इलायची को मसालों की रानी कहा जाता है। इसका उपयोग प्रायः भोजन का स्वाद बढाने के लिए किया जाता है। लेकिन इसमें औषधीय गुण भी होते हैं, जिसकी वजह से लोग इसे दवा के रूप में भी प्रयोग करते हैं । इलायची की खेती करने के लिए 10 डिग्री से 30 डिग्री का तापमान सबसे उत्तम माना जाता है। तापमान के साथ-साथ इलाइची की अधिक उपज लेने के लिए नमी युक्त स्थान और छायादार स्थान का होना आवश्यक है।
भारत में ईलाइची की खेती कर्नाटक, केरल और तमिलनाडू में अधिकांश क्षेत्र में की जाती है।
ईलाइची से बनने वाली दवाईयों का उपयोग पेट दर्द, कफ, पित्त, अपच, अजीर्ण, रक्त और मूत्र, आदि रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
पौधे की रोपाई करने से पहले 30 सेंमी लम्बा, 30सेंमी चौड़ा और 30 सेंमी गहरा गड्ढा खोद खोदकर उसके 15 सेंटीमीटर नीचे की मिट्टी को अलग निकालकर रख देना चाहिए। इसके पश्चात मिट्टी में गोबर की खाद मिलाकर गड्डे में में भर देना चाहिए तथा पौधे को रोपित कर देना चाहिए। एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 1.5 मीटर होनी चाहिए।
ईलायची की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। तथा ज़मीन में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के पश्चात 3-4 जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।
Mudigere-1, CCS-1, PV-1, ICRI-1, ICRI-2, SKP-14
एक एकड़ क्षेत्र के लिए 150-200 पौधों की आवश्यकता होती है।
ईलाइची के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
इलायची के खेत में पौधों को लगाने से पहले गड्डो या मेड पर प्रत्येक पौधे के लिए 10 किलो के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद और एक किलो वर्मी कम्पोस्ट की जरूरत होती है | इसके साथ ही पौधों को नीम की खली तथा मुर्गी की खाद को दो से तीन साल तक देते रहना चाहिए, जिससे पौधों का अच्छे से विकास हो सके|
पहली सिंचाई बुआई के दौरान करें, लेकिन ध्यान रहे यह सिंचाई हल्की होगी ताकि जिससे बीज बहकर एक जगह इकठ्ठा ना हो जाए. अजवाइन की अच्छी पैदावार के लिए मौसम और मिट्टी के हिसाब से 15 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं. अच्छी पैदावार के लिए अजवाइन की फसल में 4 से 5 सिंचाई करनी चाहिए.
झुरमुट और फंगल जैसे रोग इलायची के पौधों को अधिक नुकसान पहुँचाते है | इस रोग के लगने से पौधा पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है | इस रोग में पौधों की पत्तिया सिकुड़कर नष्ट हो जाती है, तथा इसमें पौधों के बीज को ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर इस रोग से बचाया जा सकता है | यदि यह रोग किसी पौधे को लग जाता है, तो उसे उखाड़कर तुरंत नष्ट कर दें |सफ़ेद मक्खी रोगइस रोग के लगने पर पौधा अपनी वृद्धि को खो देता है, यह रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करते है | यह रोग पौधों की पत्तियों के नीचे सफ़ेद रंग की मक्खी के रूप में दिखाई देता है | यह मक्खियाँ पत्तियों का रस चूस कर उन्हें नष्ट कर देती है | कास्टिक सोडा और नीम के पानी को मिलाकर छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |ब्रिंग लार्वा कीट रोग ब्रिंग लार्वा एक कीट जनित रोग है | इस रोग के कीड़े पौधे के नर्म भाग पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट कर देता है | इस रोग से बचाव के लिए हमें पौधों पर बेसिलस का छिडकाव करना चाहिए |
वर्ष में कम से 3-4 बार निराई - गुड़ाई करनी चाहिए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
कुदाल, खुरपी, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।