अरबी (घुइयाँ) की खेती

अरबी / घुइयां की खेती पूरे भारत में की जाती है। यह एक उष्णकटिबंधीय पौधा है। इसकी सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है। इसके पत्तों की भी सब्जी बनायी जाती है। कुछ प्रजातियों के कन्दों में कनकनाहट पाई जाती है, जो उबाल देने के बाद समाप्त हो जाती है। पत्तियों में कनकनाहट कन्द की तुलना में अधिक पाई जाती है।


अरबी (घुइयाँ)

अरबी (घुइयाँ) उगाने वाले क्षेत्र

अरबी की खेती किसी भी तरह की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है | बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए | उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है |

अरबी (घुइयाँ) की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

नमी, वसा, रेशा,खनिज पदार्थ, प्रोटीन, लोहा, पोटेशियम, थियामिन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ‘ए', केल्शियम, सोडियम आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं।

बोने की विधि

अरबी की बुवाई लाइनो में करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए। 6 से 7 सेंटीमीटर गहराई पर कंदो की बुवाई या रोपाई करनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

इसकी खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट और भारी मृदा उपयुक्त रहती है। सिंचाई व जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल, हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

अरबी (घुइयाँ) के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

रश्मि, इंद्र, श्री पल्लवी, बी- 250 व 260, सीओ- 1, सतमुखी और श्री करन है। गौरेया, काका काचू, पंचमुखी, एनडीसी- 1, 2 व 3, कदमा, सहर्षमुखी, मुक्ताकाशी, आहिना लोकल, तेलिया, नदिया लोकल, सी- 266, 149, 135 व 9, एस- 3 व 11, पंजाब, बंसी, लधरा, विहार और फ़ैजाबादी आदि किस्म हैं।

बीज की जानकारी

अरबी (घुइयाँ) की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

मध्यम आकार के कन्दों का चुनाव करना चाहिए। 8-10 क्विंटल कन्द प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

अदरक के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए! 

उर्वरक की जानकारी

अरबी (घुइयाँ) की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

150 से 200 क्विंटल गोबर की खाद बुवाई से 1 माह पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए। उर्वरकों में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-60 किलोग्राम फास्फोरस, 50-60 पोटाश प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा को 2 बार फसल में  सिचाई के समय डाल देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

अरबी (घुइयाँ) की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

गर्मियों में एक सप्ताह के बाद सिंचाई करनी चाहिए और वर्षाऋतु में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

अरबी (घुइयाँ) की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

झुलसा रोग - इसकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों को बोना चाहिए। 1.5 - 2 लीटर मैंकोजेब 75 % WP या 1 लीटर डाइथेन एम - 45 को 700 से 800 लीटर में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार के प्रबंधन हेतु समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को बाहर निकाल देना चाहिए। रसायनिक विधि से नियंत्रण हेतु 3.5 लीटर पेंडामेथलिन को 700-900 लिटर पानी में मिलाकर बुवाई के 2-3 दिन तक नम भूमि में प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए जिससे कि खरपतवार का जमाव नही होगा।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।