लोबिया दाल एवं सब्जी दोनों के लिए प्रयोग की जाती है इसके साथ-साथ जानवरों के चारे में भी प्रयोग की जाती हैं। भूमि में हरी खाद देने के रुप में भी प्रयोग करते हैं। भारत में लोबिया की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, केरल तथा उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में की जाती है।
भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश इसके मुख्य उत्पादक राज्य है।लोबिया की फसल लगभग सभी प्रकार की भूमि में अच्छे प्रबंधन के साथ उगाई जा सकती है।यद्यपि लोबिया की फसल मटियार या रेतीली दोमट भूमि में अच्छी होती है, फिर भी लाल, काली तथा लैटराइट भूमि में भी उगाया जाता है। इसके लिए मिट्टी का पी एच मान उदासीन होना चाहिए। अत्यधिक लवणीय या क्षारीय मृदा अनुपयुक्त होती है। अच्छे जल निकास और प्रचुर रूप से कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी इसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त होती है।
लोबिया का दाना मानव आहार का पेाष्टिक घटक है तथा पशुधन चारे का सस्ता स्रोत भी है। इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0. 08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है। इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है।
👉 लोबिया के बुवाई का समय - इस फसल की खेती के लिए मार्च- मध्य जुलाई उचित समय है।👉 बीजों का उपचार- बीज की बुवाई से पहले बीजों को एमीसान-6 @ 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयूपी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें।👉बिजाई के समय पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. रखें।👉 बीज की गहराई- बुवाई 3-4 सैं.मी गहराई में करनी चाहिए।👉बुवाई की विधि -इसकी बुवाई पोरा ड्रिल या बिजाई वाली मशीन से की जाती है।
👉 लोबिया की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। लोबिया की खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 उचित रहता है। भूमि में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए तथा क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।👉अन्य फसल की तरह इस फसल के लिए सामान्य बीज बैड तैयार किए जाते हैं। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की दो बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।गोबर या कम्पोस्ट की 5 टन मात्रा बुवाई से एक माह पहले खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए।
👉 टाइप -2 : -फसल अवधि 125-130 दिन, पौधा फलने वाला और उत्तर प्रदेश के मैदानी खेत्रों के लिए उपयुक्त।👉 पूसा बरसाती -अगेती बौनी किस्म, पहली फलत 45 दिन की अवस्था में आ जाती है।जून - जुलाई में बुवाई हेतु सर्वोत्तम किस्म, और पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी भारत के कुछ क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।👉 पूसा फाल्गुनी -पौधे बौने तथा झाड़ीनुमा होते हैं।फसल अवधि 60-70 दिन, फरवरी - मार्च में बोवाई के लिए उपयुक्त, दाने सफेद रंग के, छोटे तथा बेलनाकार और मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के लिए उपयुक्त।👉 पूसा दो फसली -पौधा छोटा व झाड़ीनुमा, फसल अवधि 70-80 दिन, इसके दाने पूसा फाल्गुनी से कुछ बड़े तथा धब्बेदार होते हैं, यह प्रकाश - असंवेदनशील किस्म है।👉 पूसा ऋतुराज -यह किस्म ग्रीष्म तथा वर्षा दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है, फलियों की पहली फलत बोवाई 40-45 दिन पर आ जाती है, भारत के अधिकाँश भागों के लिए उपयुक्त किस्म उत्तरी के .👉 पूसा कोमल -यह लोबिया की नई प्रजाति है, यह किस्म नई दिल्ली से विकसित की गई है, यह सब्जी तथा दानों के लिए उपयुक्त है।👉सी -152 : -फसल अवधि 105-110 दिन , खरीफ की बोवाई के लिए उपयुक्त, और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र तथा जम्मू कश्मीर में शुद्ध तथा मिक्स्ड क्रोपिंग के लिए उपयुक्त है।👉68 एफ.एस. : -यह किस्म पूसा दो फसली की अपेक्षा लगभग एक सप्ताह देर से पकती है, यह बसंत ऋतू के लिए उपयुक्त है, सब्जी तथा दाने के लिए उपयुक्त।👉 अम्बा -यह किस्म खरीफ के लिए उपयुक्त है , फसल अवधि 95-100 दिन है , दाने का रंग लाल होता है , यह कवक तथा जीवाणुओं से उत्पन्न होने बीमारियों वाली के प्रतिरोधक तथा विषाणु रोगों के लिए सहनशील किस्म है।👉 स्वर्ण -यह किस्म अम्बा से जल्दी पकती है, इस किस्म की विशेषता है की फली का डंठल काफी लंबा होता है और सारी फलियाँ फसल के ऊपर रहती है जिस कारण फलियाँ पकने पर आसानी से तोड़ी जा सकती है।यह किस्म 15 जून से 10 जुलाई तक बोई जाती है , दाना गहरे लाल रंग का होता है,यह सबसे अधिक उपज देने वाली लोबिया की किस्म है । .👉 Kashi Kanchan:यह छोटी और फैलने वाली किस्म है। इसकी खेती गर्मी के मौसम के साथ - साथ बरसात के मौसम में की जा सकती है। इसकी फलियां नर्म और गहरे हरे रंग की होती हैं। इसकी फली की औसतन पैदावार 60-70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।👉 Pusa su Komal:इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।👉 Kashi Unnati :इस किस्म की फलियां नर्म और हल्के हरे रंग की होती हैं। यह बिजाई के 40-45 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।चारे के लिए उपयुत : किस्में -रशियन जोइंट10, सिरसा, यु पीसी - 278, यू.पी.सी. 5286, के - 397, जवाहर -1 लोबिया, जवाहर लोबिया -21
(i) फलियों के लिए 10से 12 किग्रा/ एकड़(ii) दाना के लिए 12 से 15किग्रा / एकड़(iii) हरा चारे के लिए 15से 20किग्रा / एकड़
लोबिया के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
लोबिया के बिजाई के समय नाइट्रोजन 7.5 किलो (यूरिया 17 किलो)प्रति एकड़ के साथ फासफोरस 22 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 140 किलो) प्रति एकड़ में डालें। लोबिया की फसल फासफोरस खाद के साथ ज्यादा क्रिया करती है। यह जड़ों के साथ साथ पौधे के विकास, पौधे में पोषक तत्वों की वृद्धि और गांठे मजबूत करने में सहायक होती है।
लोबिया के फसल की अच्छी वृद्धि के लिए औसतन 4-5 सिंचाइयां की आवयश्कता होती हैं।जब फसल मई के महीने में उगाई जाये तो 15 दिनों के अंतराल पर मॉनसून आने से पहले सिंचाई करें।
मोजैक रोग - रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां हल्की पीली हो जाती हैं। इस रोग में हल्के पीले तथा हरे रंग के दाग भी बन जाते हैं। रोग की उग्र अवस्था में पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और उन पर फफोले अस्पष्ट उभार आते हैं। रोगी फलियों के दाने सिकुड़े हुए होते हैं तथा कम बनते हैं। इस रोग के नियंत्रण हेतु रोगी पौधे को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिये एवं रोगरोधी किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। फसल इस रोग प्रकोप दिखे तो डाइमेथोएटे 30 % इसी 30 मिली लीटर 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
👉लोबिया की फसल में समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करके खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए।👉 लोबिया के फसल को खरपतवारों से बचाने के लिए बुवाई के 24 घंटों के अंदर अंदर पैंडीमैथालीन 30 EC 750 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों या कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्कता पड़ती हैं।