राई की खेती

छोटे और काले या लाल दाने वाली राई अक्सर छोटे, गोल, लाल और काले दानों में पाई जाती है। विदेशों में सफेद रंग की राई भी मिलती है। राई के दाने सरसों के दानों से काफी मिलते - जुलते हैं। हालांकि, राई सरसों से थोड़ी छोटी होती है। यह ग्रीष्म ऋतु में पककर तैयार होती है। राई के बीजों का तेल भी निकाला जाता है।


राई

राई उगाने वाले क्षेत्र

राई की खेती भारत के कई राज्य में की जाती है जैसे उत्तरप्रदेश ,राजस्थान ,झारखण्ड ,मध्यप्रेदश आदि। 

राई की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

राई में कई तरह के पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की प्रचुरता होती है. जैसे इसमें मैग्नीशियम, फाइबर, मैगनीज, फास्फोरस, तांबा, विटामिन बी, फिनॉलिक एंटीऑक्सीडेंट्स, आदि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं.! यह शुगर ,कैंसर ,अस्थमा , रक्तचाप, पित्ताशय की पथरी में लाभदायी होता है !

बोने की विधि

बुवाई देशी हल के पीछे उथले कूड़ों में करने के बाद हल्का पाटा लगा देना चाहिये।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

राई  की खेती बारानी एवं सिंचित दोनों ही दशाओं में की जाती है। सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन-चार जुताईयां तबेदार हल से करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढेले न बनें। बुआई से पूर्व अगर भूमि में नमी की कमी हो तो खेत में पलेवा करने के बाद बुआई करें। फसल बुआई से पूर्व खेत खरपतवारों से रहित होना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में प्रत्येक बरसात के बाद तवेदार हल से जुताई करनी चाहिए जिससे नमी का संरक्षण हो सके। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे कि मृदा में नमी बने रहे। 

बीज की किस्में

राई के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

वरुणा (टा.59), क्रांति, रोहिणी, लाहा-101 कृष्णा, शेखर, पूसा बोल्ड, वैभव, नरेंद्र राई 8501,प्रकाश, पूसी बारानी,वरदान, आर्शीवाद।

बीज की जानकारी

राई की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

5-6 किग्रा प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

सरसो के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

राई की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

सामान्यतः मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। 10 - 12 टन गोबर की खाद डालना आवश्यक है। 120 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये। फॉस्फोरस देने के लिये सिंगल सुपर फॉस्फेट अधिक लाभदायक होता है क्योकिं इससे सल्फर की भी पूर्ति हो जाती है।

जलवायु और सिंचाई

राई की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

राई की अच्छी पैदावार के लिए प्रथम सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरी फली आने के समय करना चाहिए।

रोग एवं उपचार

राई की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) झुलसा रोग - इस रोग में पत्तियों, शाखाओं तथा फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं जिनमें गोल-गोल छल्ले बन जाते हैं जो पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए मैनकोजब 75% की 2 किग्रा मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से दो छिड़काव करने चाहिए। (ii) सफेद गेरुई - इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते हैं और बाद में पुष्प विन्यास विकृत हो जाता है। इसकी रोकथाम झुलसा रोग की भाँति की जा सकती है। इसके अतिरिक्त रिडोमिल एम.जेड.- 78 को 2.5 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना लाभदायक है। बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। (iii) तना सड़न रोग - इस रोग के लक्षण पौधों के तने पर प्रकट होते हैं। तने पर पीले धब्बे के ऊपर फफूंदी की सफेद वृद्धि दिखाई देती है। अन्त में तना उस स्थान से सड़ना शुरु करता है और पूरा पौधा सूख जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम का 1 किग्रा प्रति हैक्टयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर 2 छिड़काव करने चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवारों को नष्ट करने के लिए एक निराई-गुडा़ई पहली सिंचाई से पहले और दूसरी पहली सिंचाई के बाद कर देनी चाहिये। खरपतवार नियंत्रण के लिये बुवाई के पूर्व पेण्डीमेथिलीन 30 ई.सी. 3.3 लीटर/हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरन्त बाद जमाव के पहले छिड़काव करना चाहिये।

सहायक मशीनें

देसी हल ,खुरपी ,कुदाल ,हैरो , की आवश्यकता होती है