चुकंदर की खेती

चुकंदर मीठी स्वाद वाली एक सब्जी है. अलग- अलग प्रांतों में जिस तरह यह अलग अलग मौसम में उगाया जाता है उसी तरह अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. हिंदी प्रदेशों में इसे चुकंदर के नाम से जाना जाता है वहीं बांग्ला में इसे बीट गांछा बोला जाता है. गुजराती में सलादा कहा जाता है तो दक्षिण भारत में बीट समेत अलग-अलग नामों से इसे जाना जाता है. 


चुकंदर

चुकंदर उगाने वाले क्षेत्र

हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में की जाती है 

चुकंदर की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

चुकंदर में भरपूर मात्रा में आयरन, विटामिन्स मिल जाते है जो हमारे शरीर में खून की मात्रा को कभी कम नहीं होने देते। यह हाई ब्लड प्रेशर को दूर रखने में सहायता करता है। एंटी-कैंसर तत्वों की उपस्थिति के अलावा यह आंतो को साफ़ रखने में भी लाभदायक है।

बोने की विधि

बिजाई के लिए गड्ढा खोद कर और हाथ से छिड़काव करने के तरीके का प्रयोग करें। बीज की 25 सेंटीमीटर गहराई पर बिजाई करें। बिजाई के लिए लाइनों से लाइनों की दूरी 45-50 सेंटीमीटर रखें। पौधे से पौधे की 15-20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। किंतु बलुई दोमट या दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

चुकंदर के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

01. डेटरोडिट डार्क रेड - यह किस्म 80-90 दिन में तैयार हो जाती है तथा पत्तियां कुछ गहरा लाल रंग (Dark Red) लिये हरी होती हैं। जड़ें चिकनी, गोलाकार व गहरी लाल रंग की होती हैं तथा गूदे में हल्के लाल रंग की धारियां व गूदा रवेदार मीठा होता है| 02. क्रिमसोन ग्लोब - यह किस्म अधिकतर बोई जाती है। जड़ें चपटे आकार की एवं छोटी होती है। पत्तियां गहरी लाली लिये हुए हरे रंग वाली होती हैं। जड़ें ग्लोब्यूलर होती है। गूदा गहरे लाल रंग का होता है तथा धारियों वाला होता है।

बीज की जानकारी

चुकंदर की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

6-8 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर।

बीज कहाँ से लिया जाये?

चुकंदर के बीज किसी विश्वसनीय स्थान या कृषि विज्ञान केंद्र  से ख़रीदे। 

उर्वरक की जानकारी

चुकंदर की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

60-70 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस तथा 80 किलो पोटाश एक हेक्टेयर के लिये पर्याप्त होता है । नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई से 15-20 दिन पूर्व मिट्टी में मिलायें तथा शेष नाइट्रोजन को बोने के बाद 20-25 दिन व 40-45 दिन के बाद दो बार में छिड़कना लाभदायालक हो सकता है।

जलवायु और सिंचाई

चुकंदर की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

बुवाई के 10-15 दिन बाद पहली सिंचाई करें । यदि पलेवा करके बुवाई की है तो नमी के अनुसार पानी लगायें। ध्यान रहे कि पहली सिंचाई हल्की करें। शरद-ऋतु की फसल होने से 12-15 दिन के अन्तराल से सिंचाई करते रहें ताकि खेत में नमी बनी रहे । यदि गर्मी हो तो 8-10 दिन के अन्तर से पानी देते रहना चाहिए।

रोग एवं उपचार

चुकंदर की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

01. पत्तियों का धब्बा - इस रोग में पत्तियों पर धब्बे जैसे हो जाते हैं । बाद में गोल छेद बनकर पत्ती गल जाती है । नियन्त्रण के लिये फंजीसाइड, जैसे- डाइथेन एम-45 या बेवस्टिन के .1% घोल का छिड़काव 15-20 दिन के अन्तर पर करने से आक्रमण रुक जाता है । 02. रुट-रोग - यह रोग जड़ों को लगता है जिससे जड़ें खराब होती हैं । नियन्त्रण के लिए फसल-चक्र अपनाना चाहिए। प्याज, मटर बोना चाहिए तथा बीजों को मकर्यूरिक क्लोराइड के 1% के घोल से 15 मिनट तक उपचारित करना चाहिए। अन्य रोग अवरोधी फसलों को साथ बोना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण हेतु सिंचाई के 3-4 दिन बाद निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे घास, वथूआ आदि निकल जायें तथा फसल की जड़ें अधिक वृद्धि कर सकें और उपज बेहतर हो।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।