काजू की खेती

काजू मुख्यत: उष्णकटिबंधीय फसल है। सामान्यतः काजू का पेड़ 13 से 14 मीटर तक बढ़ता है। किन्तु काजू की काम ऊँचाई वाली कल्टीवर प्रजाति जो 6 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ती है, जल्दी तैयार होने और ज्यादा उपज देने की वजह से बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। काजू के पेड़ में 3 वर्ष के बाद फल लगना शुरू हो जाते हैं।


काजू

काजू उगाने वाले क्षेत्र

आन्ध्रप्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओड़िशा, तमिलनाडू और पश्चिम बंगाल, असम, छतीसगढ़, गुजरात, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा, आदि हैं।

काजू की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

काजू पोषक तत्वों का एक बड़ा स्रोत है। काजू स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। काजू में आयरन, फास्फोरस, सेलेनियम, मैग्नीशियम और जिंक पाया जाता हैं। काजू फाइटोकेमिकल्स, एंटीऑक्सिडेंट और प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है।

बोने की विधि

(i) बीज द्वारा - बीज को बोने से पूर्व गड्ढे खोद लिए जाते है, उसके बाद हर एक गड्ढे में 2-2 बीज करके बो दिये जाते हैं। बीज को जून माह में बोया जाता है। लगभग 1 माह के बाद बोया हुआ बीज जम जाता है और इसके जमने के बाद एक जगह पर एक पौधा रखा जाता है। पौधे को रोपने समय दो पौधों के बीज की दूरी लगभग 12 मीटर होनी चाहिए। (ii) सोप्टावुड ग्राफ्टिंग - इस क्रिया में पौधे को तैयार होने में केवल 2 वर्ष लगते है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के पश्चात 3-4 जुताई हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

काजू के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

काजू की प्रमुख किस्में वेगुरला-4, उल्लाल-2, उल्लाल-4, बी.पी.पी.-1, बी.पी.पी.-2, टी-40 आदि हैं।

बीज की जानकारी

काजू की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

सामान्य पौधा रोपड़ में 200 पौधे प्रति हैक्टेयर तथा सघन पद्धति में 400-500 पौधे प्रति हैक्टेयर रोपे जा सकते हैं।

बीज कहाँ से लिया जाये?

काजू का बीज(पौध) किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

काजू की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

प्रत्येक वर्ष पौधों को 10-15 कि.ग्रा. गोबर की सही खाद, के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों की भी उपयुक्त मात्रा देनी चाहिए। प्रथम वर्ष में 300 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम रॉक फास्फेट, 70 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधा की दर से दें दूसरे वर्ष इसकी मात्रा दुगुनी कर दें और तीन वर्ष के बाद पौधोको 1 कि.ग्रा. यूरिया, 600 ग्रा. रॉक फास्फेट एवं 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में आधा-आधा बांटकर देते रहे।

जलवायु और सिंचाई

काजू की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

काजू की फसल मुख्यतः वर्षा पर आधारित है। यदि खेत में नमी कम हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। दो वर्ष तक सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

रोग एवं उपचार

काजू की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

काजू में ‘टी मास्कीटो बग’ की प्रमुख समस्या होती है। इसके वयस्क तथा नवजात नई कोपलों, मंजरों, फलों से रस चूसकर नुकसान पहुँचाते हैं। कभी-कभी इसकी समस्या इतनी गम्भीर हो जाती है कि इसके नियंत्रण के लिए पूरे क्षेत्र में एक साथ स्पेशल छिड़काव का प्रबंध करना पड़ता है। इसके नियंत्रण के लिए एक स्प्रे सिड्यूल बनाया गया है जो इस प्रकार है।पहला स्प्रे – कल्ले आते समय – मोनोक्रोटोफास (0.05 प्रतिशत) कादूसरा स्प्रे – फूल आते समय – कर्वेरिल (0.1 प्रतिशत) का तथातीसरा स्प्रे – फल लगते समय – कार्वेरिल (0.1 प्रतिशत) का

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण हेतु समय -समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।