शिमला मिर्च की खेती

शिमला मिर्च एक ठंडे मौसम की फसल है, लेकिन इसे संरक्षित संरचनाओं में  पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। संरक्षित संरचनाओं में तापमान और सापेक्ष आर्द्रता (आरएच) को नियंत्रित किया जा सकता है।परिचय ➽➣शिमला मिर्च, मिर्च की एक प्रजाति है जिसका प्रयोग भोजन में सब्जी की तरह किया जाता है।➣अंग्रेज़ी मे इसे कैप्सिकम (जो इसका वंश भी है) या बेल पैपर भी कहा जाता है। बाजार में शिमला मिर्च लाल, हरी या पीले रंग की मिलती है।जलवायु ➽➣शिमला मिर्च मध्यम कम तापमान में अच्छी वृद्धि करता है और शुष्क मौसम अच्छे विकास के लिए अनिवार्य होता है। ➣बीज का सबसे अच्छा अंकुरण 20⁰ से 25⁰ C तापमान के बीच होता है और 18⁰ - 25⁰C पर सर्वश्रेष्ठ बढ़ता है| औसत दैनिक तापमान 20 से 25⁰C  फल विकास के लिए इष्टतम है।खेती का समय ➽हमारे देश में मौसम से अनुसार शिमला मिर्च की खेती वर्ष में 3 बार की जा सकती है।सितंबर - अक्टूबर में तुड़ाई के लिए➣नर्सरी में बीज को जून - जुलाई में लगाना चाहिए।➣मुख्य खेत में जुलाई - अगस्त में पौधों की रोपाई करें।नवंबर - दिसंबर में तुड़ाई के लिए➣नर्सरी में बीज की बुवाई अगस्त से सितंबर में करें।➣मुख्य खेत में पौधों की रोपाई सितंबर - अक्टूबर में की जाती है।फरवरी - मार्च में तुड़ाई के लिए➣नर्सरी में बीज की बुवाई के लिए नवंबर - दिसंबर महीने में करें।➣मुख्य खेत में पौधों की रोपाई दिसंबर से जनवरी महीने में करें।


शिमला मिर्च

शिमला मिर्च उगाने वाले क्षेत्र

भारत में शिमला मिर्च की खेती मुख्यतः हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,हरियाणा , जम्मू कश्मीर और झारखंड में होती है।

शिमला मिर्च की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य ➽  ➣शिमला मिर्च किसी भी रंग की हो लेकिन उसमें विटामिन सी, विटामिन ए और बीटा कैरोटीन भरपूर मात्रा में  होता है। ➣शिमला मिर्च में मौज़ूद एंटीऑक्सीडेंट्स  कई कैंसर विरोधी लाभ प्रदान करते हैं ।➣इसमें मौजूद टैनिन को विशेष रूप से गैस्ट्रिक कैंसर के कारण होने वाले कैंसर को रोकने के लिए जाना जाता है। ➣शिमला मिर्च में मौजूद कैरोटेनॉयड लाइकोपीन गर्भाशय ग्रीवा, मूत्राशय, अग्न्याशय और प्रोस्टेट के कैंसर को रोकने में मदद करता है।

