बैंगन की खेती

बैंगन (सोलेनम मैलोंजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है और बैंगन भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सबसे आम सब्जियों में से एक है।बैगन से तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं  और अपरिपक्व फलों का उपयोग करी में किया जाता है। जलवायु➽➢बैंगन एक गर्म मौसम की फसल है और इसके लिए लंबे समय तक गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। ➢इसके पौधे ठंडे मौसम के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। इसकी खेती के लिए 13-21 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान सफल उत्पादन के लिए अनुकूल होता है। ➢जब तापमान 17 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो फसल की वृद्धि बुरी तरह प्रभावित होती है। ➢इसे बरसात और गर्मी के मौसम की फसल के रूप में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। ➢बैंगन को समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जा सकता है।खेती का समय➽➢इसे पूरे साल मैदानी इलाकों में उगाया जा सकता है लेकिन रबी का मौसम इसके लिए सबसे अच्छा होता है। ➢बरसात का मौसम - जून - जुलाई➢सर्दी का मौसम - अक्टूबर - नवंबर➢ग्रीष्म ऋतु - फरवरी - मार्च


बैंगन

बैंगन उगाने वाले क्षेत्र

चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।  

बैंगन की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य➽➣बैंगन में कैलोरी और वसा कम होती है लेकिन घुलनशील फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है।➣बैंगन के छिलके या त्वचा (गहरे नीले/बैंगनी रंग) में उचित मात्रा में फेनोलिक फ्लेवोनोइड फाइटोकेमिकल्स होते हैं जिन्हें एंथोसायनिन कहा जाता है।➣वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि ये एंटीऑक्सिडेंट कैंसर, उम्र बढ़ने, सूजन और तंत्रिका संबंधी रोगों के खिलाफ सशक्त प्रभाव डालते हैं।

बोने की विधि

नर्सरी तैयार करना➽➣बैंगन के बीजों को नर्सरी क्यारियों में बोया जाता है ताकि रोपाई के लिए खेत में स्थानांतरित किया  जा सके। ➣भारी मिट्टी में जलजमाव की समस्या से बचने के लिए उठी हुई क्यारियाँ आवश्यक हैं। ➣हालांकि, रेतीली मिट्टी में, समतल क्यारियों में बुवाई की जा सकती है। 7.2 x 1.2 मीटर और 10-15 सेंटीमीटर ऊंचाई की उठी हुई क्यारियां तैयार की जाती हैं। ➣बुवाई पतली-पतली पंक्तियों में 5-7 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए। ➣बीजों को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोया जाता है और मिट्टी की एक महीन परत से ढक दिया जाता है, इसके बाद पानी के कैन से हल्की सिंचाई की जाती है।➣आवश्यक तापमान और नमी बनाए रखने के लिए क्यारियों को सूखे भूसे या घास या गन्ने के पत्तों से ढक देना चाहिए।➣अंकुरण पूर्ण होने तक आवश्यकतानुसार  कैन से पानी देना चाहिए।➣अंकुरण पूर्ण होने के तुरंत बाद सूखे भूसे या घास का आवरण हटा दिया जाता है।➣नर्सरी में अंतिम सप्ताह के दौरान, थोड़ा पानी रोककर नए पौधों  को सख्त किया जाता   है।➣पौधे, रोपण के 4-6 सप्ताह के भीतर  जब वे 2-3 कच्ची पत्तियों के साथ 15 सेमी की ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं, तब रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।रोपाई➽➣पौधों के बीच की दूरी, उगाई जाने वाली किस्म के प्रकार और रोपण के मौसम पर निर्भर करती है।➣आम तौर पर लंबी फलने वाली किस्मों को 60 x 45 सेमी, गोल किस्मों को 75 x 60 सेमी और अधिक उपज देने वाली किस्मों को 90 x 90 सेमी की दूरी पर प्रत्यारोपित किया जाता है। ➣हल्की मिट्टी और भारी मिट्टी की स्थिति में मेड़ के किनारे पर रोपों में रोपाई की जाती है। ➣रोपाई से 3-4 दिन पहले एक पूर्व-भिगोने वाली सिंचाई दी जाती है। ➣रोपाई के समय पौध की जड़ों को बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल में डुबो देना चाहिए। ➣रोपाई विशेषतः शाम को की जानी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी➽ ➣बैंगन को हल्की रेतीली, दोमट, चिकनी दोमट और गाद दोमट सहित सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है।➣लेकिन गाद दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी का उपयोग अधिक उपज के लिए किया जाता है।  अच्छी उपज पाने के लिए  मिट्टी को अच्छी तरह से सूखा और उपजाऊ होना चाहिए।➣मिट्टी का पीएच 5.5  से 6.6  के बीच होना चाहिए।मिट्टी का शोधन➽जैविक विधि➽➣जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी  नामक जैविक फफूंदनाशक से उपचार किया जाता है।➣इसके उपयोग के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद लेते हैं और इसमें 1 किलो  ट्राईकोडर्मा विरडी  मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं। ➣4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं।रासायनिक विधि➽➣रासायनिक विधि द्वारा उपचार के लिए कार्बेंडाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम  को 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते है जिससे 8-10 इंच मृदा तर हो जाये।➣4-5 दिनों के पश्चात बुवाई  करते हैं ।

