बेल की खेती

बेल एक प्राचीन फल वृक्ष है जिसका प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में उपयोग होता है। इसका वृक्ष मध्यम ऊँचाई (5-10 मीटर) का होता है तथा पत्तियाँ सयुंक्त त्रिपर्णी होती हैं। तना व टहनियों पर कांटे पाये जाते हैं जो पौधों को शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रीय जलवायु के प्रति सहिष्णुता प्रदान करते हैं। बेल एक उपोष्ण कटिबंधीय, जलवायु का पौधा है जिसमें पतझड़ के पश्चात ग्रीष्म ऋतु में नयी पत्तियां एवं फूल आते हैं। बाग़ लगाने के 3-4 वर्षों तक पौधों के कतारों के बीच की खाली भूमि में अन्तः फसलें लगाकर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।बारानी क्षेत्रों में लोबिया, मोठ, ग्वार, मूंग तथा सिंचित क्षेत्रों में सब्जियां बैंगन, मिर्च, मटर, गोभी, आदि लगाए जा सकते हैं।


बेल

बेल उगाने वाले क्षेत्र

भारत में बेल की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, आंध्रप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पँजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, अण्डमान एवं निकोबार द्वीप में की जाती है।

बेल की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

नमी - 61.5 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट्स - 31.8 ग्राम, प्रोटीन - 1.8 ग्राम, रेशा - 2.9 ग्राम, खनिज लवण - 1.7 ग्राम, वसा - 0.3 ग्राम, अम्लता - 0.31-0.40%, कैल्सियम - 85 मिग्र, लौह - 0.6 मिग्र, म्यूसिलेज - 12.7-19.5%, कुल घुलनशील पदार्थ (टीएसएस) - 31-35.50 ब्रिक्स, राइबोफ्लेबिन - 1.1 मिग्रा., कैरोटिन - 55 मिग्रा., थायमिन - 0.13 मिग्र., नियासिन - 1.1 मिग्रा., विटामिन ‘सी’ - 8-18 मिग्रा।

बोने की विधि

गड्ढों में जुलाई-अगस्त में पौध रोपण करना चाहिए। रोपाई बिधि के द्वारा गड्डा खोद कर करे !

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

यद्यपि बेल के पौधे अनुपजाऊ, बंजर, परती, ऊसर, रेतीली भूमि में सफलतापूर्वक लगायें जा सकते हैं परन्तु अच्छी पैदावार एवं गुणवत्ता के लिए अच्छे जलनिकास वाली बलुई दोमट, जिसका पी.एच. मान 5-8 के बीच हो उपयुक्त रहती है

बीज की किस्में

बेल के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

नरेंद्र बेल- 5, नरेंद्र बेल- 7, नरेंद्र बेल- 9, पंत अपर्णा, पंत शिवानी, पंत सुजाता, पंत उर्वशी, गोमा यशि, आदि बेल की उन्नत किस्में हैं।

उर्वरक की जानकारी

बेल की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

फलवृक्षों के लिए पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। अन्य फलदार पौधों की तरह ही बेल से समुचित उत्पादन लेने के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। बेल के पौधों को 10-15 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फोरस तथा 75-100 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष प्रति वृक्ष के हिसाब से देना चाहिए। जब पौधे की आयु 5-7 वर्ष हो जाये तो यह मात्रा निश्चित कर देना चाहिए। जुलाई-अगस्त खाद एवं उर्वरक देने का सबसे उपयुक्त समय है। पौधे के तने से 2-3 फ़ीट की दूरी पर चरों तरफ परिधि में खाद मिट्टी में मिला देना चाहिए, तत्पश्चात सिंचाई करनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

बेल की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

बेल के पौधों को स्थापित करने के लिये प्रारम्भिक अवस्था में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पौधों की वृद्धि एवं फल विकास वर्षा ऋतु में ही अधिक होता है, अतः उपलब्ध वर्षा जल को नमी संरक्षण द्वारा उयोग में लाकर बेल से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

रोग एवं उपचार

बेल की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. दीमक - यह कीट फसलों को अधिक हानि पहुंचाता है, दीमक के नियंत्रण के लिए सिंचाई करते समय क्लोरोपायरीफॉस  20 % EC   कीटनाशी की 4-5 बूंदे हर एक पौधे के थाले में देने पर दीमक से बचाव होता है। 2. कैंकर रोग - इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन (500ppm.) के घोल का 2-3 बार छिड़काव किया जाना चाहिए। 3. पर्ण भक्षी और सुरंग बनाने वाली इल्लियाँ - ये कीट पौधों की पत्तियाँ व कोमल तना को नुकसान पंहुचाती है। इन कीटों के नियंत्रण लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 % SL कीटनाशक का 0.01% घोल का 7-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियन्त्रण हेतु निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यन्त्रों की आवश्यकता होती है।