बोने की विधि

नर्सरी की तैयारी ➽➣एक एकड़ में  करीब 16 हजार से 20 हजार पौध  लगाए जा सकते हैं,  जिसके लिए 160-200 ग्राम बीज की जरूरत होती है। ➣ट्रे को कोकोपिट से भरा जाता है और बीज बोए जाते हैं। प्रति कोशिका एक बीज 1/2 सेमी की गहराई  में बोया जाता है तथा  उसी मीडिया से ढक दिया जाता है ।➣भरी हुई ट्रे को एक दूसरे के ऊपर लगा दिया जाता है और बीजों के अंकुरण तक प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है ।बीज बोने के बाद करीब एक सप्ताह के समय में अंकुरित हो जाते हैं। ➣ट्रे को नेटहाउस/पॉलीहाउस में स्थानांतरित कर दिया जाता है और हल्के से पानी दिया जाता है।➣बुवाई के 15 दिनों के बाद मोनो अमोनियम फॉस्फेट (12:61:0) (3जी/एल) और बुवाई के 22 दिन बाद 19:19:19 (3जी/एल) दिया जाना चाहिये।➣इसके रोपण 30-35 दिन में प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।बुवाई की विधि ➽➣रोपाई से कुछ दिन पहले सिंचाई करें। रोपण के समय जमीन में नमी होनी चाहिए।➣रोपाई के लिए पंक्ति से पंक्ति में 50 से.मी. और पौधे से पौधे में 40 से.मी. का फासला रखें। ➣रोपाई की अंतिम बार तैयारी करते समय प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 50 किलो ग्राम गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई कम्पोस्ट खाद, 1किलोग्राम नीम खली और 1 किलोग्राम अरंडी की खली को अच्छी तरह मिलाकर क्यारी में रोपाई से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें।  ➣इसके बाद क्यारी की जुताई करके पौधे  की रोपाई करें। 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी ➽ ➣शिमला मिर्च के अच्छे उत्पादन के इसकी खेती  विभिन्न प्रकार की चिकनी से दोमट मिट्टी में करें।➣यह कुछ हद तक अम्लीय मिट्टी में भी उगाई जा सकती है।  ➣इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी  में की जाती है, परन्तु इसके लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है जिसका पीएच मान 5.5 - 6.8 के बीच हो। खेत की तैयारी ➽     ➣पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देना चाहिए।मिट्टी का शोधन ➽जैविक विधि ➣जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। ➣इसे प्रयोग करने  के लिए 10किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 8-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते है। ➣4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं ।रसायनिक विधि ➣रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। 4-5 दिनों के पश्चात बुवाई करते हैं। 

बीज की किस्में

शिमला मिर्च के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

उन्नत किस्में ➽ बॉम्बे (रेड कलर) ➽➣यह जल्दी पकने वाली किस्म है।  इस किस्म के पौधे लम्बे, मज़बूत, और शाखाएं फैली हुई होती हैं।  इसके फलों के विकास के लिए पर्याप्त छाया की जरूरत होती है। ➣इसके फल गहरे हरे होते हैं और पकने के समय यह लाल रंग के हो जाते हैं, इसका औसतन भार 130-150 ग्राम होता है। ➣इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है और यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर ले जाने के लिए उचित होते हैं। ओरोबेले (येलो कलर) ➽➣यह किस्म मुख्यतः ठंडे मौसम में विकसित होती है।  इसका  फल ज्यादातर वर्गाकार, सामान्य और मोटे छिलके वाला होता  है। ➣इसका  फल पकने के समय पीले रंग के होता  है, जिनका औसतन भार 150 ग्राम होता है। ➣यह किस्म बीमारीयों की रोधक किस्म है जो कि ग्रीन हाउस और खुले खेत में विकसित होती है। इंद्रा ( ग्रीन ) ➽➣यह किस्म लम्बी और देखने में झाड़ीदार होती है।  इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और घने गुच्छों में होते हैं।➣इस किस्म के फल गहरे हरे रंग के होते हैं, जिसका औसतन भार 170 ग्राम होता है। ➣फल विकसित होने के बाद 50-55 दिनों में बिजाई के लिए तैयार होते है।  ➣इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है और यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर ले जाने के लिए उचित होते हैं। कैलिफ़ोर्निया वंडर ➽➣इस किस्म की शिमला मिर्च की ऊंचाई मध्यम, रंग अत्यधिक गहरा और छिलका मोटा होता है।➣औसतन उपज - 48 - 60 क्विंटल प्रति एकड़ अर्का मोहिनी ➽ ➣इस किस्म की शिमला मिर्च का आकर पेन्डेन्ट के समान अवं औसत फल वजन 180-200 ग्राम होता है। इसका फल गहरे रंग का होता है जो पकने पर लाल हो जाता है।➣औसतन उपज - 80-100 क्विंटल प्रति एकड़पीआरसीएच-101 ➽ ➣यह किस्म  2013 में UUHF, रानीचौरी द्वारा रिलीज़ की गयी थी। इसका औसत फल वजन 80 ग्राम है। ➣इस किस्म की बुवाई का समय वसंत-गर्मियों के मौसम में होता है, और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए अनुशंसित है।➣औसतन उपज- 120-128 क्विंटल प्रति एकड़डीएआरएल-70 ➽ ➣यह किस्म डीआईबीईआर, पिथौरागढ़, द्वारा 2013 में जारी की गई है। यह फुसैरियम विल्ट और पाउडर फफूंदी के प्रति सहिष्णु है। ➣इसकी बुवाई का समय वसंत-गर्मी तक है और जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए अनुसाशित है।                            ➣औसतन उपज- 80-88 क्विंटल/एकड़सोलन हाइब्रिड 2 ➽  ➣यह किस्म भी अच्छी पैदावार देने वाली है। यह फल सडन और जीवाणु रोगरोधी किस्म का है।➣औसतन उपज - 130-150 क्विंटल/एकड़अर्का बसंत ➽  ➣यह एक प्रभावी घनी मांसल किस्म है। यह किस्म भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गयी है।  ➣इसके पत्ते पीले हरे रंग के 2-3 लोब वाले होते हैं।➣फल क्रीम रंग के शंखाकार आकर के और वजन में औसतन 40 -60  ग्राम के होते हैं।

