यह पौधा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और बिहार के वनों में अधिक होता है । सामान्य हल्दी के पत्ते की तरह इसके भी पत्ते होते हैं। इन पत्तों के मध्य में काली धारियां होने से काली हल्दी का पौधा पहचाना जा सकता है यह 1 वर्षीय पौधा है जिसका कंद सुगंधित धूसर दूसरी वर्ण एवं चक्राकार करो से युक्त होता है। इसकी सुगंध कपूर के समान होती है काली हल्दी का पौधा अमर पातालकोट में पाया जाता है। इसकी खेती पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में की जाती ह। इसका उपयोग सामान्य हल्दी की तरह करते है। उष्ण जलवायु नमी वाले क्षेत्रों जिनमें सालाना वर्षा 15 मिमी हो और फसल उगाई के समय समान रूप से वर्षा होना बहुत उपयुक्त होता है। दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी खेती के लिए अच्छी होती है किंतु जल निकास वाली दोमट मिट्टी अत्यंत ही उपयुक्त होती है। चिकनी मिट्टी वाली में इसके कंदों की वृद्धि नहीं हो पाती है।
काली हल को मध्य भारत और दक्षिण भारत में मुख्य रूप से उगाया जाता है |
स्वास्थ्य लाभ असंख्य हैं, कई उपयोग, कैलोरी न के बराबर और जोखिम या दुष्प्रभाव नगण्य हैं। इसे अपने भोजन में साबुत, कुचला, कद्दूकस किया हुआ, कटा हुआ या जूस में मिलाया जा सकता है। इसे पेय, सब्जियों में मिलाया जा सकता है, अचार (अचार) के रूप में खाया जा सकता है और कुछ सख्त प्रशंसकों के लिए सूखे मीठे अदरक या अदरक लोजेंज को मिठाई के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
रोपाई कन्दो द्वारा की जाती है। मुख्यतः पुराने कंदों में से अंकुरित कंदों का रोपण करना चाहिए। इन की रोपाई 30 x 30 सेंटीमीटर की कतारों में जुलाई माह में की जानी चाहिए।
खेत की मिट्टी को दो तीन जुताई करके भुरभुरी अवश्य कर लेना चाहिए। इसके पश्चात ही रोपाई की जानी चाहिए।
काली हल्दी Black Turmeric का पौधा दिखने में केले के समान होता है काली हल्दी या नरकचूर याक औषधीय महत्व का पौधा है | जो कि बंगाल में वृहद् रूप से उगाया जाता है | इसका उपयोग रोग नाशक व सौंदर्य प्रसाधन दोनों रूपों में किया जाता है
कंदो के रूप में रोपाई करने के लिए एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 20 किवंटल कंदो की आवश्यकता होती है
काली हल्दी के बीज ( कंद ) किसी विश्वसनीय स्थान या कृषि विज्ञान केंद्र से ही खरीदना चाहिए।
भूमि में 20 क्विंटल गोबर की खाद डालनी चाहिए।
सिंचाई यदि वर्षा अच्छी होती है तथा खेत में नमी बनी हुई है। तो खेत की सिंचाई आवश्यकता नहीं रहती है। किंतु शरद ऋतु में एक दो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
काली हल्दी के पौधों में न के बराबर रोग देखने को मिलते है, किन्तु कुछ कीट रोग ऐसे होते है, जो इसके पौधों में लगकर इसके पौधों को हानि पहुंचते है |जैविक कीटनाशकों का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
निराई गुड़ाई करके हाथों से निकाल देना चाहिए। दो सप्ताह पश्चात बुवाई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए।
कुदाल फावड़ा देशी हल इत्यादि की आवश्कता पड़ती है।