बीज की किस्में

बैंगन के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँ➽काशी संदेश➱➣बैंगन की इस संकर किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई के फैलाव लिए हुए तथा पत्तियाँ हल्के बैगनी रंग की  होती है।➣इसके फल गोलाकार, चमकदार, बैगनी रंग के होते हैं। फलों की लम्बाई 20 से 24 सेंटीमीटर तथा मोटाई 8 सेंटीमीटर होती है। ➣फसल की अवधि - 85-90 दिन➣औसतन उपज- 245-285 क्विंटल/एकड़ अर्का नवनीत➱➣बैंगन की इस संकर किस्म के फल गोल, चमकीले बैंगनी रंग के और फूलों का बाह्य पुंजदल हरे रंग का होता है। ➣इसके फलों में  गूदा अधिक और बीज कम होता है। इसकी सब्जी अत्यंत स्वादिष्ट बनती है। फल का औसत वजन 350 से 400 ग्राम होता है। ➣फसल की अवधि - 85-90 दिन➣औसतन उपज- 255-265 क्विंटल/एकड़ पूसा हाईब्रिड-5➱➣बैंगन की इस किस्म के पौधे की अच्छी बढ़वार के साथ  शाखाएँ ऊपर की ओर उठी हुई होती हैं ।➣फल मध्यम लम्बाई के चमकदार व गहरे बैंगनी रंग के होते है।➣उत्तरी और मध्य भारत के मैदानी क्षेत्रों तथा समुद्र तट को छोड़ कर कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु क्षेत्र इसकी खेती  के लिये उपयुक्त है। ➣फसल की अवधि - 85-90 दिन➣औसतन उपज- 185-265 क्विंटल/एकड़ पंजाब सदाबहार➱➣इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 50-60 सेंटीमीटर होती है। ➣इसके फल लम्बे, गहरे बैंगनी एवं चमकदार होते हैं। फलों की लम्बाई 18-20 सेंटीमीटर होती है।➣अन्य किस्मों की तुलना में इस किस्म में फल छेदक कीट का प्रकोप कम होता है।➣फसल की औसत उपज- 120-160 क्विंटल/एकड़पूसा उत्तम 31➱➣इस किस्म की फसल  में पहली तुड़ाई के लिए 80-90 दिन लग जाते हैं। ➣पूसा उत्तम 31 के फल अण्डाकार गोल चमकदार के दिखाई देते हैं, साथ ही इनका रंग गहरा बैंगनी होता है। ➣फसल की अवधि - 80-90 दिन ➣औसत उपज- 172 क्विंटल/एकड़पंजाब रौनक➱➣यह बैंगन की एक लम्बे फल और जल्दी पकने वाली किस्म है जो साल भर रोपण के लिए उपयुक्त है।➣औसत उपज- 242 क्विंटल/एकड़मंजीरी गोटा➱➣बैंगन की मंजीरी गोटा किस्म आम तौर पर फैलने वाली होती है। ➣इस किस्म के फल आकार में मध्यम-बड़े,  गोल और सफेद धारियों के साथ बैंगनी रंग के होते हैं।➣परिपक्व होने पर, मंजीरी गोटा किस्म के बैंगन एक सुनहरा पीला रंग प्राप्त कर लेते हैं।➣औसत उपज- 100 क्विंटल/एकड़

