सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है। अन्य दलहनी फसलों की अपेक्षा इसमें प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक (लगभग 40 प्रतिशत) होती है। यह हृदय, मधुमेह एवं कैंसर रोगियों के लिए वरदान है तथा प्रोटीन के कुपोषण से बचने के लिए सस्ता एवं अत्यंत लाभकारी खाद्य पदार्थ है। सोयाबीन की फसल के लिए शुष्क गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, अत: सोयाबीन खेती के लिए 60-65 सेमी वर्षा वाले स्थान उपयुत्त माने गये हैं।
सोयाबीन की खेती भारत के सभी राज्यों में की जाती है। सोयाबीन को विभिन्न प्रकार के जलवायु में उगाया जा सकता है। हालांकि फसल को पकने के लिए शुष्क मौसम आवश्यक है। अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी का तापमान 15C से ऊपर और फसल की अच्छी बढ़वार के लिए तापमान 20-30C होना चाहिए।
मुख्य रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइडेंट और वसा होते है। सोयाबीन में 33 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत वसा, 21 प्रतिशत कार्बोहाइडेंट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म होती है।
सोयाबीन की बुवाई सीडड्रिल या हल द्वारा कतारों में की जाती है। बीज की बुवाई 3-4 सेमी गहरी तथा बीज से बीज की दूरी 30 सेमी तक रखनी चाहिए। गहरी काली भूमि तथा अधिक वर्षा क्षेत्रों में रिजर सीडर प्लांटर द्वारा कूड (नाली) मेड़ पद्धति या रेज्ड बेड प्लांटर या ब्राड बेड फरो पद्धति से बुआई करें ।
सोयाबीन की खेती के लिए उचित जल-निकास वाली दोमट भूमि सबसे अच्छी रहती है।खेत तैयारी करते समय खेत मेंनाडेप खाद, गोबर खाद, कार्बनिक संसाधनों का अधिकतम (5-10टन/ एकड़) या वर्मी कम्पोस्ट 2टन/ एकड़ उपयोग करें ।उपरोक्त मिश्रण को मिट्टी के ऊपर फैलाएँ और रोटावेटर को पूरे खेत में चलाएँ, जिससे मिट्टी एक महीने में बोने योग्य बन जाए।पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देते हैं।
आरवीएस-2001-4, जेएस-2069, जेएस-2034, जेएस-2029, जे एस-335, एम ए सी एस 58, एल एस बी-1, पी के 1029, पी के 472,हार्डी, आदि।
(i) छोटे दाने वाली किस्म - 25 -30 किग्रा प्रति एकड़। (ii) मध्यम दाने वाली किस्म - 30 -35 किग्रा प्रति एकड़। (iii) बडे़ दाने वाली किस्म - 40 -45 किग्रा प्रति एकड़।
सोयाबीन का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए।
उवर्रक प्रबंधन के अंतर्गत रसायनिक उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना सर्वथा उचित होता है ।संतुलित रसायनिक उर्वरक प्रबंधन के लिए 1:2:1 में एनपीके 30:60:30 की मात्रा का प्रयोग करें।नत्रजन की पूर्ति के लिए 66 किलो यूरिया, फास्फोरस केगंधक युक्त उर्वरक (सिंगल सुपर फास्फेट) का उपयोग अधिक लाभकारी होगा एसएसपी 375 किलो और म्यूरेट ऑफ़ पोटास 50 किलों प्रति एकड़ की दर से काम में ले उर्वरक की मात्रा खेत में अंतिम जुताई से पूर्व डालकर भलीभाँति मिट्टी में मिला दें अनुशंसित खाद एवं उर्वरक की मात्रा के साथ जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम प्रति एकड़ मिट्टी परीक्षण के अनुसार डालें।नत्रजन की पूर्ति हेतु आवश्यकता अनुरूप 20 किलोग्राम यूरिया का उपयोग अंकुरण पश्चात 7 दिन से डोरे के साथ डाले ।
सोयाबीन को खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्यत: सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात सितंबर माह में यदि खेत में नमी पर्याप्त न हो तो आवश्यकतानुसार एक या दो हल्की सिंचाई करना लाभदायक है।
(i) ऐन्थ्रेक्रोज - फूल आने की अवस्था में तने फली व पर्वत पर गहरे भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए सोयाबीन की रोगरोधी किस्मों को उगाना चाहिए। तथा 1.5 ग्राम थीरम एवं 1.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 % डब्लू पी से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए। एवं रोग के लक्षण दिखाई देने पर जिनेब या मैन्कोजेब 75 % डब्लू पी 2 ग्राम/लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
खरपतवारों का सोयाबीन फसल में निम्न विधियों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है: 1. यांत्रिकी विधि :-फसल को 30-45 दिन की अवस्था तक निंदाई रहित रखें । इस हेतु फसल उगने के पश्चात डोरे/कुल पे चलाये । 2. रसायनिक विधि :- बुवाई के पूर्व उपयोगी फ्लुक्लोरेलीन 1 लीटर प्रति एकड़ ट्राईफ्लूरेलीन 800 मिली प्रति एकड़ बुवाई के तुरन्त बाद -मेटालोक्लोर याक्लोमाझोन 1 लीटर प्रति एकड़ पेण्डीमिथालीन 1.5 लीटर प्रति एकड़ बुवाई के 15-20 दिन की फसल में उपयोगी -इमेजाथायपर याक्विजालोफाप इथइल 500 मिली प्रति एकड़।
मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, सीडड्रिल, कुदाल और फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्कता पड़ती है।