पत्ता गोभी की खेती

 यह रबी मौसम की एक महत्वपूर्ण सब्जी है। पत्ता गोभी, उपयोगी पत्तेदार सब्जी है। उत्पत्ति स्थल मूध्य सागरीय क्षेत्र और साइप्रस में माना जाता है। पुर्तगालियों द्वारा भारत में लाया गया जिसका उत्पादन देश के प्रत्येक प्रदेश में किया जाता है । इसे बन्धा तथा बंदगोभी के नाम से भी पुकारा जाता है।


पत्ता गोभी

पत्ता गोभी उगाने वाले क्षेत्र

पत्तागोभी के मुख्य उत्पादक राज्य प. बंगाल, उड़ीसा, असम, बिहार, गुजरात, झारखण्ड और मध्य प्रदेश हैं। जलवायु और तापमान :- पत्तागोभी की अच्छी वृद्धि के लिए ठंडी आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसमें पाले और अधिक तापमान को सहन करने की विशेष क्षमता होती है पत्तागोभी के बीज का अंकुरण 27- 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अच्छा होता है जलवायु की उपयुक्तता के कारण इसकी दो फसलें ली जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक ठण्ड पड़ने के कारण इसकी बसंत और ग्रीष्म कालीन फसलें ली जाती है इस किस्म में एक विशेष गुण पाया जाता है यदि फसल खेत में उगी हो तो थोडा पाला पड़ जाए तो उसका स्वाद बहुत अच्छा होता है।

पत्ता गोभी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पत्ता गोभी में विशेष मनमोहक सुगन्ध सिनीग्रिन ग्लूकोसाइड के कारण होती है !पोष्टिक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन ए और सी तथा कैल्शियम, फास्फोरस खनिज होते है। इसका उपयोग सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है। सुखाकर तथा आचार तैयार कर परिरक्षित किया जाता है।

बोने की विधि

नर्सरी की तैयारी :- फसल उगाने के लिए एक एकड़ क्षेत्र में 100 मि.स्क्वे. नर्सरी क्षेत्र पर्याप्त है। 3 मी. लंबी, 0.6 मी. चौड़ाई और 10-15 सेंमी ऊंचाई वाली क्यारियाँ तैयार करें। दो क्यारियों में 60 सेमी की दूरी रखें। क्यारियों में पंक्तियों के बीच 1-2 सेमी गहराई और 10 सेमी दुरी रख कर बीज बोएं और मिट्टी की बारीक परत से ढँक दें, इसके बाद कैन द्वारा थोडा पानी दें। आवश्यक तापमान और नमी बनाए रखने के लिए क्यारियों को सूखी घास से ढँक देना चाहिए। जब तक अंकुरण नहीं हो जाता है, तब तक आवश्यकता अनुसार कैन से पानी देना चाहिए। प्रत्यारोपण के दस दिन पहले ही अंकुरित पौधों को मजबूत बनाने के लिए नर्सरी क्यारियों को पानी देना कम करें। बीज के अंकुरण के 3 दिनों के बाद, अंकुरित पौधों को आर्द्र गलन रोग से बचाने के लिए, 10 लिटर पानी में रिडोमिल - 15-20 ग्राम मिलाकर क्यारियों को भिगोएं। बुवाई के 25 दिनों के बाद 19:19:19 - 5 ग्राम + थायोमेथोक्साम - 0.25 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करेंया प्रोट्रे को कोकोपीट से 1.2 किलो प्रति ट्रे में भरें। प्रोट्रे में उपचारित बीजों को एक बीज प्रति सेल ऐसी बुवाई करनी चाहिए। बीज को कोकोपीट से ढँक दें और अंकुरण शुरू होने तक पॉलीथीन शीट से ढँक कर रखें (बुवाई के 5 दिन बाद)। 6 दिनों के बाद, प्रोट्रे को अंकुरित बीजों के साथ शेड नेट में अलग रखें। खेत में रोपाई :- जब पौधे 5-6 सप्ताह के हो जाए, तब वे रोपने योग्य होते हैं। जब 3-4 पत्तियाँ दिखाई देने पर और तना मोटा हो जाने पर पौधों का प्रत्यारोपण कर सकते हैं। अगेती किस्म के लिए पंक्ति से पंक्ति तथा पौध से पौध की दुरी 60 x 30 सेमी. तथा पछेती फसल के लिए पौध से पौध तथा पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60 x45 सेमी. रखते हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पत्तागोभी के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। बंदगोभी बलुई दोमट भूमि से लेकर मृतिका दोमट भूमि में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। जहां तक संभव हो अगेती किस्म को बलुई दोमट में तथा देर से पकने वाली किस्मों को मृतिका दोमट में उगाना चाहिए। भूमि ऐसी होनी चाहिए जिसमें जीवांश पदार्थ, वायु का आवागमन जल निकास व सिंचाई की उचित सुविधा हो। पत्तागोभी को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसकी अधिक पैदावार के लिए भूमि का काफी उपजाऊ होना अनिवार्य है इसके लिए प्रति हे. भूमि में 10 टन गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद और 50 किलो नीम की सडी पत्तियां या नीम की खली या नीम दाना पिसा हुआ चाहिए केंचुए की खाद 15 दिनों के बाद डालनी चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के पश्चात 3-4 जुताई साधारण हल हैरों या कल्टीवेटर से की जानी चाहिये तथा साथ-साथ पाटा चला कर भूमि को समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