बीज की जानकारी

बैंगन की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर➽➣एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 200 - 240 ग्राम बीजों का प्रयोग करें।बीज उपचार➽➣फफूंद रोगों के बीज और मिट्टी जनित संक्रमण को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडे / टी हार्ज़ियनम @ 2 ग्राम / 100 ग्राम बीज से बीज उपचार करें। या➣बीजों को (कार्बोक्सिन 37.5% + थीरम 37.5%) डीएस @ 1.5 ग्राम या (कार्बेनडाज़िम 1.0 ग्राम + थीरम 1.5 ग्राम) / किग्रा बीज से उपचारित करें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बैंगन के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

बैंगन की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

बैंगन की अच्छी व गुणवत्ता युक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय की जाना चाहिए। बैंगन मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी।उर्वरकों का अनुपात एनपीके 50:25:25 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें।➢नाइट्रोंजन➱     55 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और➢फॉस्फोरस➱   157 किलो एसएसपी ( सिंगल सुपर फॉस्फेट ) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।➢पोटाश➱         42 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश ( MOP ) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। जड़ों के अच्छे विकास के लिए पोटाश की जरूरत होती है।27 किलो यूरिया रोपाई के 30 से 35 दिन बाद और 27 किलो यूरिया 45 से 50 दिन बाद खड़ी फ़सल में डालें।घुलनशील पोषक तत्व➽➢फसल के शुरूआती विकास के समय ह्यूमिक एसिड 1 लीटर प्रति एकड़ या मिट्टी में मिलाकर 5 किलो प्रति एकड़ डालें। यह फसल की पैदावार और वृद्धि में बहुत मदद करता है।➢पौध लगाने के 10-15 दिन बाद खेत में NPK 19:19:19 @ 5 ग्राम  के साथ 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर सूक्ष्म तत्वों की स्प्रे करें।➢शुरूआती विकास के समय कईं बार तापमान के कारण पौधे सूक्ष्म तत्व नहीं ले पाते, जिसके कारण पौधा पीला पड़ जाता है और कमज़ोर दिखता है। ऐसी स्थिति में 19:19:19 या 12:61:0 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें।➢आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद दोबारा स्प्रे करें।➢पौध खेत में लगाने के 40-45 दिनों के बाद बोरोन 20 % @1 ग्राम के साथ  सूक्ष्म पोषक  तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी से स्प्रे करें।➢फसल में तत्वों की पूर्ति और पैदावार 10-15 प्रतिशत बढ़ाने के लिए 13:00:45 की 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दो स्प्रे करें।➢पहली स्प्रे 50 दिनों के बाद और दूसरी स्प्रे पहली स्प्रे के 10 दिन बाद करें।➢जब फूल या फल निकलने का समय हो तो 0:52:34 या 13:0:45 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।➢अधिक तापमान होने के कारण फूल गिरने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए प्लेनोफिक्स(एन ए ए) 4  मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने के समय करें। 20-25 दिन बाद यह स्प्रे दोबारा करें।

जलवायु और सिंचाई

बैंगन की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई➽➢पौधे की जड़ क्षेत्र के आसपास नमी की निरंतर आपूर्ति बनाए रखनी चाहिए। ➢रोपाई के बाद पहले और तीसरे दिन हल्की सिंचाई करें।➢इसके बाद सर्दियों में 8-10 दिन और गर्मी में 5-6 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

