यह एक दलहनी फसल है जो रबी की फसल में हरे चारे की प्रमुख फसल मानी जाती है। इसमें लगभग 20% प्रोटीन पाया जाता है। पशुओं के लिए यह एक पौष्टिक चारा है जो पशुओं की पाचन शक्ति बढ़ाता है तथा दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा बढ़ाता है। यह खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाता है।
बरसीम की खेती उत्तरप्रदेश में मुख्य रूप से की जाती है।
पशुओं को पौष्टिक आहार वातावरण प्रदान करने हेतु बरसीम एक महत्वपूर्ण हरे चारे वाली फसल है। बरसीम के शुष्क पदार्थ की पाचनशीलता 70 प्रतिशत होती है और इसमें 20 से 21 प्रतिशत प्रोटीन उपलब्ध रहता है। इसको खिलाने से पशु स्वस्थ रहते हैं, उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि होती है तथा दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में वृद्धि होती है।
खेत की 4 * 5 की तैयार क्यारियों में 5 सेंटीमीटर गहरा पानी भरकर उसके ऊपर शोधित बीज छिड़ककर बुवाई की जानी चाहिए। बुवाई के 24 घंटे बाद पानी क्यारियों से निकाल देना चाहिए। जहाँ धान कटने के बाद बरसीम की बुवाई की जाती है वहाँ पर यदि धान कटने में देरी हो तो धान कटने से 10 - 15 दिन पूर्व भी बरसीम को धान की खड़ी फसल में छिड़काव विधि से बोया जा सकता है।
बरसीम की खेती के लिए दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है। इसकी खेती क्षारीय भूमि में भी की जाती है। खेत की तैयारी - बरसीम की फसल की उगाई लिए खेत को पहले मिट्टी पलटने वाले हल से 15 सेमी गहरी जोत लेना चाहिए। इसके बाद 3 से 4 जुताई देशी हल तथा हैरो से करनी चाहिए। फिर खेत पर पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी और समतल कर देना चाहिए।
(I) डिप्लाइड जातियां बरसीम लुधियाना-1, खदरावी,छिन्दवारा, फाहली आदि। (ii) टेट्राप्लाइड जातियां टाइप 678, टाइप 780, पूसा जाइन्ट, टी- 526, टी-560 वी एल-1 आदि। (iii) अन्य उन्नत जातियां बी एल-22, बरदान, यू पी वी-101 आदि।
इसके बीज की मात्रा 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बोनी चाहिए।
बरसीम का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
बरसीम की अच्छी उपज लेने के लिए गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट 10 टन तथा 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. स्फुर और 20 कि.ग्रा. पोटाश/हे. की दर से बोनी पूर्व में खेत में बिखेर कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाना चाहिए ।
सिंचाई तथा जल निकास - बरसीम की फसल में प्रथम सिंचाई अंकुरण के बाद करनी चाहिए। फिर 2 से 3 सिंचाई 10-10 दिन के अंतर से करनी चाहिए तथा सिंचाई में 4 से 5 सेमी से गहरा पानी नहीं देना चाहिए।
(i) तना सड़न रोग - यह रोग फफूंदी से लगता है। इसमें पौधों के तने सड़ने लगते हैं तथा फफूंदी जमीन पर सफेद रुई की तरह दिखाई देने लगती है जिससे पौधे मुरझाकर नष्ट हो जाते हैं। इसके उपचार के लिए फफूंदी रोधी बीज बोने चाहिए तथा बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। (ii) पत्तियों का रोग - इस रोग के कारण पत्तियों का रंग कासें के समान हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में फास्फोरस के उवर्रक देने चाहिए तथा जल निकास कर देना चाहिए।
बरसीम में निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता कम पड़ती है। बरसीम के साथ कासनी खरपतवार उग आते हैं जिसको निकाई-गुड़ाई करके निकाल देते हैं।
प्रथम कटाई फसल बोने से 50 से 60 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद 25 से 30 दिन के बाद कटाई करते रहना चाहिए। इसकी कटाई जमीन से 5 से 7 सेमी ऊँचाई से करते हैं।