पत्ता गोभी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

अगेती किस्में :- प्राइड ऑफ़ इंडिया, गोल्डन एकर,अर्ली ड्रमहेड, मीनाक्षीतथा कोपन हेगन मार्केट, पूसा मुक्ता, आदि पिछेती किस्में :- लेट ड्रम हैड, पूसा ड्रम हैड, एक्स्ट्रा अर्ली एक्स्प्रेस,अर्ली सोलिड ड्रम हैड, लार्ड माउनटेन हैड कैबेज लेट,सेलेक्टेड डब्ल्यू,डायमंड,सेलेक्शन8, पूसा मुक्त, क्विइसिस्ट्स | बुवाई का समय मैदानी क्षेत्रों में - अगेती फसल के लिए अगस्त- सितम्बर पछेती फसल के लिए सितम्बर अक्टूबर पहाड़ी क्षेत्र के लिए - सब्जी के लिए मार्च- जून

बीज की जानकारी

पत्ता गोभी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज की मात्रा :- पत्तागोभी की बीज की मात्रा उसके बुवाई के समय पर निर्भर करती है। अगेती - 240 ग्राम और पछेती जातियों के लिए 200 ग्राम बीज, एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। हाइब्रिड किस्मों के लिए बीज की मात्रा 100 -120 ग्राम एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। बीजोपचार :- रबी की फसल में गलने की बीमारी बहुत पायी जाती है और इससे बचाव के लिए बीज को मरकरी क्लोराइड के साथ उपचार करें। इसके लिए बीज को मरकरी क्लोराइड 1 ग्राम प्रति लीटर घोल में 30 मिनट के लिए डालें और छांव में सुखाएं । रेतली ज़मीनों में बोयी फसल पर तने का गलना बहुत पाया जाता है। इसको रोकने के लिए बीज को कार्बेनडाज़िम 50 %  WP 3 ग्राम व इमिडाक्लोप्रिड 17.8 % SL - 4 मिली से प्रति किलो बीज का उपचार करें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

पत्ता गोभी के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

पत्ता गोभी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

पत्तागोभी की अच्छी व गुणवत्तायुक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए। पत्तागोभी मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी। उर्वरकों का अनुपात एनपीके 60:30:30 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें। नत्रजन :- 66 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 33 किलो यूरिया रोपाई के 30से 35 दिन बाद और खड़ी फ़सल में 33 किलो यूरिया 50 से 55 दिन बाद खेत में डालें। फॉस्फोरस :- 188 किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। पोटाश :- 50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (mop) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।

जलवायु और सिंचाई

पत्ता गोभी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पत्तागोभी की फसल को लगातार नमी की आवश्यकता होती है इसलिए इसकी सिचाई करना आवश्यक है। रोपाई के तुरंत बाद सिचाई करे। इसके बाद 8 -10 दिन के अंतर से सिचाई करते रहे। इस बात का ध्यान रखे की फसल जब तैयार हो जाए तब अधिक गहरी सिचाई न करें अन्यथा फुल फटने का भय रहता है।

रोग एवं उपचार

पत्ता गोभी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. आर्द्र पतन - इस बीमारी में पौधे की जड़े सड़ जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए बीज को कैप्टान या थायरम से शोधित करके बोया जाये तथा नर्सरी को फारमेल्डीहाइड से उपचारित करना चाहिए। 2. काला विगलन - इस रोग में शिराओं तथा पत्तियों का रंग काला या भूरा हो जाता है। पूरी पत्ती का रंग पीला हो जाता है और वह मुरझा कर गिर जाती है। इसके नियंत्रण के लिए बीज को बोने से पहले 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट के लिए गर्म पानी से उपचारित करना चाहिए। 3. पत्ती का धब्बा रोग - इस रोग में पत्तियों पर गोल गहरे रंग के धब्बे बनते हैं। इसके नियंत्रण के लिए 2.5 किलोग्राम इंडोफिल M- 45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। 4. लालामी रोग - यह रोग बोरान की कमी के कारण होता है। इसके नियंत्रण के लिए नर्सरी में .3% बोरेक्स का घोल तथा रोपाई के बाद खेत में .5% बोरेक्स का घोल छिड़कना चाहिए। 5. काला तार सादृश्य तना - इस रोग में पात गोभी का तना जमीन की सतह पर के पास तार के समान काला पड़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए पौध की रोपाई के बाद 10 दिन के अंतर से 0.2% बेसीकाल के घोल से क्यारियों को सिंचित करना चाहिए। 6. काली मेखला रोग - इस रोग में पत्तियों पर धब्बे बनते हैं। जिनके बीच का भाग राख की तरह धूसर रंग का होता है। इसके नियंत्रण के लिए बीज को बोने से पहले गर्म पानी 50 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री मिनट तक उपचारित करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

पत्तागोभी की अच्छी उपज के लिए खेतों को खरपतवारों से रहित करना आवश्यक होता है। इसके लिए निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पत्तागोभी वाले खेत में 3 या 4 बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। निकाई-गुड़ाई के उपरांत पौधों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए। रसायनिक नियंत्रण :- खरपतवारों के नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन 30 % EC 400 मिली/एकड़ की दर से 300 लीटर पानी में घोलकर रोपाई से पहले खेत में छिटककर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इससे एक वर्षीय खरपतवार नहीं उग पाते हैं।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, हैरों, खुर्पी, फावड़ा आदि यन्त्रों की आवश्यकता होती है।