रोग एवं उपचार

बैंगन की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

बीमारियां और कीटों की रोकथाम☟⇻कीट प्रबंधन⇺1) सफ़ेद मक्खी (फ्रूट फ्लाई )➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢विकृत या क्षतिग्रस्त पत्तियां, पत्तियों का पीलापन, पत्तियों का सिकुड़ना, पौधों की वृद्धि रुक ​​जाना, पत्तियों का समय से पहले गिरना, पौधों का मुरझा जाना आदि सफ़ेद मक्खी के संक्रमण से होता हैं।➢बड़े संक्रमण के मामलों में, सफेद मक्खी के भोजन से सीधे नुकसान से पौधे की मृत्यु हो सकती है।➢पत्तियां पीली हो जाती हैं, नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और सूख जाती हैं। पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग के फंफूद का विकास होता है।रोकथाम➩➢नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचें। ➢फसलों की ऊंचाई के समान पीले चिपचिपे जाल 16/एकड़ की दर से खेत में लगाएं। ➢सफेद मक्खियों के नियंत्रण के लिए एसीफेट 57 एस पी @ 300 ग्राम/ एकड़ या थियाक्लोप्रिड 4.5 ग्राम /10 लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 75 WP 4 ग्राम /10 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में घोलकर छिड़काव करें।2) टहनी और फल छेदक कीट (शूट एंड फ्रूट बोरर)➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢टहनी और फल छेदक कीट के हमले के कारण युवा टहनियां मुरझा जाती हैं। ➢फलों पर मल-मूत्र से भरे हुए छेद दिखाई देते हैं और फूलों की कलियां गिरने लग जाती हैं। रोकथाम➩➢लंबे और संकरे फलों वाली किस्में उगाएं। नीम के तेल @ 5 ऍम अल प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें। ➢प्रभावित टहनियों और फलों को हटाकर नष्ट कर दें। नर को आकर्षित करने वाले फेरोमोन ट्रैप 4 प्रति एकड़ की दर से खेत में लगाएं। ➢क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी @ 4 मिलीलीटर/ 10 लीटर पानी या फ्लुबेनडीयामाइड 50 डब्ल्यूजी @ 3 ग्राम/10 लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर स्प्रे करें।3 ) थ्रिप्स➽नुकसान के लक्षण➩➢थ्रिप्स के बच्चे पीले रंग के बिना पंखो वाले होते हैं जबकि वयस्क पीले से काले शरीर के होते हैं।➢वे पत्तियों और फूलों को खुरेदकर खाते हैं जिसके कारण पत्ते और फूलों पर सिल्वर से भूरे रंग की लाइने बन जाती हैं।नियंत्रण➩➢नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों में छिड़काव करें।➢कीट की निगरानी के लिए पीले चिपचिपे जाल (2 ट्रैप/एकड़) लगाएं। ➢कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए एसीफेट 300 ग्राम/200 लीटर पानी या थियामेथोक्सम 40 ग्राम/ 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में घोलकर छिड़काव करें।4) माहू या  चेपा  (एफिड्स)➽नुकसान के लक्षण➩➢ये पत्तियों से रस चूसते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और गिर जाती हैं।नियंत्रण➩➢नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिक खुराक लगाने से बचें।➢एफिड्स को नियंत्रित करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 20 एस पी @ 60 ग्राम प्रति एकड़ पानी में मिलाकर स्प्रे करें।5) काले बिंदुओं वाली बीटल (एपीलैकना)➽नुकसान के लक्षण➩➢एपीलैक्ना बीटल के बच्चे और वयस्क दोनों पत्तो को खुरेदकर उनसे हरे पदार्थ को खाते रहते हैं। ज्यादा संक्रमण होने पर पत्तियाँ गिर जाती हैं।नियंत्रण➩➢खेत में नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिक खुराक लगाने से बचें।➢इसके नियंत्रण के लिए थियाक्लोप्रिड 4.5 ग्राम /10 लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 75 WP 4 ग्राम /10 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।⇻रोग प्रबंधन⇺1) युवा पौधों का गिरना (डम्पिंग ऑफ)➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢यह रोग पौधे की युवा अवस्था में होता है। इसके प्रकोप से जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला हो जाता है। ➢जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और मर जाता है। रोकथाम➩➢बीज बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।