पेठा की खेती

पेठा बेल पर लगने वाला फल है, जो सब्जी के रूप में खाया जाता है। इसके फल से मिठाई भी बनाई जाती है, जिसे पेठा (मिठाई) नाम से जाना जाता है। मैदानी क्षेत्रों में इसे साल में दो बार (फ़रवरी-मार्च एवं जून-जुलाई में) बोया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में पेठे की बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है। नदियों के समीप पेठे की बुवाई दिसंबर में की जाती है।


पेठा

पेठा उगाने वाले क्षेत्र

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पेठे की खेती बहुतायत में की जाती है, इसके अतिरिक्त पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश , राजस्थान सहित पूरे भारत में इसकी खेती की जाती है।

पेठा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

यह मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है। इसका उपयोग कब्ज, अम्लता का इलाज करने के लिए और आंत्र कीड़े को मारने के लिए किया जाता है

बोने की विधि

सभी क्यारियों के बीच 3 से 4 मीटर की दूरी रखें बीज की बुवाई 1 से 1.5 फीट की दूरी एवं 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में करें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पेठे की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, किन्तु अच्छे उत्पादन हेतु बलुई दोमट भूमि इसके लिए उपयुक्त रहती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

पेठा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

PAG 3, CO 1, CO 2,काशी उज्ज्वल, IVAG 502 आदि

बीज की जानकारी

पेठा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 4-5 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है

बीज कहाँ से लिया जाये?

पेठा के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए

उर्वरक की जानकारी

पेठा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग सदैव मृदा जाँच के आधार पर करना चाहिए। यदि किसी कारणवश मृदा जाँच न हो पाए तो 5-6 टन गोबर या कम्पोस्ट की सड़ी खाद बुवाई से 15 दिन पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। उर्वरकों में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत में मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा का खड़ी फसल में 2 बार टॉप ड्रेसिंग के रुप में प्रयोग करना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

पेठा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

मौसम तथा भूमि की किस्म के अनुसार जायद की फसल में 10-15 दिन के अंतराल से सिंचाई करनी चाहिए, जबकि खरीफ (जून-जुलाई) में बोई गई फसल मुख्यत: वर्षा पर निर्भर रहती है। इसीलिए वर्षा न होने की स्थिति में खेत में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यक्तानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।

रोग एवं उपचार

पेठा की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

पत्तों का धब्बा रोग - इस रोग से ग्रसित पौधों के ऊपरी भाग तथा मुख्य तने पर सफेद धब्बे दिखाई देते है। रोग की उग्र अवस्था में पौधों के पत्ते झड़ जाते हैं एवं फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। इस रोग के नियंत्रण हेतु लक्षण दिखाई देते ही कार्बेन्डाज़िम   50 % WP की 0.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिला कर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत को खरपतवार मुक्त ररखना चाहिए। खरपतवार के नियंत्रण हेतु खेत की निराई-गुड़ाई समय-समय पर करते रहना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों या कल्टीवेटर, फावड़ा, खुर्पी आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।