बादाम की खेती मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर तथा हिमचाल प्रदेश में होती है। बादाम एक लोकप्रिय नट (सूखा मेवा) है। बादाम में ऊपरी भाग कड़ा होता है व स्टोन के अन्दर की गरी खाई जाती है। शुष्क व ठण्डी जलवायु में बादाम का उत्पादन अच्छा होता है। आधिक आर्द्रता हानिकारक होती है। यह मेवा समुद्र तल से 2400 मीटर की ऊंचाई तक पैदा किया जा सकता है। परंतु फल तैयार होने के समय वातावरण गर्म व सूखा होना आवश्यक होता है।
इसकी खेती मुख्य रूप से ठन्डे पर्वती क्षेत्रों में की जाती है। बादाम की खेती अधिकांश मात्रा में जम्मू - कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में होती है।
यह शरीर को उर्जा प्रदान करता है। बादाम के अंदर वसा, प्रोटीन और पोटैशियम होता है जो की हृदय के लिए बहुत अच्छे होते हैं।
पौधे को लगभग 6 मीटर की दूरी पर लगाये जाने चाहिए।
बादाम के लिए गहरी तथा उर्वर मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिनमे कार्बनिक पदार्थ अच्छी मात्रा में हो। अत्यधिक चिकनी मिट्टी इसके लिए अच्छी नहीं होती है।
नानपरेल, डेक, टेक्साज, चिअरलेस, यूरेका, थिनशेल्ड, मरसेड, जोरडेंनालों व रशन हर्डशेल, जे.के.एस-55 आदि।
बादाम को नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ अच्छा हो, इसके लिए दलहनी फसलों की भूमि में संरक्षी फसल लेना चाहिए। साथ ही साथ गोबर की खाद को अधिक उपयोग में लाना चाहिए। फसल में आये वृक्षों को 2.0-2.5 किग्रा अमोनियम सल्फेट व 1.0-1.5 किग्रा सुपर फास्फेट प्रतिवर्ष देना चाहिए।
गर्मी के दिनों में 2 से 3 सिंचाई करने से फल का अच्छा विकास होता है व फल भी कम गिरते हैं।
पत्ती धब्बा रोगयह रोग तब देखने को मिलता है जब पौधे विकास कर रहे होते है | इस रोग के लग जाने से पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है | यही धब्बे धीरे – धीरे बढ़ते जाते है तथा पत्तियों को नष्ट कर देते है | इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर थिरम का छिड़काव किया जाता है |जड़ सड़न रोगयह रोग सामान्य रूप से तब लगता है जब बारिश के मौसम में अधिक बारिश के हो जाने से जलभराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है | इसमें पौधों की जड़ो में सड़न रोग का खतरा होता है जिससे पत्तिया मुरझा जाती है और पौधा सूखने लगता है | इससे बचाव के लिए खेत में जलभराव न होने दे,तथा पौधों की जड़ो में बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करे |कीट आक्रमणपौधों पर कीट रोग का आक्रमण पौधों की पत्तियों और नई शाखाओ में देखने को मिलता है | यह कीट रोग पौधों की पत्तियों और शाखाओ को खाकर पौधे को नष्ट कर देता है | कीट रोग से बचाव के लिए पौधों पर डरमेट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए |
खरपतवार नियंत्रण हेतु समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। प्रथम निराई 10 से 15 दिन बाद, दूसरी निराई 25 से 35 दिन बाद तथा तीसरी निराई 45 दिन पश्चात करनी चाहिए।
मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।