➢रोग संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें।➢कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम/लीटर पानी के साथ पौधे के जड़ क्षेत्र के पास की मिट्टी को भिगो दें।2) फल गलन रोग (फ्रूट रॉट)➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢संक्रमित फलों पर फफूंदी लग जाती है। संक्रमित फलों की त्वचा में नर्म, गहरे हरे, पानी से भीगे हुए घाव दिखाई देते हैं। ➢फल अंदर से पानीदार और मुलायम हो जाते हैं और फल खराब गंध छोड़ते हैं।रोकथाम➩➢रोग संक्रमित फलों को तोड़कर नष्ट कर दें।➢जब रोग का संक्रमण दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी @ 2.5 ग्राम / लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।3) सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग (सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट )➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢इस रोग के संक्रमण से पत्तियों पर कोणिय धब्बे बन जाते हैं जो बाद में स्लेटी भूरे रंग के हो जाते है। ज्यादा सक्रमण होने पर पत्तियां निचे गिर जाती हैं।रोकथाम➩➢गैर रोग संक्रमित फसलों के साथ फसल चक्रण का पालन करें।➢रोग मुक्त बीजों को उगाएं।➢बीज बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।➢क्लोरोथलोनिल 75 डबल्यूपी 400 ग्राम या कॉपर ओक्सिक्लोराइड़ 400 ग्राम या फिर मेंकोजेब 75 डबल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से पौधों पर छिड़काव करें।4) जीवाणु उखटा (बैक्टीरियल विल्ट) रोग➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢रोग संक्रमण से पौधों की पत्तियाँ मुरझा जाती हैं पीले रंग की होकर गिर जाती हैं और तना अंदर से भूरे रंग का हो जाती हैं और पौधा सुख कर गिर जाता हैं।रोकथाम➩➢गैर रोग संक्रमित फसलों के साथ फसल चक्रण का पालन करें।➢जब रोग का संक्रमण दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी @ 2.5 ग्राम/ लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।5) चितकरबा रोग (तंबाकू मोज़ेक वायरस)➽नुकसान के लक्षण (पहचान कैसे करें)➩➢यह रोग तेले कीट या रोग संक्रमित बीजों की बुवाई के कारण खेत में फैलता हैं। ➢वायरस संक्रमित पौधों की वृद्धि रुक जाती हैं व् पौधों में फूल और फल नहीं बनते। रोकथाम➩➢इस रोग से पौधों को बचाने के लिए कीट संक्रमण को नियंत्रण में रखें।➢जैविक तरीके से कीट नियंत्रण के लिए नीम के तेल या नीम की गिरी के अर्क 5 % का पौधों पर छिड़काव करें। ➢रसायनिक तरीके से कीट नियंत्रण के लिए एसिटामिप्रिड 4 ग्राम या 75 WP  या इमिडाक्लोप्रिड 40 मिलीलीटर/ एकड़ या थियामेथोक्सम 40 ग्राम 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण➽➣पौधे के विकास के प्रारंभिक चरण में, विशेष रूप से खेत को खरपतवार मुक्त रखा जाना चाहिए, क्योंकि खरपतवार फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और उपज में भारी कमी करते हैं।➣नियमित अंतराल पर बार-बार उथली गुड़ाई की जानी चाहिए ताकि खेत को खरपतवारों से मुक्त रखा जा सके और  उचित जड़ विकास हो सके। ➣जड़ों के क्षतिग्रस्त होने और सतह पर नम मिट्टी के संपर्क में आने के कारण गहरी खेती हानिकारक है।➣फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए दो-तीन निराई-गुड़ाई करनी पड़ती है। ➣पौध रोपाई करने के बाद 2- 3 बार हाथ द्वारा निराई गुड़ाई करनी चाहिए। पहली गुड़ाई पौध रोपण के 20- 25 दिन बाद और दूसरी गुड़ाई पौध रोपण के 40- 45 दिन बाद करनी चाहिए।रसायनिक उपचार➽➣पौधे लगाने से पहले मिट्टी में फलूकलोरालिन 800-1000 मि.ली. प्रति एकड़ या एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ की मिट्टी के तल पर स्प्रे करें। 

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।