बीज की जानकारी

शिमला मिर्च की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर ➽   ➣एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 150- 200  ग्राम बीज का प्रयोग करें।बीज उपचार ➽➣मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए बिजाई से पहले बीजों को गर्म पानी (58 डिग्री सेल्सियस) में 30 मिनट के लिए रखकर उपचार करें।    

बीज कहाँ से लिया जाये?

शिमला मिर्च बीज किसी विश्वसनीय स्थान से  खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

शिमला मिर्च की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरक प्रबंधन ➽ ➣एनपीके - 20:25:20 (बेसल उर्वरक खुराक)➣यूरिया - 80 किलोग्राम ➣सिंगल सुपर फॉस्फेट - 125 किलोग्राम➣म्यूरेट ऑफ़ पोटाश - 60 किलोग्राम➣शिमला मिर्च की फसल से ज्यादा फल उपज प्राप्त करने के लिए पौध रोपण के 2 माह बाद घुलनशील उर्वरकों जैसे पोटेशियम नाइट्रेट और कैल्शियम नाइट्रेट @ 3 ग्राम/ लीटर पानी की दर से 3 सप्ताह के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें।सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन ➽ ➣शिमला मिर्च के  पौधे के विकास के लिए मैग्नीशियम और बोरोन जरूरी सूक्ष्मतत्व हैं। पोषक तत्वों के प्रबंधन के लिए खेत की तैयारी से पहले मिटटी की जांच करवा लें और उसी आधार पर खेत में पोषक तत्व डालें।

जलवायु और सिंचाई

शिमला मिर्च की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई ➽  ➣प्रतिरोपण के तत्काल बाद, फूल आने पर तथा फल विकास की अवस्था में पानी की कमी नहीं आनी चाहिए। ➣शुष्क मौसम के दौरान प्रतिरोपण के बाद पहले माह में 3 से 4 दिन के अन्तराल पर और फसल तैयार होने तक 7 से 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें, और जल निकासी पर विशेष ध्यान दें। 

