे 10-15 से.मी. ऊॅचे हों तब की जानी चाहिए। प्रारम्भिक अवस्था में 45 दिन तक खरपतवार रहित रखने से अच्छी उपज मिलती है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, हैरों, खुर्पी, कुदाल, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।