रोग एवं उपचार

शिमला मिर्च की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग और रोकथाम 1)एनथ्रेकनोज ➽नुकसान के लक्षण⇲➣यह एक बीज एवं मृदाजनित रोग है। रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियों, तने और फलों पर गहरे भूरे रंग के अनियमित धब्बे बन जाते है और बाद में यह धब्बे काली संरचनाओं से भर जाते है।➣पत्तियों एवं शिराओं का पीला-भूरा होना, मुड़ना और झड़ना इस बीमारी के लक्षण है।नियंत्रण⇲➣खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें।➣बीज बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम + मेंकोजेब @ 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीच की दर से उपचारित करें।➣रोग संक्रमण होने पर पौधों को कार्बेन्डाजिम + मेंकोजेब @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी/ टेबुकोनाझोल @ 250 ऍम अल/ एकड़ की दर से पौधों पर छिड़काव करें।2)पीली शिरा वाला मोज़ेक वायरस ➽नुकसान के लक्षण⇲ ➣पत्तियाँ आकार में छोटी व मोटी रह जाती हैं। पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है जिससे पौधे की वृद्धि रुक ​​जाती है। ➣पौधे फूल पैदा नहीं कर पाते ।नियंत्रण⇲ ➣इसको नियंत्रित के लिए सफेद मक्खी का नियंत्रित करें।➣फसल के शुरुआती विकास के दौरान संक्रमण होने पर संक्रमित पौधों को हटाकर नष्ट कर दें। ➣नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों पर छिड़काव करें।➣यदि उपलब्ध हो तो रोग सहिष्णु या प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। ➣पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 40 मि.ली./एकड़ पानी में घोलकर छिड़काव करें।3)सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट (सर्कोस्पोरा पत्ता बिंदु रोग) ➽नुकसान के लक्षण⇲➣इस रोग की शुरुआत में पत्ती की सतह पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और बाद में ये धब्बे गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं। गंभीर संक्रमण में पौधों से पत्तियां गिर जाती हैं।नियंत्रण⇲➣खेत में स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई न करें।➣जब रोग के लक्षण दिखाई दें तो मैनकोजेब 75 %डब्ल्यूपी @ 2 मिलीलीटर/ लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें।4)पाउडर की तरह फफूंदी ➽नुकसान के लक्षण⇲➣फफूंद या बीजाणु की सफेद चूर्णी वृद्धि पत्ती की सतह पर और फूलों के साथ-साथ फलों पर भी अनुकूल परिस्थितियों में विकसित होती है। ➣फंफूद की वृद्धि दिखाई देने से पहले पत्तियों पर पीले धब्बे के रूप में शुरुआती लक्षण दिखाई दे सकते हैं। लक्षण आमतौर पर निचली पत्तियों से ऊपरी पत्तियों की और बढ़ते हैं। ➣अनुकूल मौसम के दौरान जहां भी सफेद पाउडर फफूंदी के बीजाणु मौजूद होते हैं और स्थितियां अनुमति देती हैं वहां संक्रमण किसी भी स्तर पर हो सकता है।नियंत्रण⇲➣फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें।➣खेत में स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई न करें।➣इस रोग की रोकथाम के लिए क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें।5)पाउडर की तरह फफूंदी ➽नुकसान के लक्षण⇲ ➣यह रोग पौधे की युवा अवस्था में होता है। इसके प्रकोप से जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला होकर एवं कमजोर पड़कर  मर जाता है।नियंत्रण⇲➣खेत में जल जमाव न होने दें।➣बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।➣रोग की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर पौधों के जड़ क्षेत्र के पास की मिट्टी को भिगाए |6)बैक्टीरियल विल्ट ➽नुकसान के लक्षण⇲ ➣यह शिमला मिर्च का एक गंभीर रोग है जो पत्तियों के साथ-साथ फलों को भी प्रभावित करता है।➣इस रोग से पौधे तेजी से पुरे मुरझा जाते हैं।नियंत्रण⇲  ➣पौध रोपण से पहले ब्लीचिंग पाउडर @ 6 किलोग्राम/ एकड़ की दर से खेत में डालें।➣रोग सहनशील या प्रतिरोधी किस्मे जैसे "अर्का गौरव" आदि उगाएं।➣रोग संक्रमण होने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड @ 1 किलोग्राम को 20 किलोग्राम रेत या गोबर की खाद में मिलाकर खेत में भुरकाव करें और उसके बाद खेत में सिंचाई करें।कीट और प्रबंधन1)फल छेदक ➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)⇲  ➣इल्लियां फलों में छेद करती हैं और फलों को खाती रहती हैं। इसके कारण फल के अंदर मल इकठ्ठा हो जाता है।रोकथाम⇲  ➣इसके नियंत्रण के लिए  हर साल एक ही खेत में फसल उगाने से बचें और नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिक मात्रा का प्रयोग करें। ➣लंबे और संकरे फलों वाली किस्में उगाए । नीम के तेल और एंटोमोपैथोजेनिक कवकनाशी  के साथ पौधों पर  छिड़काव करें।➣क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 10% OD @ 0.6 मिली / लीटर पानी या स्पिनोसैड 45% ईसी @ 0.325 मिली/लीटर पानी के साथ पौधों पर  छिड़काव करें। 2)घुन कीट (माइट्स) ➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)⇲  ➣माइट्स के खाने से पत्तियाँ लाल-भूरी और भूरे रंग की हो जाती हैं,पत्तियों पर रेशमी बद्धी बन जाती हैं ,पत्तियाँ नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और कर्कश आवाज उत्पन्न करती हैं।रोकथाम⇲  ➣तेज़ पानी का छिड़काव करने से माइट्स की आबादी कम हो जाती हैं। ➣डाइकोफॉल 18.5% ईसी @ 500 ग्राम/ एकड़ या प्रोपरगाइट 57% ईसी @ 2 मिलीलीटर/ लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें।3)माहु (एफिड्स) ➽ नुकसान के लक्षण⇲   ➣शिमला मिर्च में काले रंग के तेले (छोटे छोटे कीड़ों का संक्रमण होता हैं) जो पौधों से रस चूसते रहते हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता हैं और पत्ते पिले रंग के हो जाते हैं। ➣बच्चे और वयस्क बड़ी मात्रा में पौधे का रस चूसते हैं जिसके ऊपर काले रंग के फंफूद का विकास हो जाता हैं।नियंत्रण⇲  ➣पौधों पर नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% का छिड़काव करें।➣रसायनिक नियंत्रण के लिए एफिड का प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30  ईसी 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल 4 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 4)थ्रिप्स ➽  नुकसान के लक्षण⇲   ➣थ्रिप्स के बच्चे पंखरहित हल्के पीले रंग के होते हैं और वयस्क भूरे, काले से पीले रंग के पंखो वाले होते हैं। ➣ये पत्तियों और फूलों को खुरदते हैं जिससे पौधों पर सिल्वर रंग की धारिया बन जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। नियंत्रण⇲    ➣नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों पर छिड़काव करें। ➣इसके नियंत्रण के लिए एसिटामिप्रिड 75 WP 80 ग्राम/200 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 40 मि.ली./एकड़ या थियामेथोक्सम 40 ग्राम/ 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।5) सफेद मक्खी (वाइट फ़्लाई) ➽  नुकसान के लक्षण⇲   ➣बच्चे और वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते रहते हैं जिसके कारण पौधों की पत्तियाँ पीले रंग की हो जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। ➣ज्यादा संक्रमित पौधे छोटे रह जाते हैं और कम उपज देते हैं।नियंत्रण⇲   ➣नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों पर छिड़काव करें। ➣खेत में पीले चिपचिपे ट्रैप लगाएं।➣थायोमिथाक्सम 25 डब्ल्यू जी. @ 40 ग्राम प्रति एकड़ या बीटासायफ्लुथ्रीन 49 + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% ओ.डी. @ 140 एम.एल. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण ➽➣नए पौधों के रोपण के 2-3 हफ्ते बाद मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाएं। यह खेत को नदीन मुक्त करने में मदद करती है। रोपण के 30 दिनों के बाद पहली गुड़ाई और 60 दिनों के बाद दूसरी गुड़ाई  करें।➣रसायनिक नियंत्रण के लिए ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5% ईसी 0.4 लीटर प्रति एकड़  पौध रोपण से पहले खेत में स्प्रे करें। खरपतवार उगने की अवस्था में पौध रोपण के 21 दिन के भीतर मेट्रिबुज़िन 70%  की 250 ग्राम  मात्रा प्रति एकड़ का खेत में छिड़काव करें।➣सब्जियों की फसल में रसायनों के प्रयोग को आखिरी विकल्प के तौर पर लेना चाहिए। एक ही खरपतवारनाशी का प्रयोग बार-बार न करें, क्योंकि इससे खरपतवारों पर इसका असर पड़ना बंद हो जाता है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।